क्यूपोला भट्टी (Cupola Furnace in Hindi) - रचना, क्षेत्र, कार्य प्रणाली, जाम, उत्पादन क्षमता, सावधनियां

क्यूपोला भट्टी धातुओं को पिघलाने वाला एक युक्ति है। जिसका प्रयोग से लौह और अलौह धातुओं को पिघलाया जाता है। क्यूपोला भट्टी (Cupola Furnace) का अविष्कार चीन में किया गया था। इस भट्टी का प्रयोग अधिकांश कास्ट आयरन के लिए किया जाता है।

आज के इस लेख में क्यूपोला फरनेस की रचना, क्षेत्र, कार्यप्रणाली, चार्जिंग, उत्पादन क्षमता के साथ साथ इसको चलाने के लिए सावधनियों और क्यूपोला के बन्द/जैम होने के कारण को भी विस्तार से वर्णन किया गया है।


क्यूपोला भट्टी की रचना (Cupola Furnace Construction in Hindi) -:

क्यूपोला भट्टी में एक बेलनाकार सेल होता है यह स्टील की मोटी प्लेटों से तैयार की जाती है जिसकी मोटाई 6 से 12 mm तक होती है। इस सेल का व्यास 1 से 2 मीटर के लगभग में होता है तथा यह भठ्ठी अपनी व्यास से 3 से 5 गुनी बड़ी होती है। स्टील के बने इस सेल को उसके अंदर की ओर उच्च तापसह ईंटो का प्रयोग करके उसे जोड़ा जाता है। इससे यह फायदा होता है कि भट्टी जब अधिक तप्त अवस्था में हो जाती है तो स्टील के प्लेटों पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यह बेलनाकार सेल स्टील के बने 4 खंभों के सहारे खड़ा रहता है। इस भट्टी के तली में एक नीचे की ओर एक द्वार खुलता है यह भी स्टील का ही होता है। इस द्वार को तली में कब्जों द्वारा स्थापित किया जाता है इस द्वार को तली द्वार (Bottom Gate) भी कहते हैं।


क्यूपोला भट्टी (Cupola Furnace in Hindi)
क्यूपोला भट्टी

जब इस बॉटम डोर को बंद करना होता है तो इसे ऊपर उठा दिया जाता है और इस्पात की टेक लगा दी जाती है। तल द्वार को बंद करके इसके ऊपर रेत की एक परत बिछाई जाती है जिसे रेत तल (Sand Bed) कहते हैं। इस तल को ढालदार बनाया जाता है ताकि पिघली हुई धातु को निकालने में आसानी हो सके। क्यूपोला भट्टी में धातु को बाहर निकालने के लिए जिस छिद्र का प्रयोग किया जाता है उसे टैप छिद्र कहते हैं। यह छिद्र सबसे नीचे होता है और रेत तल की इसी छिद्र की ओर रखी जाती है। टैप छिद्र के ठीक विपरीत एक द्वार होता है जिसे स्लैग होल/छिद्र (Slag Hole) कहते है। जब भी पिघली धातु में से कोई मैल निकलती है तो उसे इसी द्वार के द्वारा बाहर निकाला जाता है। क्यूपोला भट्टी में रेत तल से 0.6 मीटर से 1.2 मीटर के आसपास ऊपर की ओर सेल में चारों ओर कुछ छिद्र होते हैं, जिन्हें ट्वीयर कहते हैं इन छिद्रों के द्वारा ईंधन को जलाने के लिए वायु को उच्च दाब पर भेजा जाता है। यह छिद्र क्यूपोला भट्टी की अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल का लगभग 1/5 भाग होता है। इन सभी छिद्रों अर्थात ट्वीयरो को घेरते हुए एक स्टील की पेटी बनाई गई होती है। इसी पेटी के माध्यम से ईंधन के दहन के लिए उच्च दाब पर हवा को भेजा जाता है। सभी छिद्रों या ट्वीयर को घेरने वाली पेटी को वायु बॉक्स (Wind Box) कहते हैं। वायु बॉक्स का संबंध एक वाल्व से होता है जिसमें ब्लोअर के द्वारा हवा भरी जाती है। यह ब्लोअर, पाइप और वायु बॉक्स से जुड़ा रहता है जिसे वात्यानल कहते हैं।

