मोल्डिंग क्या है? वर्गीकरण/प्रकार - (Classification of Mouding Process in Hindi)

मोल्डिंग प्रक्रम (Moulding Process in Hindi) -:

मोल्ड को तैयार करने के लिए पैटर्न को, तैयार किए गए बालू में अच्छी तरह दबाते हैं और उसके बाद पैटर्न को बाहर निकाला जाता है। पैटर्न को निकालने की वजह से बालू में एक खाली स्थान बन जाता है जिसे मोल्ड कहते हैं और इस पूरी प्रक्रिया/प्रक्रम को मोल्डिंग (Moulding) कहते हैं। 

मोल्डिंग की परिभाषा इस प्रकार भी दी जा सकती है " पैटर्न की सहायता से बालू में सांचा तैयार करने की प्रक्रिया ही मोल्डिंग प्रक्रम (Moulding Process) कहलाती है "

धातु को पिघलाकर उसे किसी वांछित आकार में प्राप्त करने के लिए पैटर्न का निर्माण किया जाता है और इस पैटर्न की सहायता से बालू में सांचा बना लिया जाता है। इस सांचे में पिघली धातु डालकर ठंडी होने के लिए छोड़ दी जाती है और जब धातु ठंडी हो जाती है तो पैटर्न के अनुसार पार्ट का निर्माण होता है।

मोल्डिंग क्या है? वर्गीकरण/प्रकार - (Classification of Mouding Process in Hindi)

मोल्डिंग प्रक्रमों का वर्गीकरण (Classification of Mouding Process in Hindi) -:

सामान्यतः अगर देखें तो सैंड कास्टिंग का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। इसलिए हम बालू के द्वारा मोल्ड बनाने की विधियों का वर्गीकरण करेंगे और जानेंगे कि यह कितने भागों में बांट गए हैं और कितने प्रकार के होते हैं। 

मोल्डिंग प्रक्रमों को नीचे दो भागों में वर्गीकृत किया गया है -

1. मोल्ड को तैयार करने की विधि के अनुसार -

१. हस्त मोल्डिंग (Hand Moulding)

A) पिट मोल्डिंग (Pit Moulding)

B) स्वीप मोल्डिंग (Sweep Moulding)

C) प्लेट मोल्डिंग (Plate Moulding)

D) फ्लोर मोल्डिंग (Floor Moulding)

E) बेंच मोल्डिंग (Bench Moulding)

●दो बॉक्स में मोल्डिंग (Two Box Moulding)

●तीन बॉक्स में मोल्डिंग (Three Box Moulding)

●स्टैक मोल्डिंग (Stack Moulding)

२. मशीन मोल्डिंग (Machine Moulding)


2. मोल्ड में प्रयोग होने वाले बालू के अनुसार -

१. आर्द्र बालू मोल्डिंग (Green Sand Moulding)

२. शुष्क बालू मोल्डिंग (Dry Sand Moulding)

३. स्किन ड्राई मोल्डिंग (Skin Dried Moulding)

४. हवा द्वारा सुखाये मोल्डिंग (Air Dried Moulding)

५. लोम सैण्ड मोल्डिंग (Loam Sand Moulding)

६. सीमेन्ट सैण्ड मोल्डिंग (Cement Sand Moulding)

७. सोडियम सिलिकेट प्रक्रिया (Sodium Silicate Process)

८. शैल मोल्डिंग प्रोसेस (Shell Moulding Process)


अब विस्तार से -

1. मोल्ड को तैयार करने की विधि के अनुसार -:

१. हस्त मोल्डिंग (Hand Moulding) -:

ऐसे मोल्डिंग प्रक्रम जिनमें कोई भी मोल्डिंग मशीन प्रयोग नहीं कही जाती है बल्कि इन्हें हाथ के छोटे-छोटे औजारों का प्रयोग करके बालू द्वारा मोल्ड का निर्माण किया जाता है ऐसे मोल्डिंग को हस्त मोल्डिंग (Hand Moulding) कहते हैं।


A) पिट मोल्डिंग (Pit Moulding) -:

इस मेल्डिंग के द्वारा बहुत बड़े कास्टिंग को तैयार किया जाता है। इस कास्टिंग को करने के लिए जमीन में गड्ढा खोदकर एक पीट तैयार किया जाता है। इस पीट की दीवारों को सीमेंट और कंक्रीट से पक्का कर देते हैं और इसके तल में चारकोल या कोक डाल दिया जाता है जिससे कि गैसे आसानी से बाहर निकल सकें।

