Moulding Sand क्या है? गुण & अवयव/घटक

मोल्डिंग बालू (Moulding Sand in Hindi) -:

मोल्डिंग बालू/रेत , कास्टिंग का एक प्रमुख पदार्थ है जिसका प्रयोग प्रत्येक धातु की कास्टिंग के लिए किया जाता है। अपने तीन प्रमुख गुणों के कारण यह सैंड मोल्डिंग कार्य के लिए उपयुक्त माना जाता है।


मोल्डिंग बालू/रेत । गुण । घटक/अवयव


मोल्डिंग बालू/रेत के गुण (Properties of Moulding Sand in Hindi) -:

इसमें ताप सहने की बहुत अधिक शक्ति होती है। यह पिघली धातु के उच्च ताप पर भी फ्यूज नहीं होता है और अपने आकार को बनाए रखता है। बालू के अंदर इस गुण को ताप सहने की शक्ति (Refractory Nature) कहते हैं।

बालू किसी भी पिघली धातु से कोई भी अभिक्रिया नहीं करता है जिसके कारण कास्टिंग की सतह साफ और सुथरी बनती है। मोल्डिंग बालू का प्रयोग मोल्ड बनाने के लिए किया जाता है।

जब पिघली हुई धातु को मोल्ड के अंदर डाला जाता है तो बहुत सारी गैसे पैदा हो जाती हैं। बालू के मोल्ड से यह गैस, रेत में बने छिद्रों से बाहर आ जाती हैं तथा इससे मोल्ड की सामर्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है  बालू के इस गुण को बालू की पारगम्यता का गुण कहते हैं।


मोल्डिंग बालू के अवयव/घटक (Components/Element of Moulding Sand in Hindi) -:

मोल्डिंग बालू निम्नलिखित अवयव (Elements or Components) से मिलकर बनाए जाते हैं। जो निम्न हैं -

1. सिलिका रेत (Silica Sand)

2. क्ले (Clay)

3. नमी (Moisture)

4. यौगिक अवयव (Additive Elements)


1. सिलिका रेत (Silica Sand) -:

सिलिका रेपको मोल्डिंग बालू का मुख्य अंग कहा जाता है। इस रेत में 50% से 90% तक रिफेक्ट्री रेत होता है।

यह रिफेक्ट्री रेत मोल्डिंग बालू के तीन गुणों में विकास करता है।

a) यह उच्च ताप सहने की शक्ति प्रदान करता है

b) रासायनिक प्रतिरोधकता को बढ़ाता है।

c) पारगम्यता के गुण का विकास करता है।


जब बालू में सिलिका रेत अधिक मात्रा में हो जाता है तो मोल्ड की ग्रीन सामर्थ्य और ड्राई सामर्थ्य दोनों ही कम होने लगती है।

ढलाईशाला के लिए सिलिका रेत को तीन ग्रेडों के रूप में बांटा गया है-

A   -   98%

B   -   95%-98%

C   -   90%-95%

जब मोल्डिंग बालू में बहुत अधिक उच्च गुणवत्ता की जरूरत होती है तो सिलिका रेत के स्थान पर जीरोकोन रेत, ओलीवाइन रेत, चैमोटी रेत तथा क्रोम-मैग्नेसाइट रेत का प्रयोग किया जाता है।

मोल्डिंग बालू में बालू की पारगम्यता तथा मोल्ड की सतह की फिनिशिंग, सिलिका रेत के कणों के साइज और आकार पर निर्भर करता है। जब मोटे सिलिका रेत का प्रयोग किया जाता है तो यह अच्छी पारगम्यता देता है परंतु सतह फिनिशिंग के मामले में यह कमजोर पड़ जाता है। ठीक इसके विपरीत ही महीन रेत पारगम्यता कम देता है परंतु सता फर्निशिंग अच्छी देता है।


सिलिका रेत के प्रकार (Types of Silica Sand) -

आकार के आधार पर सिलिका रेत को चार भागों में बांटा गया है -

A) गोलाईदार कण (Rounded Grains)

