लकड़ी का संशोषण और उसके प्रकार - Seasoning of Timber/Wood in Hindi

लकड़ी का संशोषण और उसके प्रकार - Seasoning of Timber/Wood in Hindi

लकड़ी का उपचार और संशोषण (Seasoning of Timber) -:

लकडी को जब विभिन्न कार्यों के योग्य बनाने के लिए एक निश्चित सीमा तक उसमें उपस्थित नमी की मात्रा को कम किया जाता है, इस प्रक्रिया को लकड़ी का उपचार या संशोषण (Seasoning) कहते हैं। किसी भी लकड़ी का संशोषण/सीजनिंग (Seasoning) उसकी योग्यता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। अगर लकड़ी या टिम्बर की सीजनिंग (Seasoning) नहीं की जाएगी तो लकड़ी का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं होगा। इसलिए प्रयोग करने से पहले लकड़ी की सामर्थ्य को बढ़ाने और उपस्थित दोष को हटाने के लिए लकड़ी की उपचार या संशोषण/सीजनिंग करना आवश्यक होता है। अगर लकड़ी की सीजनिंग नही की जाए या लकड़ी की सीजनिंग अच्छी तरह न की जाए तो लकड़ी में संकुचन, ऐठन, मरोड़, फटन इत्यादि जैसे दोष उत्पन्न होने लगते हैं। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि जिस क्रिया द्वारा लकड़ी में उपस्थित की नमी की मात्रा को कम किया जाता है उसे सीजनिंग (Seasoning) कहते हैं।


लकड़ी का संशोषण/सीजनिंग करने के प्रकार (Types of Wood/Timber Seasoning in Hindi) -:

लकड़ी की Seasoning करने के लिए दो प्रकार की विधियां अपनाई जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं -

1. प्राकृतिक संशोषण (Natural Seasoning)

2. कृत्रिम संशोषण (Artificial Seasoning)


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1. प्राकृतिक संशोषण (Natural Seasoning) -:

जब लकड़ी की सीजनिंग प्राकृतिक विधि से की जाती है तो इस प्रक्रिया को प्राकृतिक संशोषण (Natural Seasoning) कहते हैं।

ये दो प्रकार के होते हैं -

A) जल संशोषण (Water Seasoning)

B) वायु संशोषण (Air Seasoning)


A) जल संशोषण (Water Seasoning) -:

वाटर सीजनिंग को करने के लिए सबसे पहले लकड़ी के लट्ठों को नदी या नहर के बहते हुए जल में 2 से 3 सप्ताह तक डूबा कर रखा जाता है ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि बहते हुए जल के द्वारा लकड़ी के अंदर उपस्थित रस धीरे-धीरे जल में घुलता है और जल के साथ प्रवाहित होता रहता है अर्थात लकड़ी जब जल में डूबी रहती है तो लकड़ी के अंदर जो सैप (Sap) या रस उपस्थित होता है, वह पानी में धीरे-धीरे घुलता है। चूंकि हम जानते हैं कि पानी प्रवाहित होती है, इसलिए पानी में घुलने के साथ-साथ लकड़ी का रस पानी के साथ बहता चला जाता है। 2 से 3 सप्ताह बाद लकड़ी को पानी में से निकाल लिया जाता है और इनको अब इसको वायु संशोषण/सीजनिंग कराया जाता है। जब पानी में से लकड़ी निकाली जाती है और एयर सीजनिंग कराई जाती है तो लकड़ी जिस तल पर रखी जाती है उसको हल्का सा झुका हुआ बनाया जाना चाहिए ताकि उस पर बालू की परत बनाने के बाद जब लकड़ी वँहा पर राखी जाए तो लकड़ी के अंदर उपस्थित जल धीरे-2 बाहर सिमकर निकलता रहे। बाकी प्रक्रिया एयर सीजनिंग विधि द्वारा किया जाता है। Water Seasoning में कम समय लगता है परंतु लकड़ी अपना सामर्थ्य पूर्ण रुप से प्रात नहीं कर पाता है। क्योंकि इस विधि द्वारा सीजनिंग करने पर, लकड़ी में उपस्थित सभी रस बाहर निकल जाते है, परंतु फिर भी इस विधि का उपयोग सबसे अधिक किया जा रहा है।