अब तैयार किए गए पीट में पैटर्न को लटकाकर उसके चारों ओर रैमिंग किया जाता है और जब पैटर्न निकालना होता है तो पैटर्न को निकालने से पहले उसका कोप बना लिया जाता है। इस मोल्डिंग को करने के लिए विशेष प्रकार के बालू का प्रयोग किया जाता है क्योंकि एक ही मोल्ड तैयार करने में कई दिनों का समय लगता है। कोप को बोल्ट के द्वारा पीट के ऊपर कस दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि पार्टिंग प्लेन से पिघली धातु कहीं बाहर ना निकलने लगे। पिघली धातु डालने के बाद कास्टिंग को धीरे-धीरे ठंडा होने दिया जाता है क्योंकि अगर कास्टिंग तेज गति से ठंडा होता है तो उसमें ऐंठन आने की संभावना रहती है और इंटरनल स्ट्रेस भी उत्पन्न हो सकता है।


B) स्वीप मोल्डिंग (Sweep Moulding) -:

इस विधि का प्रयोग तब करते हैं जब स्वीप पैटर्न के द्वारा मोल्ड बनाया जा रहा हो। स्वीप मोल्डिंग की कास्टिंग एक प्रकार से सॉलिड आफ रिवॉल्यूशन होती है। इसलिए इसे प्राप्त करने के लिए विशेष प्रोफाइल के प्लेन को किसी अक्ष के विरुद्ध घुमाया जाता है। जब स्वीप मोल्डिंग का प्रयोग किया जाता है तो कास्टिग की संरचना के अनुसार फर्श पर एक फिट बनाया जाता है और जब पिट गहरा होता है तो ईटों का प्रयोग करके दीवारें तैयार की कर ली जाती हैं। अब इन दीवारों पर लोम बालू की मोटी परत चढ़ा दी जाती है और एक केंद्रीय स्थान पर स्वीप पैटर्न को फंसा दिया जाता है। अब स्वीप पैटर्न की सहायता से सांचे का आकार व साइज बना लिया जाता है। कास्टिंग की सतह को अधिक चिकना और परिष्कृत प्राप्त करने के लिए मोल्ड पर कोर को लगा दिया जाता है।


C) प्लेट मोल्डिंग (Plate Moulding) -:

प्लेट मोल्डिंग में पैटर्न को दो भागों में बनाकर, एक प्लेट की दोनों पृष्ठों पर सावधानीपूर्वक समय रेखीय स्थिति में उसको कस दिया जाता है। अगर प्लेट मोल्डिंग के द्वारा छोटा कास्टिंग होता है तो एक से अधिक पैटर्न भी प्लेट पर इसी प्रकार कसे जा सकते हैं। इतना करने के बाद प्लेट को ड्रैग तथा कोप के बीच में रखकर इसमें बालू भरा जाता है। प्लेट को इस प्रकार रखते हैं कि उसका एक पृष्ठ ड्रैग में तथा दूसरा पृष्ठ कोप में मोल्ड बनाता हो। अंतः कोप को हटाकर प्लेट को बाहर निकाला जाता है और जब कोप को पुनः ड्रैग के ऊपर रखा जाता है तो मोल्ड पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो जाता है।


D) फ्लोर मोल्डिंग (Floor Moulding) -:

फ्लोर मोल्डिंग में मोल्डिंग बालू के फर्श पर ही खुले मोल्ड को बनाया जाता है और आवश्यकतानुसार कोर का भी प्रयोग किया जाता है। अब मोल्डिंग बालू के फर्श में पैटर्न को दबाकर मोल्ड बना लिया जाता है। इस मोल्डिंग विधि में पिघली हुई धातु को मोल्ड में डालने के लिए पोरिंग का कप प्रयोग नही किया जाता है बल्कि पिघले धातु को सीधे मोल्ड में ही गिरा दिया जाता है। जबकि यह मोल्ड ऊपर से खुला होता है इसी कारण इसके ऊपर की सतह भद्दी और असमान दिखती है। इसलिए इसमें केवल वही कास्टिंग किए जाते हैं जिनके ऊपर की सतह को परिष्कृत करने की आवश्यकता नहीं होती है। जब कभी फ्लोर मोल्डिंग के सतह को चिकना प्राप्त करना होता है तो उसके ऊपर एक मोल्डिंग बॉक्स को कोप की भाति रख दिया जाता है। परंतु मोल्डिंग बॉक्स जो कोप की भांति दिखता है इसमें पोरिंग कप और राइजर की व्यवस्था की जाती है ताकि उसमे उत्पन्न गैसे आसानी से बाहर निकल सकें। इस तरह इस विधि के द्वारा कास्टिंग की ऊपरी सतह को भी परिष्कृत बनाया जा सकता है। इस विधि को वन बॉक्स मेथड कहते हैं।

