वैद्युत प्रतिरोध वेल्डिंग (Electric Resistance Welding in Hindi)
ऐसी वेल्डिंग जिसमें विपरीत पोलेरिटी की दो चादरों को आपस मे जोड़ने के लिए , दोनों चादरों पर यांत्रिक दाब लगाते हुए वैद्युत धारा को प्रवाहित किया जाता है। यह वैद्युत धारा चादरों पर पड़ने वाले यांत्रिक दबाब के बीच मे से प्रवाहित की जाती है। जंहा पर चादर का यांत्रिक दबाब पड़ता है वंहा पर कुछ प्रतिरोध उत्पन्न होता है। (जैसा कि हम जानते है जंहा प्रतिरोध हो अगर वंहा पर धारा प्रवाहित की जाए तो उष्मा उत्पन्न होती है) इस प्रतिरोध के कारण जो उष्मा उत्पन्न होती है उसी उष्मा से दोनों चादर प्लास्टिक अवस्था तक आ जाती हैं और उस पर लगे यांत्रिक दाब के कारण आपस दोनों चादर मे जुट जाती हैं।
इस प्रकार जब दोनों धातुएं यांत्रिक दाब और वैद्युत धारा द्वारा के उपजी ऊष्मा प्लास्टिक अवस्था तक आकर आपस मे जुटती हैं तो इस प्रकार की के वेल्डिंग जोड़ को विद्युत प्रतिरोध वेल्डिंग (Electric Resistance Welding) कहते हैं।
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वैद्युत प्रतिरोध वेल्डिंग प्रक्रिया |
विद्युत प्रतिरोध वेल्डिंग (Electric Resistance Welding) के प्रकार
1. प्रतिरोध बट वेल्डिंग (Resistance Butt Welding)
2. Spot Welding
3. Seam Welding
4. Projection Welding
5. Percusion Welding
6. High Frequency Resistance Welding
विस्तार से पढ़े.....
- प्रतिरोध बट वेल्डिंग (Resistance Butt Welding) किसे कहते हैं?
- स्पॉट वेल्डिंग (Spot Welding) किसे कहते हैं?
- सीम वेल्डिंग (Seam Welding) क्या है?
- प्रोजेक्शन वेल्डिंग (Projection Welding) किसे कहते हैं?
- पर्कुजन वेल्डिंग (Percussion Welding) किसे कहते हैं
- हाई फ्रीक्वेंसी रेजिस्टेंस वेल्डिंग (High Frequency Resistance Welding) किसे कहते हैं?
1. प्रतिरोध बट वेल्डिंग (Resistance Butt Welding)
ऐसी वेल्डिंग जिसमें कार्यखंड के सिरो को बट वेल्डिंग की तरह आमने सामने रखकर वेल्डिंग किया जाता है, इस प्रकार की वेल्डिंग को प्रतिरोध बट वेल्डिंग (Resistance Butt Welding) कहते हैं।
यह दो प्रकार के होते हैं-
A) अपसेट बट वेल्डिंग (Upset Butt Welding)
B) फ्लैश बट वेल्डिंग (Flash Butt Welding)
A) अपसेट बट वेल्डिंग (Upset Butt Welding)
Upset Butt Welding Machine में कार्यखण्डों को बट वेल्डिंग की भांति आमने सामने मिलाकर क्लैंप के द्वारा मजबूती के साथ पकड़ा जाता है और विद्युत को कार्यखण्ड में गुजारा जाता है और इस कार्यखण्ड मे जंहा प्रतिरोध होता है वंहा उष्मा उपजती है और ये उष्मा कार्यखण्ड को पिघलाने का कार्य करता है। इस अवस्था में जैसे ही कार्यखण्ड थोड़ा सा भी दाब पाते हैं तो कार्यखण्डों के दोनों सिरे आपस में मिल जाते हैं। इस प्रकार से धातु जोड़ने की प्रक्रिया को अपसेट बट वेल्डिंग (Upset Butt Welding) कहते हैं।
B) फ्लैश बट वेल्डिंग (Flash Butt Welding in hindi)
इस वेल्डिंग को अपसेट वेल्डिंग का विकसित रूप माना जाता है। क्योंकि अपसेट वेल्डिंग की तरह इसमें भी संपूर्ण प्रोसेस में भी किया जाता है परंतु इसमें कार्यखंड के सिरों को आपस में मिलाकर नहीं रखा जाता है। इसमें कार्यखंड के सिरो को धीरे-धीरे मिलाया जाता है।
2. Spot Welding
इस वेल्डिंग में तांबे के दो इलेक्ट्रोड लगे होते हैं इन इलेक्ट्रोड को अच्छी तरह कस कर पकड़ा जाता है। इलेक्ट्रोड वन स्टेप डाउन वेल्डिंग ट्रांसफार्मर के द्वारा कम से कम 6 वोल्ट से 10 वोल्ट पर उच्च धारा प्राप्त करते हैं। इस वेल्डिंग में रिवेट का डिजाइन बदले बिना ही जोड़ लगाया जाता है।