इस पाइप में हवा को नियंत्रण करने के लिए एक वाल्व भी लगा होता है। इस वाल्व के ऊपर की ओर एक गेट होता है, जहां से क्यूपोला में चार्ज को डाला जाता है। ऐसा द्वार, जहां से चार्ज को डाला जाता है उसे भरण द्वार (Charge Gate) कहते हैं।

चार्ज द्वार के किनारे, नीचे की ओर एक प्लेटफार्म होता है जहां पर कोई श्रमिक खड़ा होकर चार्ज को आसानी से डाल सकता है। क्यूपोला भट्टी में ऊपर की ओर चिमनी लगी होती है जहां से गैस बाहर निकलती हैं। इस चिमनी को ऊपर से ढकने के लिए स्पार्क एरेस्टर का प्रयोग किया जाता है। जो भट्टीयों से निकलने वाली चिंगारीओ को उड़कर बाहर जाने रोकता है।


क्यूपोला भट्टी के क्षेत्र (Zones of Cupola) -:

क्यूपोला भट्टी को निम्न क्षेत्रों को मिलाकर निर्माण किया जाता है। इन प्रत्येक क्षेत्रों का अलग-अलग कार्य और प्रक्रियाये होती है। क्यूपोला फरनेस के क्षेत्र निम्न हैं।


1. हर्थ अथवा क्रुसिबिल (Herth of Cupola) -:

ट्वीयर के नीचे का वह भाग जहां पिघली धातुएं इकट्ठी होती हैं उसे हर्थ अथवा क्रुसिबिल (Herth of Cupola) कहते हैं।


2. प्रज्वलन क्षेत्र (Combustion Zone) -:

इस क्षेत्र में ईंधन का दहन होता है, ईंधन का दहन होने के कारण क्यूपोला को अधिक से अधिक उष्मा प्राप्त होती है। यह क्षेत्र ट्वीयर से घिरा होता है और क्रुसिबिल के ऊपर स्थित होता है।


3. रिडक्शन क्षेत्र (Reduction Zone) -:

प्रज्वलन क्षेत्र के ऊपर स्थित जोन/क्षेत्र को रिडक्शन क्षेत्र कहते हैं। रिडक्शन क्षेत्र में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन और ऑक्सीजन में परिवर्तित हो जाती है। जिसके कारण क्यूपोला भट्टी के ताप में 1600℃ से 1200℃ तक की कमी हो जाती है।


4. संगलन क्षेत्र (Melting Zone) -:

ईंधन वाले क्षेत्र की ऊपरी सतह से मेल्टिंग जोन (Melting Zone) का प्रारंभ होता है। इसी क्षेत्र में धातु की पहली परत होती है। यह धातु की पहली परत ही सर्वप्रथम पिघलती है और नीचे हर्थ में जाकर एकत्रित होने लगती है। ईंधन वाले क्षेत्र से ऊपर स्थित होने के कारण संगलन क्षेत्र का तापमान 1600 ℃ से 1700 ℃ होता है।


5. प्री-हीटिंग क्षेत्र (Pre-Heating Zone) - :

यह ऐसा क्षेत्र है जो संगलन क्षेत्र (Melting Zone) से लेकर भरण द्वार (Charging Zone) तक स्थित रहता है। प्री-हीटिंग क्षेत्र में ही चार्ज को डाला जाता है जिसके बाद यह चार्ज नीचे की ओर चलता जाता है।


क्यूपोला की तैयारी तथा कार्य प्रणाली (Preparation & Working of Cupola) -:

क्यूपोला भट्टी अगर नई है तो उसके पार्ट-पुर्जा और उनके गेट को अच्छी तरह जांच करके तथा रेत फर्श बनाकर उसको शुरू किया जाता है। परंतु अगर क्यूपोला भट्टी पुरानी होती है तो उसको अंदर से ठीक प्रकार से साफ और सफाई की जाती है। यदि उसमें तापसह ईंटे टूट गई होती हैं तो उन्हें पुनः ठीक किया जाता है और क्यूपोला की रेत फर्श को अच्छी तरह तैयार किया जाता है। रेत फर्श को तैयार करने के लिए पुराने रेत को चार्जिंग गेट से बाहर नीचे गिराते हैं और उसे ठोककर ढालदार फर्श का निर्माण करते हैं। पिघलने वाली धातुओं से जो मैल निकलती है उसे बाहर निकालने के लिए 35 mm व्यास के एक छिद्र का निर्माण किया जाता है। क्यूपोला भट्टी को चलाने से पहले उसको अच्छी तरह से सूखा लिया जाता है।