फ्लोर मोल्डिंग का प्रयोग बड़ी-बड़ी कास्टिंग को बनाने के लिए किया जाता है और यह बहुत ही सस्ती विधि है।


E) बैंच मोल्डिंग (Bench Moulding) -:

इस मोल्डिंग के द्वारा छोटी और कम भार की कास्टिंग की जाती है। बैंच मोल्डिंग में बालू को अंदर भरके पैटर्न द्वारा मोल्ड को तैयार किया जाता है। बैंच मोल्डिंग में आवश्यकता अनुसार मोल्डिंग बॉक्स का प्रयोग किया जाता है।

प्रयोग किए गए बॉक्स की संख्या के आधार पर इसको तीन भागों में बांटा गया है -

●दो बॉक्स में मोल्डिंग (Two Box Moulding)

●तीन बॉक्स में मोल्डिंग (Three Box Moulding)

●स्टैक मोल्डिंग (Stack Moulding)


दो बॉक्स में मोल्डिंग (Two Box Moulding)

बैंच मोल्डिंग में इस विधि से मोल्ड को तैयार करने के लिए इसमें दो बक्सों का प्रयोग किया जाता है। दोनों बॉक्सो को ऊपर-नीचे प्रयोग किया जाता है। नीचे वाले बॉक्स को ड्रैग तथा ऊपर वाले बॉक्स कोप कहते हैं। इन दोनों बॉक्स को फिट रखने के लिए उसमें क्लैंप और गाइड की व्यवस्था की जाती है। इन दोनों बॉक्सो की मोल्डिंग ठोस या स्पिल्ट पैटर्न के द्वारा किया जाता है।


तीन बॉक्स में मोल्डिंग (Three Box Moulding)

जब कास्टिंग ऐसी बनानी होती है कि उसका मोल्ड बनाना दो बॉक्स द्वारा सम्भव नही हो पाता है। इस प्रकार की कास्टिंग के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। इसमें कोप तथा ड्रैग के अतिरिक्त एक तीसरा बॉक्स भी प्रयोग किया जाता है जिसे चीक (Cheek) कहा जाता है।


स्टैक मोल्डिंग (Stack Moulding)

जब हमें छोटी कास्टिंग बनाना होता है तो यह संभव है कि प्रत्येक पैटर्न के ऊपर मोल्ड बॉक्स को एक साथ रखा जा सके और उसमें पिघली धातु डाली जा सके। इसमें सबसे ऊपर जो बॉक्स लगा होता है वह कोप का कार्य करता है और जो सबसे नीचे बॉक्स लगा होता है वह कॉप का ड्रैग का कार्य करता है। स्टैक मोल्डिंग का प्रयोग करते समय यदि कास्टिंग की ऊपरी सतह समतल होती है तो मोल्ड बनाने में अधिक सुविधा हो जाता है। पिघली धातु को मोल्ड में डालने के लिए एक मार्ग होता है जो सभी बॉक्स से मिलता है। इससे एक ही बार में कई कास्टिंग तैयार हो जाती है।


२. मशीन मोल्डिंग (Machine Moulding) -:

जब आलू के मूल्य को बनाने के लिए मशीन का सहारा लिया जाता है इस प्रक्रिया से बनने वाले मोल्ड को मशीन मोल्डिंग कहते हैं। इस प्रक्रिया में अधिक से अधिक पावर लेकर चलने वाली यंत्र का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में मशीन के द्वारा बालू को दबाने, पैटर्न को बाहर निकालने जैसे अनेकों कार्य किया जाता है।

मशीन के द्वारा मोल्ड बनाने से उत्पादन दर तो बढ़ती है और साथ ही मोल्ड में बालू के दाब पर भी नियंत्रण किया जाता है। मशीन मोल्डिंग का प्रयोग किया जाता है तो इसमें हाथ से चलने वाली और पावर से चलने वाली दोनों प्रकार की मशीनें होती हैं।

