ग्रामीण बस्ती किसे कहते हैं? प्रकार, विशेषताएं, समस्याएं और बस्तियों के प्रतिरूप

इस पोस्ट में हम जानेंगे कि ग्रामीण बस्तियां क्या हैं एवम इसमें ग्रामीण बस्तीयों के प्रकार, विशेषताएं, समस्याएं और प्रतिरूप का भी वर्णन किया गया है। ग्रामीण बस्तीयों का वर्णन निम्न क्रमानुसार किया गया है -

  • ग्रामीण बस्तीयां क्या है
  • ग्रामीण बस्तियों के प्रकार
  • ग्रामीण बस्तीयों की विशेषताएं
  • ग्रामीण बस्तीयों की समस्यायें
  • ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप




ग्रामीण बस्तीयां क्या है? (Gramin Basti Kise Kahate Hain) -:

ऐसी मानव बस्तियां जिनकी अधिकांश आबादी कृषि, मछली पालन, पशुपालन, सब्जी उगाना, खनन, वानिकी और दस्तकारी इत्यादि जैसे कार्यो को मुख्य रूप से करते हैं, ऐसी बस्तियों को ग्रामीण बस्तियां कहा जाता है।

उदाहरण - गाँव और टोला (हेमलेट)

ग्रामीण बस्तियों के लोग सबसे ज्यादा कृषि, मछली पालन पशुपालन, सब्जी उगाने जैसे कार्य को इत्यादि करते हैं। यह सभी कार्य उनकी उनकी आय व रहन सहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

नगरीय बस्तियों की तुलना में गांव की जनसंख्या काफी कम होती है। ग्रामीण बस्तियाँ, नगरीय बस्तियां से क्षेत्रफल में काफी छोटे भी होते हैं। ग्रामीण बस्तियों में अधिक सुख सुविधा उपलब्ध नहीं होती हैं यहां पर अस्पताल, महाविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज जैसी सुविधाएं उपलब्ध नही होती है।



ग्रामीण बस्ती किसे कहते हैं?  प्रकार, विशेषताएं, समस्याएं और बस्तियों के प्रतिरूप
नदी किनारे बसी हुई बस्ती


ग्रामीण बस्तियाँ हरे-भरे खेतों, तालाबों, जंगलों, भूमि, खलिहानों जैसे प्राकृतिक वातावरण से घिरे होते हैं तथा उन्ही पर आश्रित रहते हैं। यहां पर उपस्थित लोग पर्यावरण और प्राकृतिक के काफी पास होते हैं, जिसके कारण यहां पर शुद्ध हवा और शुद्ध खान-पान उपलब्ध हो जाता है।

ग्रामीण बस्ती में प्राकृतिक संसाधन बहुत ही कम होते हैं जिसके कारण यहां पर आर्थिक विकास में बहुत ही कम और धीरे-धीरे होता है।

यह लोग प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए होते हैं और यहां पर उच्च शिक्षा भी अच्छी तरह नहीं मिल पाती है। कई बार तो ऐसा होता है कि सरकार योजनाएं लागू करती है जो इनके पास  पहुंचती ही नहीं है। बीच के अधिकारी और बिचौलिया उन योजनाओं को खा और पी लेते हैं। अतः इनके पिछड़े होने का एक कारण यह भी है।



ग्रामीण बस्तियों के प्रकार (Gramin Basti  Ke Prakar) -:

भारत में ग्रामीण बस्तियाँ चार प्रकार की होती हैं -

  • गुच्छित, संकुलित अथवा केन्द्रित
  • अर्द्धगुच्छित अथवा विखण्डित
  • पल्लीकृत और
  • परिक्षिप्त अथवा एकाकी


गुच्छित, संकुलित अथवा केन्द्रित ग्रामीण बस्तियाँ -:

ऐसी ग्रामीण बस्तियां जो एक स्थान पर सकेन्द्रित होती है, उपजाऊ खेतों के मध्य किसी ऊंचे स्थान पर स्थित होती हैं और मकान पास पास स्थित होते हैं ऐसी ग्रामीण बस्तियों को गुच्छित, संकुलित अथवा केन्द्रित ग्रामीण बस्तियाँ कहते हैं।

गुच्छित, संकुलित अथवा केन्द्रित ग्रामीण बस्तियाँ उपजाऊ खेतों के मध्य किसी उच्च स्थान पर बसी होती है जहां पर बाढ़ इत्यादि पहुंचना मुश्किल होता है। इन बस्तियों में घर काफी पास पास होते हैं और कम क्षेत्र में अधिक जनसंख्या निवास करती है। इन बस्तियों के घरों का एक संहत अथवा संकुलित रूप से निर्मित क्षेत्र होता है।

इस बस्ती में आवास स्थान और खेत अलग अलग होते हैं। ये बस्तियां आकार में मुख्यतः आयताकार, रेखीय और अन्य आकार की भी हो सकती है।

बुंदेलखंड और नागालैंड में बसे लोग पास पास रहना बहुत पसंद करते हैं।


अर्द्धगुच्छित अथवा विखण्डित ग्रामीण बस्तियाँ -:

किसी बड़े गांव से समाज का कोई वर्ग जब किसी मूल कारण से जब गांव से बाहर रहने लगता है तो ऐसी बस्तियां अर्द्धगुच्छित अथवा विखण्डित ग्रामीण बस्तियाँ कहलाती हैं।

सामान्य तौर पर, जब प्रमुख समुदाय गाँव के मध्य भाग पर कब्जा कर लेता है तब मजबूरी में दिहाड़ी मजदूर या समाज के निचले तबके के लोग गाँव के बाहर रहने पर मजबूर हो जाते हैं तथा बाहरी हिस्से में बस जाते हैं।

ऐसी बस्तियाँ गुजरात के मैदानी क्षेत्र तथा राजस्थान के कुछ भागों में दिखाई देती हैं।


पल्लीकृत ग्रामीण बस्तियाँ -:

इस प्रकार की बस्तियाँ अलग-अलग बंटी हुई रहती हैं परन्तु वे किस एक ही नाम से जानी जाती हैं। पल्लीकृत ग्रामीण बस्तियाँ कहलाती हैं। जब किसी बड़े गांवों का विभाजन आमतौर पर सामाजिक और जातीय कारकों से प्रेरित होता है तो इस प्रकार की बस्तियों का निर्माण होता है।

इन बस्तियों को पल्लीकृत के अलावा अन्य नाम जैसे - पान्ना, पाड़ा, पाली, नगला व धाड़ी के नाम से जाना जाता है।

पल्लीकृत (टोला ) ग्रामीण बस्तियाँ मध्य और निचले गंगा के मैदानों, छत्तीसगढ़ और हिमालय की निचली घाटी में पाई जाती हैं।


परिक्षिप्त अथवा एकाकी ग्रामीण बस्तियाँ -:

एकाकी बस्तियां जंगलों में दूर-दूर झोपड़ी के रूप में दिखाई देते हैं। ये पहाड़ो पर भी दूर दूर, एक-एक झोपड़ी के रूप में दिखाई देती है। इनके बीच प्रत्येक झोपड़िययों की दूरी दूर-दूर होती है।

ऐसी बस्तियाँ मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केरल जैसे उबड़-खाबड़ इलाकों में अधिकांश पायी जाती है।



ग्रामीण बस्तीयों की विशेषताएं (Gramin Basti  Ki Visheshtaen) -:

ग्रामीण बस्तियों की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।

1. जनसंख्या : ग्रामीण बस्तियों की जनसंख्या और क्षेत्रफल काफी कम होता है। जनसंख्या कम होने के कारण यह घनत्व में बहुत ही कम होते हैं। इनमे घरो की संख्या भी कम होती है। इन लोगो का विस्तार और वृद्धि दर काफी कम होती है।