B) वायु संशोषण (Air Seasoning) -:

लकड़ी ओर एयर सीजनिंग (Air Seasoning) करने के लिए सबसे पहले वृक्ष को काटकर उनका लठ्ठा बनाया जाता है और उनके ऊपर उपस्थित छाल को निकाल लिया जाता है। छाल उतारने के बाद लकड़ी को वाछिंत आकार में काट लिया जाता है। वांछित आकार में काटने के बाद इसको धूप और बरसात से बचाते हैं। धूप और बरसात से बचाने के लिए इन्हें किसी छायादार स्थान पर चट्टे के रूप में रख दिया जाता है। छायादार स्थान पर चट्टा बनाने के लिए सबसे पहले जिस फर्श पर लकड़ी को रखना है उसको 30 से 40 सेंटीमीटर ऊंचा बनाया जाता है और उस फर्श पर रेत की हल्की सी परत बिछा दी जाती है जिससे लकड़ी को उस पर रखा जा सके। लकड़ी को चट्टे पर इस प्रकार रखना चाहिए कि उसको चारों ओर से वायु भली भांति लग सके। इस प्रकार वायु संशोषण में जब वायु लकड़ी पर लगती है तो धीरे-धीरे वातावरण के साथ तापमान परिवर्तन के कारण लकड़ी में उपस्थित नमी भाप बनकर उड़ जाती है। इस प्रक्रिया को लगभग 1 से 5 वर्ष का समय लगता है। Air Seasoning के फलस्वरुप लकड़ी अपनी पूर्ण संशोषण को प्राप्त करता है। लकड़ी पर लगने वाला समय लकड़ी की मोटाई पर ही निर्भर करता है क्योंकि मुलायम और पतले लकड़ी वाले सेक्शनों में कम समय लगता है और अगर वही लकड़ी मोटी है तो उसमें अधिक समय लगता है। इस विधि द्वारा सीजनिंग करने से लकड़ी में विशिष्ट गुणों की वृद्धि होती है और साथ ही साथ यह सीजनिंग विधि सस्ती भी होती है। लकड़ी पर Air Seasoning  करने की प्रक्रिया को इंजीनियरिंग कार्यों के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।


2. कृत्रिम संशोषण (Artificial Seasoning) -:

जब लकड़ी की सीजनिंग (Seasoning) को कृत्रिम विधि से किया जाता है तो इस प्रकार की सीजनिंग को कृत्रिम संशोषण या आर्टिफिशियल सीजनिंग (Artificial Seasoning) कहते हैं। कृत्रिम संशोषण का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि प्राकृतिक तरीकों से लकड़ी/टिम्बर का सीजनिंग करने में अधिक समय लगता है। अतः कम समय में लकड़ी की Seasoning करने के लिए Artificial Seasoning का प्रयोग किया जाता है।

Artificial Seasoning को कई प्रकार के भागों में बांटा गया है। इस Seasoning को करने के लिए निम्न विधियों का उपयोग किया जाता है -

A) रासायनिक संशोषण (Chemical Seasoning)

B) विद्युत संशोषण (Electric Seasoning)

C) भाप संशोषण (Steam Seasoning)

D) भट्ठा संशोषण (Kiln Seasoning)


A) रासायनिक संशोषण (Chemical Seasoning) -:

इस Seasoning विधि को करने के लिए जल में घुलनशील लवणों को घोला जाता है और उसमें लकड़ी को डूबा कर रख दिया जाता है। जल में घुलनशील रासायनिक लवण के कारण टिंबर/लकड़ी की नमी बाहर निकल जाती है। परंतु जब रासायनिक संशोषण (Chemical Seasoning) का उपयोग किया जाता है तो टिंबर की भीतरी सतह, बाह्य सतह की तुलना में पहले से शुष्क हो जाती है। जिसके कारण टिंबर की बाह्य सतह में फटने की संभावना अधिक होती है।


B) विद्युत संशोषण (Electric Seasoning) -:

जब टिम्बर की Seasoning करने के लिए विद्युत का उपयोग किया जाता है तो इस प्रकार की सीजनिंग को विद्युत संशोषण (Electric Seasoning) कहते हैं।

इस विधि में ताजे वृक्ष के लट्ठों में से विद्युत प्रवाहित कराया जाता है। यह लकड़ी के लट्ठे ताजे होते हैं जिनमें नमी होती है और नमी होने के कारण इनमें से विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित हो जाता है। जब विद्युत धारा टिंबर में से गुजरती है तो उष्मा उत्पन्न करती है, जिसके फलस्वरुप टिंबर या लकड़ी में उपस्थित पानी का वाष्पीकरण होने लगता है और लकड़ी धीरे-धीरे सूखने लगती है।

इस प्रकार लकड़ी में उपस्थित पानी या नमी की मात्रा पूरी तरह से समाप्त हो जाती है और जैसे ही लकड़ी में उपस्थित नमी की मात्रा समाप्त होती है, विद्युत धारा का प्रवाह अपने आप ही बंद हो जाता है क्योंकि विद्युत नमी के कारण ही प्रवाहित हो रही होती है। लकड़ी में से नमी समाप्त होने के कारण विद्युत बंद हो जाती है क्योंकि लकड़ी विद्युत की कुचालक होती है। इस विधि का उपयोग करके बहुत ही कम समय में सीजनिंग (Seasoning) कर लिया जाता है। परंतु इस विधि को करने के लिए लागत अधिक आती है।


C) भाप संशोषण (Steam Seasoning) -:

यह ऐसी विधि है जिसमें भाप के माध्यम से लकड़ी या टिंबर का सीजनिंग किया जाता है। भाप संशोषण (Steam Seasoning) का प्रयोग सबसे अधिक बॉयलर वाले स्थानों पर किया जाता है जहां बॉयलर प्रयोग में आते हैं। इन लकड़ियों की Seasoning बॉयलर से निकलने वाले भाप से किया जाता है।

बॉयलर का भाप जहां निकलता है वहीं पर लकड़ियों के चट्टे लगा दिए जाते हैं और जब यह भाप बॉयलर में से निकलते हैं तो लकड़ियों पर पड़ते हैं जिसके फलस्वरूप धीरे-धीरे लकड़ियों का सीजनिंग (Seasoning) होता है। हम जानते हैं कि भापे में गुप्त ऊष्मा होती है जो लकड़ी पर पड़ते ही उसके अंदर के नमी को सोख कर वाष्प के रूप में बाहर निकल जाती है और लकड़ी में उपस्थित पानी की मात्रा भी भाप के साथ ही बाहर आ जाती है। परंतु इस विधि का उपयोग प्रत्येक जगह नहीं हो पाता है।


D) भट्ठा संशोषण (Kiln Seasoning) -:

इस विधि के द्वारा भट्ठे में उपस्थित गरम वायु के द्वारा लकड़ी का सीजनिंग किया जाता है। भट्ठा संशोषण (Klin Seasoning) के माध्यम से लकड़ी की सीजनिंग करने के लिए सबसे पहले लकड़ी के लठ्ठे को भट्टी के बड़े-बड़े कक्षा में रखा जाता है। इन कक्षाओं में उपस्थित दाबयुक्त वायु का तापमान काफी गर्म होता है। इस गर्म वायु के द्वारा लकड़ी की सीजनिंग होती रहती है और सीजनिंग करते हुए वायु धीरे-धीरे बाहर निकलता रहता है। टिंबर या लकड़ी के लट्ठों को 15 दिन के लिए यहां पर छोड़ दिया जाता है, जिससे लकड़ी के अंदर उपस्थित नमी धीरे-धीरे वाष्प के रूप में बाहर निकलती रहती है। परंतु जैसे-जैसे भट्टी का तापमान बढ़ता है वैसे वैसे Seasoning होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। जो बहुत जल्दी ही पूर्ण हो जाती है। भट्ठा संशोषण (Klin Seasoning) के माध्यम से होने वाला लकड़ी की सीजनिंग, प्राकृतिक सीजनिंग की अपेक्षा कम सामर्थ्यवान होता है।

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