हाथ द्वारा चलने वाली मशीनों पर एक या एक से अधिक ऑपरेशन किए जाते हैं जैसे रेमिंग, पैटर्न को मोल्ड से बाहर निकालना, मोल्ड को उलटना इत्यादि ऑपरेशन हस्त चलित मशीन द्वारा ही किये जा सकते हैं। और इसमें जो मशीनें पावर द्वारा चलती हैं उन्हें मोटर आदि की सहायता से चलाया जाता है।

साधारण मोल्डिंग में निम्न मशीनों का प्रयोग किया जाता है -

(A) स्क्यूज मशीन (Squeeze Machine)

B) जोल्ट मशीन (Jolt Machine)

(C) जोल्ट स्क्यूज मशीन (Jolt-Sqeeze Machine)

(D) स्लिंजिंग मशीन ( Slinging Machine )

(E) ब्लो-स्क्यूज मशीन (Blow-Squeeze Machine)

(F) उच्च दाबयुक्त मोल्डिंग मशीन (High Pressure Moulding Machine)

(F) प्रातरूप को निकालने वाली मशीनें (Pattern Drawing Machines)


जो मशीनें चलने के लिए उच्च दाब का प्रयोग करती हैं उनके द्वारा बनाई गई कास्टिंग की सतह समतल और परिष्कृत होती है। परंतु ध्यान यह रखना चाहिए कि जो मोल्डिंग बालू प्रयोग हो रहा है वह उच्च गुणवत्ता का ही होना चाहिए। जब बालू/रेत को ऊंचे दाब पर दबाया जाता है तो गैसों की पारगम्यता कम होने लगती है जिसके कारण कास्टिंग में ब्लो होल जैसी दोष आने का भय रहता है। मशीन मोल्डिंग में होने वाले दोष से बचने के लिए सदैव कृत्रिम मोल्डिंग बालू को बेंटोनाइट बाइंडर के साथ प्रयोग करना चाहिए।


मशीन मोल्डिंग के लाभ (Advantages of Machine Moulding in hindi) -:

a) एक ही जैसी कास्टिंग बनाने के लिए मशीन द्वारा कम समय में अधिक मोल्ड तैयार किए जा सकते हैं।

b) जो कास्टिंग मशीन मोल्डिंग के द्वारा बनाए जाते हैं उनके पैटर्न में कम अलाउंस दिए गए होते हैं। इसी कारण यह कास्टिंग ज्यादा परिष्कृत होते हैं।

c) मशीन मोल्डिंग का प्रयोग करने से श्रमिकों को कम कार्य करना पड़ता है। जिसके कारण श्रमिक अधिक समय तक आसानी से कार्य कर सकते हैं।

d) इसे मोल्डिंग द्वारा बनाए गए कास्टिंग के कोप तथा ड्रैग का एलाइनमेंट अधिक चिकना प्राप्त होता है।

e) कम कुशल कारीगर भी मशीन मोल्डिंग द्वारा मोल्डिंग का कार्य कर सकता है।


2. मोल्ड में प्रयोग होने वाले बालू के अनुसार -

१. आर्द्र बालू मोल्डिंग (Green Sand Moulding)

२. शुष्क बालू मोल्डिंग (Dry Sand Moulding)

३. स्किन ड्राई मोल्डिंग (Skin Dried Moulding)

४. हवा द्वारा सुखाये मोल्डिंग (Air Dried Moulding)

५. लोम सैण्ड मोल्डिंग (Loam Sand Moulding)

६. सीमेन्ट सैण्ड मोल्डिंग (Cement Sand Moulding)

७. सोडियम सिलिकेट प्रक्रिया (Sodium Silicate Process)

८. शैल मोल्डिंग प्रोसेस (Shell Moulding Process)


१. आर्द्र बालू मोल्डिंग (Green Sand Moulding) -:

पिघली हुई धातु को मोल्ड में उड़ेलते समय जब मोल्ड की बालू आर्द्र ही रहती है तो उस बालू को ग्रीन सेंड मोल्डिंग कहते हैं। होने वाली कास्टिंग प्रक्रिया में 9% तक कास्टिंग ग्रीन सैंड मोल्डिंग से ही की जाती है।