B) अर्धकोणीय कण (Sub-Angular Grains)

C) कोणीय कण (Angular Grains)

D) संयुक्त कण (Compounded Grains)


A) गोलाईदार कण (Rounded Grains) -

गोलाईदार कण ऐसे कण होते हैं जिनको दबाने पर भी उनके बीच में खाली स्थान अधिक बच जाता है। इस खाली स्थान के बच जाने के कारण पिघली धातु को मोल्ड में डालने के बाद जो गैसे बनती हैं वह इन्हीं खाली स्थान के मार्ग से होकर गुजर जाती हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गोलाईदार कन अच्छी पारगम्यता देती है। परंतु इसके द्वारा निर्मित मोल्ड की सामर्थ्य कम होती है।


B) अर्धकोणीय कण (Sub-Angular Grains) -

इस कण के द्वारा बनने वाला मोड़ शक्तिशाली होता है परंतु अर्धगोलीय कण की पारगम्यता गोलाइदार कणों की तुलना में कम होती है।


C) कोणीय कण (Angular Grains) -

यह कण ऐसे होते हैं कि इनको मोल्ड में रैमिंग करने पर एक दूसरे में फंसकर अधिक पास पास आ जाते हैं। इसी कारण इनके मध्य खाली स्थान सबसे कम बचता है, कम स्थान बचने के कारण गैसे इनके माध्यम से अधिक पास नहीं हो पाती हैं। इसलिए इनमें पारगम्यता सबसे कम पाई जाती है और सामर्थ्य सबसे अधिक होता है।


D) संयुक्त कण (Compounded Grains) -

ऐसे कण जिनको सीमेंट के द्वारा आपस में जोड़ दिया जाता है। उन्हें संयुक्त कण कहते हैं। यह कण सभी प्रकार के कणों को या उनके मिश्रण को मिलाने पर प्राप्त होता है। संयुक्त कण उच्च ताप पाकर क्रेक होकर टूटने लगते हैं। इसलिए इन कणों को मोल्डिंग बालू के रूप में कभी प्रयोग नहीं किया जाता है।


2. क्ले (Clay) -:

1 mm से छोटे रेत के कणों को क्ले (Clay) कहा जाता है। लेकिन अमेरिकन फाउंडेशन सोसाइटी के अनुसार क्ले की परिभाषा निम्न प्रकार से दी गई है -

" क्ले वे रेत के कण के हैं जो पानी में मिलाने पर 25 mm प्रति मिनट की दर से नीचे नहीं बैठ पाते हैं उन्हें क्ले कहते हैं।"

जब बालू को पानी में घोला जाता है तो क्ले के कण महीन महीन होने के कारण पानी में मिलकर एक पेस्ट बनाते हैं जो सिलिका रेत के कणों पर आसानी से लिपट जाता है और जब मोल्ड का निर्माण किया जाता है तो सिलिका रेत को रैमिंग करते वक्त क्ले, सिलिका रेत के कणों के मध्य एक बांड का कार्य करता है।
क्ले के कण सरंध्रता को कम करते हैं लेकिन मोल्ड की सामर्थ्य को बढ़ाने का कार्य करते हैं।
इन कणो में ताप सहने की अधिक शक्ति नहीं होती है जिसके कारण यह कम ताप पाकर ही फ्यूज होने लगते हैं। इससे मोल्ड के ताप सहने की शक्ति के सामर्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए जब मोल्ड को अधिक सामर्थ्य प्राप्त करना होता है तो कम से कम क्ले का प्रयोग करना चाहिए।
क्ले (Clay) के कण दो प्रकार के होते हैं -

A) महीन सिल्ट - महीन सिल्ट में अशुद्धिया होती हैं जिनके कारण बॉन्डिंग स्ट्रेंथ अच्छी नहीं हो पाती है।

B) शुद्ध क्ले - शुद्ध क्ले में मोल्ड को बांधने का सामर्थ्य होता है।


3. नमी (Moisture) -:

मोल्डिंग रेत की बॉन्डिंग स्ट्रेंथ की क्षमता, क्ले की नमी पर निर्भर होता है। मोल्डिंग रेत में निश्चित मात्रा तक पानी मिलाने पर रेत की सामर्थ्य बढ़ती है परंतु जब अधिक पानी मिलाया जाता है तो रेत का सामर्थ्य घटने लगता है इसलिए रेत में कम से कम क्ले का प्रयोग करना चाहिए जिससे आवश्यक सामर्थ्य प्राप्त हो सके।
जब मोल्डिंग रेत में कम क्ले और अधिक पानी का प्रयोग किया जाता है। तो मोल्ड की ताप सहने की क्षमता/सामर्थ्य बढ़ जाता है तथा गैसों की निकलने की पारगम्यता भी अधिक हो जाती है।


4. यौगिक अवयव (Additive Elements) -:

मोल्डिंग बालू को तैयार करते समय सिलिका रेत, क्ले, नमी के अतिरिक्त कुछ और यौगिक को मिलाने की आवश्यकता पड़ती है, जिन्हें यौगिक अवयव (Additive Elements) कहते हैं।

मोल्डिंग बालू में विभिन्न प्रकार के गुणों को पाने के लिए भिन्न-भिन्न यौगिकों का प्रयोग किया जाता है जिसमें कुछ यौगिकों के नाम निम्न है -

A) कोल डस्ट (Coal Dust)

B) सोडियम सिलिकेट (Sodium Silicate or Water Glass)

C) डैक्सट्रिन (Dextrin)

D) अलसी का तेल (Linseed Oil)

E) सल्फाइट लाई (Sulphite lye)

F) शीरा (Molasses)

G) आयरन ऑक्साइड (Iron Oxide)


A) कोल डस्ट (Coal Dust) -

मोल्ड की दीवारों को पिघली धातु से बचाने के लिए कोल डस्ट (Coal Dust) का प्रयोग किया जाता है। इसको ग्रीन सैंड मोल्डिंग और ड्राई सैंड मोल्डिंग में मिलाकर प्रयोग करने योग्य बनाया जाता है। इसको मिलाने से कास्टिंग की सतह चिकनी और परिष्कृत प्राप्त होती है। Coal Dust, मेटल में पैनीट्रेशन को कम करता है। Coal Dust को मोल्डिंग बालू में प्रयोग करने के लिए इसे छानकर ही रेत में मिलाया जाता है। जब कोल डस्ट पिघली धातु के संपर्क में आता है तो एक गैस का निर्माण होता है वह गैस मोल्ड की दीवार के लिए एकत आवरण (Cover) का कार्य करती है और पिघली हुई धातु को मोल्ड के संपर्क में आने से रोक देती है।


B) सोडियम सिलिकेट (Sodium Silicate or Water Glass) -

सोडियम सिलीकेट को वाटर ग्लास के नाम से भी पुकारा जाता है। इसके द्वारा मोल्ड और कोर दोनों का निर्माण किया जाता है। जब मोल्डिंग बालू को हवा में सुखाया जाता है तो सुखाने पर उसमें शक्ति का प्रवाह होने लगता है और इसके अतिरिक्त भी बहुत सी प्रक्रियाये सूखे हुए बालू से की जा सकती है क्योंकि जब रेत सुख जाता है तो उसमें अनेक गुणों का विकास हो जाता है।


C) डैक्सट्रिन (Dextrin) -

यह रेत में मिलाने पर बाइंडर का काम करता है और रेत को बांधकर रखता है। कभी-कभी इसके स्थान पर स्टार्च का भी प्रयोग किया जाता है।

इसके अतिरिक्त मोल्डिंग बालू में निम्न गुणों का विकास करता है जो नीचे दिए गए हैं -