★स्पॉट वेल्डिंग का कार्य निम्न चरणों मे पूरा होता है-
१. सबसे पहले कार्यखण्ड को सही तरीके से इलेक्ट्रोड के बीच में रखा जाता है।
२. फुट पेडल को दबाकर इलेक्ट्रोड को कार्यखंड के पास लाया जाता है।
३. जिस स्थान पर कार्यखंड में जोड़ लगाना होता है उस स्थान से विद्युत गुजार दिया जाता है और यह विद्युत जैसे ही प्रतिरोध के संपर्क में आती है वहां पर उष्मा उत्पन्न होना शुरू हो जाता है।
४. जिस स्थान पर जोड़ लगाना होता है वहां पर पर्याप्त मात्रा में दाब लगाना अनिवार्य होता है क्योंकि जहां पर दाब लगेगा वहीं पर प्रतिरोध उत्पन्न होती है।
५. कार्यखण्ड पर तब तक दाब लगाया जाता है जब तक वेल्डिंग जमकर ठोस अवस्था में ना आ जाए और जैसे ही वेल्डिंग ठोस अवस्था में आ जाती है कार्यखंड को दाब से मुक्त कर दिया जाता है।
६. ठोस अवस्था मे कार्यखण्ड के आने के बाद इलेक्ट्रोड को हटा दिया और मशीन को भी कार्य खंड से अलग कर दिया जाता है।
3. Seam Welding
सीम वेल्डिंग को स्पॉट वेल्डिंग का विकसित रूप माना जाता है परंतु इसमें मुख्य एक अंतर यह होता है कि इसमें घूर्णी चक्र इलेक्ट्रोड (Rotating Weel Electrode) का प्रयोग किया जाता है जो घूमते रहते हैं। और यांत्रिक दाब के अंतर्गत कार्य करते हैं इस वेल्डिंग में जब कार्य खंड को जोड़ा जाता है तो सबसे पहले इलेक्ट्रोड में धारा प्रवाहित करके कार्यखंड को ठीक से मिला लिया जाता है और घूमते हुए इलेक्ट्रोड के बीच दाब देकर आगे की ओर धकेला जाता है।
4. प्रक्षेप वेल्डिंग (Projection Welding)
इस वेल्डिंग को भी स्पॉट वेल्डिंग के ही समान माना जाता है क्योंकि इस विधि में भी धारा प्रवाह और दाब को स्पॉट वेल्डिंग के समान ही लगाया जाता है।
प्रोजेक्शन वेल्डिंग और स्पॉट वेल्डिंग मुख्य अंतर यह है कि प्रोजेक्शन वेल्डिंग मशीन के इलेक्ट्रोड स्पॉट वेल्डिंग मशीन के इलेक्ट्रोड की तरह नुकिले नहीं होते बल्कि प्रोजेक्शन वेल्डिंग में प्रोजेक्शन वेल्डिंग मशीन के इलेक्ट्रोड चपटे डाई की तरह होते हैं।
जिन कार्यखंड को वेल्डिंग करना होता है उनमे वांछित स्थानों पर डाई और पंच की सहायता लेकर उभार (Projection) बना लिए जाते है। जहां उभार होता है वेल्डिंग उसी स्थान पर होना शुरू हो जाता है। विद्युत धारा का प्रवाह भी केवल प्रक्षेपित बिंदुओं पर ही होता है। इस प्रकार धारा तथा प्रतिरोध के कारण उत्पन्न ऊष्मा से केवल प्रक्षेपित बिंदु या उभार बिंदु ही पिघलते हैं और दाब के कारण दबकर वेल्डिंग हो जाते हैं।
5. Percusion Welding
ऐसी वेल्डिंग जिसमें कार्यखंडों को क्षणिक आर्क से टकराकर प्लास्टिक अवस्था तक लाया जाता है और फिर उन्हें आपस में जोड़ दिया जाता है इस प्रकार की वेल्डिंग परकुजन वेल्डिंग (Percusion Welding) कहलाती है।
इस वेल्डिंग को फ्लैश बट वेल्डिंग के समान माना जाता है परंतु इसमें मुख्य अंतर यह है कि इसमें ऊर्जा का स्रोत कंडेंसर रूप में स्टोर किया जाता है और इलेक्ट्रिक चार्जर लगा होता है।
6. High Frequency Resistance Welding
ऐसी वेल्डिंग जिसमें इलेक्ट्रोड के द्वारा high-frequency-current (200 से 450000 cycle) को कार्यखंड के जोड़ी जाने वाली सतहो पर दिया जाता है। और साथ ही दो वेल्डिंग रोलरो के द्वारा आवश्यक बेल्डिंग दाब लगाकर दोनों कार्यखंडों को आपस में जोड़ा जाता है। इस प्रकार की वेल्डिंग हाई फ्रीक्वेंसी रेजिस्टेंस वेल्डिंग (High Frequency Resistance Welding) कहलाती है।
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