आर्द्र बालू/रेत मोल्डिंग (Green Sand Moulding) के लाभ -

a) आर्द्र बालू/रेत मोल्डिंग का प्रयोग हाथ द्वारा और मशीनों द्वारा सफलतापूर्वक किया जाता है।

b) इस मोल्डिंग का प्रयोग सभी साइज के लिए और सभी आकार के लिए किया जाता है।

c) आर्द्र बालू/रेत मोल्डिंग में मोल्ड बॉक्स आपस में अच्छी तरह जुड़े होते हैं जिसके कारण माल बाहर निकलने का अवसर कम ही मिलता है।

d) यह प्रक्रिया सस्ती है क्योंकि बालू को सुखाने हेतु ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है तथा समय की बचत हो जाती है।

e) जो बालू/रेत प्रयोग में लाया जा चुका होता है उसे पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है।

f) आर्द्र बालू/रेत मोल्डिंग इतनी लचीली प्रक्रिया है कि गर्मी खाकर भी इसमें दरार नहीं पड़ती हैं।

g) इसका प्रयोग करने से मोल्ड बनाने, कास्टिंग करने और उन्हें बाहर निकालने की प्रक्रिया लगातार की जा सकती है।

h) ग्रीन सैंड मोल्डिंग में प्रयोग होने वाले बालू में नमी रहती है जिसके कारण पिघली धातु डालने पर भी इसके क्ले बहुत कम मात्रा में जल पाते हैं अतः बालू को बार-बार इसीलिए कारण प्रयोग किया जाता है।


२. शुष्क बालू मोल्डिंग (Dry Sand Moulding) -:

इस प्रक्रिया को करते समय ऐसे मोल्डिंग बालू का प्रयोग किया जाता है जो शुष्क होने के बाद भी अपने अंदर सामर्थ्य रखता है। शुष्क बालू मोल्डिंग में नमी की मात्रा 6% से 8% होती  है जिससे बालू की ग्रीन स्ट्रेंथ का सामर्थ्य भी बन सके। इस प्रक्रिया को भी ग्रीन सेंड मोल्डिंग के ही समान तैयार करते हैं और इस पर शीरा मिला हुआ पानी छिड़का जाता है। इसके बाद मूल्य को ओवन में 200℃से 400℃ के तापक्रम पर रखकर सुखाया जाता है और मूल्य की सारी नमी को बाहर निकाल दिया जाता है।

यह प्रक्रिया महंगी होती है क्योंकि इसमें विशेष प्रकार के बाइंडर का प्रयोग किया जाता है और मोल्ड को सुखाने के लिए अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है। ड्राई सैंड मोल्डिंग के द्वारा बड़े साइज की कास्टिंग बनाई जाती है।


शुष्क बालू मोल्डिंग के लाभ -

a) शुष्क बालू मोल्डिंग ज्यादा सामर्थ्यवान होते हैं और यह आसानी से हैंडल भी किए जा सकते हैं।

b) जो दोष ग्रीन सैंड के कारण उत्पन्न होते हैं वे दोष इसमें उत्पन्न नहीं होते हैं।

c) इस मोल्डिंग प्रक्रम में कम पारगम्यता वाला बालू भी आसानी के साथ प्रयोग किया जाता है।

d) शुष्क बालू मोल्डिंग के द्वारा सतह ज्यादा परिष्कृत प्राप्त होता है क्योंकि धातु के दाब के कारण मोल्ड की बीमा में अधिक परिवर्तन नहीं आता है।

e) इस प्रक्रिया के द्वारा पतले सेक्शन भी सफलतापूर्वक कास्टिंग किए जाते हैं।


३. स्किन ड्राई मोल्डिंग (Skin Dried Moulding) -:

हम जानते हैं कि ग्रीन सैंड मोल्डिंग में कास्टिंग करते समय पिन होल और ब्लो होल दोष आता है जबकि ड्राइ सैंड मोल्डिंग में मोल्ड की सामर्थ्य ही कम हो जाती है और मोल्ड को सुखाने के लिए कुछ खर्च भी करना पड़ता है।