●बालू में डैक्सट्रिन मिलाने के बाद बालू जल्दी से सुख नही सकते हैं।

●डैक्सट्रिन मिलने के बाद बालू जब सेट हो जाता है तो इसकी शक्ति बढ़ जाती है।

●इसे मिलाने पर बालू की पारगम्यता बढ़ जाती है।

●यह सुखे हुए बालू की सामर्थ्य को बढ़ाता है।


D) अलसी का तेल (Linseed Oil) -

इस तेल कोरको तेल भी कहा जाता है अलसी का तेल, बालू में कोर को तैयार करने के इतना अधिक प्रसिद्घ है कि इसे अलसी का तेल (Linseed Oil) भी कहते हैं।
अलसी का तेल (Linseed Oil) बनस्पति तेल और खनिज तेल का मिश्रण होता है। इस तेल को किसी अन्य  बाइंडर के साथ मिलाया जाता है और उसके बाद इस बालू का उपयोग किया जाता है।

मोल्डिंग के लिए बाडू बनाते समय उसमें अलसी का तेल मिलाकर उसे 200 ℃ से 240 ℃ के तापमान पर लगभग 1 घण्टे से 3 घंटे तक गर्म किया जाता है और उसके बाद इस बालू में स्ट्रेंथ की प्राप्ति होती है।

अलसी के तेल से मिले हुए बालू से कोर का निर्माण करते समय निम्न लाभ होते हैं -

●अलसी के तेल मिले हुए बालू का प्रयोग करने से यह अधिक सामर्थ्यवान बनती है।

●तैयार बालू से निर्मित कोर की सतह कठोर हो जाती है।

●अलसी की तेल मिला हुआ मोल्डिंग बालू से कोर का निर्माण करने पर इस कोर को लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है।


E) सल्फाइट लाई (Sulphite lye) -

जिन कंपनियों में सैलुलोज का निर्माण किया जाता है उसी कंपनी में यह सह-उत्पाद के रूप में बनता है। जब हमें लोहे के बड़े बेलनाकार कास्टिंग और Ingots बनाने की जरुरत होती है तो मोल्डिंग बालू में सल्फाइट लाई मिलाया जाता है।

सल्फाइट लाइ मिलाए गए बालू में निम्न गुण होते हैं -

●सल्फाइट लाई सूखे बालू की सामर्थ्य को बढ़ाता है।

●यह गीले बालू के सामर्थ्य को भी बढ़ाता है।

●बनी हुई मोल्ड में बालू गिरने से बचाता है।


F) शीरा (Molasses) -

शीरे का प्रयोग मोल्डिंग बालू और कोर बालू में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। यह भूरे रंग का चिपचिपा द्रव है जो गाढ़ा होता है। इसे चीनी मील से प्राप्त कर सकते हैं।

शीरे (Molasses) से बनी हुई मोल्ड बालू के निम्न गुण होते हैं -

●शीरा बालू को जल्दी से सूखने नहीं देता है।

●जब शीरा मिला हुआ बालू सुख जाता है तो उसको सामर्थ्य देता है।

●इसकी द्वारा बालू के ग्रीन सामर्थ्य को भी बढ़ाया जाता है।

●अधिक तापमान पाने पर यह कार्बन डाइऑक्साइड का निर्माण करता है और मोल्ड के सतह की कठोरता भी प्रदान करता है।

●इसके प्रयोग से बालू को मोल्ड में गिरने की संभावना कम हो जाती है।


G) आयरन ऑक्साइड (Iron Oxide) -

मोल्डिंग बालू और कोर बाद में आयरन ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता है। आयरन ऑक्साइड को बालू में मिलाने से निम्न गुणों में विकास होता है -

●बालू में अधिक ताप सहने की शक्ति आ जाती है।

●जब बालू का तापमान बहुत अधिक होता है तो आयरन ऑक्साइड कोर को टूटने से बचाता है।

●मोल्ड तथा कोर को अधिक ताप पर क्रैक नहीं होने देता है।

●आयरन ऑक्साइड मिला हुआ बालू धातु में पैनीट्रेशन नहीं होने देता है।



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