क्यूपोला भरण (Charging of Cupola) -:

क्यूपोला में स्थित रेत तल पर सबसे पहले लकड़ियों को जलाया जाता है और जब यह लकड़ियां जलने लगती है तो चार्जिंग गेट के माध्यम से कोक को डाला जाता है। कोक को रेत तल पर इस प्रकार डाला जाता है कि छिद्रों से कुछ ऊपर तक यह एक समान रहे। जब कोक भली-भांति सुलगने लगता है तो वत्या प्रवाह को एक समान दर से नीचे की ओर कर दिया जाता है। जब यह कोक अधिक सुलग जाता है तो कुछ नए कोक को इसके ऊपर डाल दिया जाता है और तब तक डालते हैं जब तक 800 mm की अतिरिक्त सतह ना बन जाए। सतह बनाने के बाद उचित दर पर वायु प्रवाह को चालू कर देते हैं। अब कोक की सतह पर चुने पत्थर का गालक के परत को डाल देते हैं। इस गालक को मिलाने का मुख्य उद्देश्य होता है कि लोहे के अपद्रव्य अलग हो जाएं तथा लोहे का ऑक्सीकरण ना हो।

कोक की परत के बाद धातु के चार्ज के रूप में कच्चा लोहा तथा स्क्रैप लोहे को 25% से 50% तक कोक पर डाला जाता है। इस प्रकार इसी क्रम में चार्ज की परतों को तब तक भरते हैं जब तक कि क्यूपोला भर नहीं जाता है। क्यूपोला भट्टी की पहली परत को बड़ा चार्ज या  संस्तर कहते हैं। बड़े चार्ज की ऊंचाई समुचित और समान रखी जाती है, क्योंकि इसी परत पर क्यूपोला का तापमान, गलने की दर, रासायनिक संगठन इत्यादि निर्भर करते हैं।

सबसे पहले धातु का पहला धातु चार्ज पिघल कर क्रुसिबिल/पात्र में रेत के फर्श पर धीरे-धीरे इकट्ठा होने लगता है। पिघली धातु के ऊपर धातु का मैल हल्का होने के कारण तैरता है। जिसे समय-समय पर स्लैग होल से बाहर निकाल देते हैं। इसी प्रकार अन्य चार्ज पिघलकर पात्र में जाते हैं और ऊपरी चार्ज खिसक कर आते जाते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा पिघली धातु को निरंतर प्राप्त की जाता है। जैसे ही पहला धातु चार्ज पिघल कर नीचे आता है, ऊपर से चार्ज को भर कर पूर्ति करते रहते हैं।

जब धातु को पिघलाने की आवश्यकता नहीं रहती है तो चार्ज को डालना बंद कर देते हैं। परंतु ब्लास्ट (पाइप) प्रवाह को तब तक चालू रखते हैं जब तक की संपूर्ण धातु पिघलकर नीचे इकट्ठे नहीं हो जाती है। धातु के इकट्ठी होने के बाद नीचे के द्वार को हटाकर तल द्वार को खोल देते हैं जिससे बचा हुआ राख, मैल, कोक, अन्य मल इत्यादि बाहर गिर जाते हैं, और बाद में इन्हें ठंडा कर लिया जाता है। क्यूपोला भट्टीयों को सामान्यतः 3 से 4 घंटे तक चलाया जाता है। परंतु इसे 10 घंटों से अधिक समय तक आसानी से लगातार चलाया जा सकता है और पिघली धातु प्राप्त किया जा सकता है।


क्यूपोला भट्टी (Cupola Furnace in Hindi) क्या है?