2. आधुनिक सुविधाएं : ग्रामीण बस्तियों में रहने वाले लोगो को बिजली, शिक्षा, अस्पताल, ट्रैन, परिवहन और अन्य सुविधाएं बहुत ही कम मिल पाती है।

3. व्यवसाय : ग्रामीण बस्तियों में रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि पालन, मत्स्य पालन और पशुपालन होता है। यहां पर कृषि कार्य प्रत्येक घर द्वारा की जाती है।

4. प्रदूषण : ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण जैसी समस्याएं यहां पर नहीं होती है क्योंकि ग्रामीण बस्ती के लोग पर्यावरण के काफी करीब होते हैं और यह पर्यावरण को काफी कम नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए यहां पर शुद्ध हवा, शुद्ध पानी शुद्ध खाना उपलब्ध हो जाता है।

5. सामाजिक व धार्मिक सम्बंध : ग्रामीण बस्तियों के लोगों का आपसी संबंध काफी मजबूत होता है। जनसंख्या में कम होने के कारण यह लोग एक-दूसरे को जानते और पहचानते हैं और सुख दुख में भी काम आते हैं। धार्मिक दृष्टि से भी ये प्राकृतिक और पूजा पाठ पर विश्वास रखते हैं।



ग्रामीण बस्तीयों की समस्यायें (Gramin Basti  Ki Samasya) -:

ग्रामीण बस्तियों की कुछ महत्वपूर्ण समस्या निम्नलिखित हैं जिनके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है आइए जानते हैं कि ग्रामीण वस्तु की महत्वपूर्ण समस्याएं क्या है।


1. आपातकालीन सेवाओं की कमी : गांव में आपातकालीन सेवाओं की कमी रहती है। यहां पर अचानक कोई दुर्घटना घट जाने पर आपातकालीन सेवा नहीं मिल पाती हैं। अगर किसी को कोई गंभीर बीमारी अचानक हो जाती है तो उसे समय पर इलाज नहीं मिल पाता है और कभी-कभी गांव के फसलों में आग लग जाने पर फायर ब्रिगेड जल्दी नहीं पहुंच पाते हैं।


2. रोजगार साधन में कमी : गमी रोजगार के साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते हैं जिसके कारण यहां पर बेरोजगारी बढ़ती है गांव के लोग अधिकांश कृषि मछली पालन और पशुपालन में सिमट कर जाते हैं जिसके कारण यहां पर बेरोजगारी पैदा हो जाती है।


3. भारी वर्षा व बाढ़ का प्रभाव : जब गांव में भारी बारिश होती है या फिर बाढ़ आ जाते हैं तो गांव चारों तरफ से गिर जाते हैं और वे कहीं भी आ-जा नहीं पाते हैं। भारी बारिश आने के कारण गांव के कच्चे व लकड़ी के मकान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और लोगों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


4. स्वास्थ्य समस्या : गांव में जल जनित बीमारियां जैसे हैजा , पीलिया इत्यादि सामान्य बात है। ऐसे रोग प्रदूषित पानी पीने के कारण या गन्दगी से उत्पन्न होते है। इन बीमारियों का इलाज कराने के लिए भी गांव से दूर किसी अस्पताल में जाना पड़ता है। गंभीर रोग होने पर बहुत सारे लोग रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।


5. पक्की सड़को और संचार की कमी : गांव में पक्की सड़कों का अभाव होता है और कहीं-कहीं पक्की सड़के बना भी जाती हैं तो उनकी देख-रेख सरकार द्वारा बहुत ही कम की जाती है जिससे वह पहले से भी और बदतर बन जाती हैं। गांव में संचार की भी कमी रहती है जिसे एक दूसरे से वे कनेक्ट नहीं हो पाते हैं और गांव से संपर्क टूट जाता है। यहां पर बिजली की समस्या बहुत आम बात है।