क्यूपोला का जाम होना (Jamming of Cupola) -:

जब क्यूपोला चलते-चलते धातु गलाने का कार्य बंद कर देती है तो इसे क्यूपोला का जैम होना कहते हैं।

कभी-कभी क्यूपोला भट्टी स्थाई रूप से जाम हो जाती है। जो दुबारा कभी भी पिघली धातु नहीं उपलब्ध करा पाती है। परंतु कभी-कभी यह अस्थाई रूप से जाम होती है जिसको साफ सफाई करने के बाद इससे दोबारा पिघली धातु प्राप्त किया जा सकता है।

क्यूपोला भट्टी जब स्थाई रूप से बंद हो जाती है तो इसका मुख्य कारण यह होता है कि धातु का मैल वायु कक्ष में जाकर जम जाता है। जिसके कारण ट्वीयर द्वार बंद हो जाता है। जिससे क्यूपोला में वायु का प्रवेश नहीं हो पाता है।

इससे बचने के लिए इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि पिघली धातु की सतह, Hearth में इतनी ऊपर ना पहुंचे कि उसके ऊपर तैरने वाला धातु मैल ट्वीयर में घुसकर हवा आने का मार्ग ही बंद कर दें। इसके लिए निरंतर और लगातार पिघली धातु को निकालते रहना चाहिए। जिससे पिघली धातु की सतह अधिक ऊपर ना जा पाए।

जब क्यूपोला अस्थाई रूप से बंद हुई होती है तब भी इससे पिघली धातु नहीं प्राप्त होती है। परंतु इसको ठीक किया जा सकता है और पिघली धातु को प्राप्त किया जा सकता है। जब क्यूपोला भट्टी अस्थाई रूप से जैम/बन्द हो जाती है तो इसका मुख्य कारण यह होता है कि ट्वीयर के द्वारा क्यूपोला में वायु नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसा इसलिए होता है कि ट्वीयर का तापमान कम हो जाता है और वहां पर धातु का मैल ठंडा होकर जम जाता है। इसी कारण ट्वीयरों से होकर जाने वाला वायु का मार्ग बंद हो जाता है और कुछ समय के लिए वायु भट्टी में नहीं कर प्रवेश कर पाती है। और जब वायु क्यूपोला में प्रवेश नही करती है तो ईंधन का दहन पूर्ण रूप से नहीं होता है। ईंधन का दहन पूर्ण रूप से न होने के कारण क्यूपोला भट्टी का तापमान धीरे-धीरे कम होने लगता है। इस अस्थाई जाम से बचने के लिए जल्दी जल्दी ट्वीयर को खोलकर धातु के मैल को एक लोहे की रॉड के द्वारा हटाना चाहिए। जैसे ही यह धातु मैल हट जाता है। क्यूपोला भट्टी फिर से पिघली धातु देना प्रारंभ कर देती हैं।


क्यूपोला भट्टी की उत्पादन क्षमता (Capacity of Cupola) -:

क्यूपोला की उत्पादन क्षमता को मापने के लिए जब क्यूपोला गर्म हो जाती है तो यह पिघली धातु उत्पन्न करती है प्रत्येक घंटे में ये जितनी पिघली धातु उत्पन्न करती है उसी को माप लेने से क्यूपोला की उत्पादन क्षमता ज्ञात कर ली जाती है। इसके लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है -

Fc = Q/Q1 घन मीटर

Q = Fc × Q1

जंहा Fc = πd^2/4


क्यूपोला को चलाने में सावधनियां (Precautions in Operating the Cupola) -:

1. क्यूपोला भट्टी में डाले जाने वाले चार्ज के टुकड़े अधिक बड़े नहीं होने चाहिए।

2. ट्वीयर के पास जमने वाली धातु और धातु के मैल, कोक के टुकड़े को लोहे की छड़ डाल कर हटाते रहना चाहिए।

3. धातु निकलने वाले छेद को मिट्टी से ऐसे बंद करना चाहिए ताकि काम करने वाले श्रमिकों पर पिघले हुए धातु के छिटके ना पड़े।

4. क्यूपोला भट्टी में काम करने वाले श्रमिकों को अपना शरीर सदैव सुरक्षित वस्त्रों से ढक कर रखना चाहिए।

5. क्यूपोला में जब पाइप में वायु का प्रवाह किया जाता है तो यह वायु का प्रवाह नियंत्रित होना चाहिए।

6. पिघली हुई धातु को उपयुक्त समय पर बाहर निकालते रहना चाहिए अन्यथा इसके अधिक की हो जाने पर क्यूपोला जैम हो सकता है।



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