6. कृषि पर प्रभाव : दक्षिण एशिया के देश बढ़ और सूखे से समय-समय पर ग्रस्त होते रहते हैं। यहां पर आधुनिक सिंचाई सुविधाओं का उपलब्ध न होने के कारण कृषि पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।


7. शिक्षा का अभाव : ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी स्कूल ना होने के कारण यहां के अधिकांश बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण नही कर पाते हैं। सड़क, चिकित्सा तथा शिक्षा के अभाव के कार्सन इनकी समस्या और भी बढ़ा देती है। ग्रामीण बस्तियों में शिक्षा के अभाव में अंधविश्वास तथा सामाजिक रूढ़ियों की समस्याओं को देखा जा सकता है।



ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप (Gramin Basti Ke Pratiroop) -:

आकार की दृष्टि से बस्तियों के निम्नलिखित प्रतिरूप होते हैं।

  • रैखिक प्रतिरूप
  • आयताकार प्रतिरूप
  • वृत्ताकार प्रतिरूप
  • तारे के आकार का प्रतिरूप
  • टी अथवा वाई आकार के प्रतिरूप
  • दोहरे ग्राम प्रतिरूप


रैखिक प्रतिरूप -:

ऐसी मानव बस्तियां सड़कों, रेल लाइनों नदियों के किनारे इत्यादि बसते हैं। ये नहरों के किनारे भी बस सकते हैं।

इस प्रकार की बस्तियों का निर्माण तभी हो पता है जब सड़क, रेल के लाइनें, नदियों या नहरों के किनारे लोग घर बना कर रहने लगे हो और वह धीरे-धीरे वहीं पर बस जाते हो तभी रैखिक प्रतिरूप जैसी बस्तियों का निर्माण हो पाता है।


आयताकार प्रतिरूप -:

जिन मानव बस्तियों का निर्माण समतल क्षेत्रों में होता है और वहां की सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं, आयताकार प्रतिरूप कहलाते हैं। ऐसी ग्रामीण बस्तियां समतल क्षेत्रों में बसते हैं।


वृत्ताकार प्रतिरूप -:

जब किसी ग्रामीण बस्ती का निर्माण तालाब या झील के किनारे-किनारे चारों ओर होता है तो ऐसे ही ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप वृत्ताकार होता है। ऐसी ग्रामीण बस्तियां किसी झील या तालाब के किनारे बसी होती हैं और देखने में वृताकार प्रतीत होती हैं।


तारे के आकार का प्रतिरूप -:

ऐसे स्थान जहां पर बहुत सारी सड़कें आकर मिलती हैं और उन सड़कों के किनारे-किनारे मकान बनने प्रारंभ हो जाते हैं और धीरे-धीरे बस्ती का निर्माण हो जाता है, इस प्रकार की बस्तियों का प्रतिरूप तारे के आकार के जैसा होता है।


टी अथवा वाई आकार के प्रतिरूप -:

जहां पर तीन सड़के मिलती हैं और वे T आकार की होती हैं तथा उनके किनारे किनारे मकान निर्मित होकर बस जाते हैं वे बस्तियाँ टी आकर के प्रतिरूप होते हैं। ऐसी बस्ती किसी तिराहे पर ही बन सकती हैं।

इसी प्रकार Y आकार की बस्तियों के प्रतिरूप भी तीन सड़कों के मिलने के बाद ही बनते हैं। परंतु जब तीन सड़के Y आकार की बनी होती हैं उनके किनारे किनारे मकान बसे होते हैं तभी Y आकार के बस्तियों के प्रतिरूप कहलाते हैं। इन बस्तियों में दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलते हैं।


दोहरे ग्राम प्रतिरूप -:

नदी या पुल के दोनों किनारों पर बस्तियों के निर्माण के फलस्वरूप दोहरे ग्राम प्रतिरूप का निर्माण होता है। इस प्रतिरूप में नदी के दोनों तरफ मकान और बस्तियां बसी होती हैं या फिर किसी पुल के दोनों तरफ मकान या बस्तियां बसी होती हैं।


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