इसी को ध्यान में रखते हुए इन दोनों प्रकार के मोल्डिंग के गुणों को एक साथ करने के लिए स्किन ड्राइड मोल्डिंग का प्रयोग किया जाता है। इस मोल्डिंग को करते समय मोल्ड की सतह को लगभग 25mm की गहराई तक गैस टॉर्च के द्वारा सुखाया जाता है और जब सतह की कठोरता बढ़ानी होती है तो मोल्ड की सतह पर बाइंडर मिला पानी का छिड़काव किया जाता है और उसके बाद सुखाया जाता है। पानी का छिड़काव करने के बाद जल्द से जल्द कास्टिंग कर देनी चाहिए अन्यथा गीले भाग से नमी शुष्क भाग में चली जाती है।


४. हवा द्वारा सुखाये मोल्डिंग (Air Dried Moulding) -:

यह स्किन ड्राई मोल्डिंग के समान होता है। इसमें अंतर यह है कि Air Dried Moulding को सुखाने के लिए गैस टॉर्च या गर्म हवा के स्थान पर वायुमंडलीय हवा का प्रयोग किया जाता है। ग्रीन सेंड से मोल्ड को तैयार करने के पश्चात कुछ दिनों के लिए उसे हवा में सुखाने के लिए छोड़ देते हैं। हवा द्वारा मोल्ड की ऊपरी सतह का पानी वाष्पीकृत हो जाता है।


५. लोम सैण्ड मोल्डिंग (Loam Sand Moulding) -:

इस मोल्डिंग को करने के लिए सरंध्र ईंटो की संरचना तैयार कर लिया जाता है। संरचना तैयार करने के बाद उसके ऊपर 6mm से 12mm मोटी लोम की बालू की परत चढ़ाई जाती है और स्वीप बोर्ड के द्वारा फिनिश कर लिया जाता है। लोम सैण्ड मोल्डिंग में पैटर्न की आवश्यकता नहीं पड़ती है। लोम सैण्ड मोल्डिंग (Loam Sand Moulding) के द्वारा गोल, बेलनाकार कास्टिंग की जाती है। इस मोल्डिंग को करने के लिए कुशल कारीगर की आवश्यकता पड़ती है।


६. सीमेन्ट सैण्ड मोल्डिंग (Cement Sand Moulding) -:

इस विधि को बहुत प्राचीन विधि मानी जाती है। पुराने समय में इसे Randupson Process कहा जाता था। सीमेंट सैंड मोल्डिंग में सिलिकन सैंड में 6% - 12% तक सीमेंट मिलाकर और आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर मोर्टार (Mortar) का निर्माण किया जाता है। मोर्टार की सहायता से मोल्ड को तैयार किया जाता है। सीमेंट मिले होने के कारण मोल्ड बहुत ही सामर्थ्यवान बनता है। सीमेन्ट सैण्ड मोल्डिंग (Cement Sand Moulding) में से पैटर्न को गीली अवस्था मे ही निकाल लिया जाता है।


सीमेन्ट सैण्ड मोल्डिंग (Cement Sand Moulding) के लाभ -

a) जब मोल्ड सूखता है तो मोल्ड की ड्राई स्ट्रैंथ बहुत अधिक हो जाती है।

b) प्रयोग किए गए बालू को पुनः सीमेंट और पानी मिलाकर उपयोग में लाया जा सकता है।

c) इस मोल्डिंग के द्वारा कास्टिंग की सतह साफ-सुथरी मिलने के साथ-साथ आकार भी सही परिमाप में प्राप्त हो जाता है।

d) इसके लाभ तो बहुत हैं परंतु सीमेंट का प्रयोग होने के कारण और बालू को पुनः प्रयोग के योग्य बनाने की मुश्किलों के कारण इसका प्रचलन सीमित हो गया है।

e) इस विधि के प्रयोग करने से मोल्डिंग में पारगम्यता बहुत अच्छी होती है।


७. सोडियम सिलिकेट प्रक्रिया (Sodium Silicate Process) -:

सोडियम सिलिकेट प्रक्रिया (Sodium Silicate Process) के दौरान सिलिका बालू के साथ बाइंडर के रूप में सोडियम सिलिकेट को उपयोग में लाया जाता है और मोल्ड की सामर्थ्य बढ़ाने के लिये पिच,लकड़ी का बुरादा, कोल डस्ट को मोल्डिंग बालू में मिलाते हैं। मोल्ड बनाने के बाद इसमें से कार्बन डाइऑक्साइड गैस को पार कराया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड को मोल्ड में से गुजारने के लिए मोल्ड में छोटे-छोटे छिद्रों के निर्माण किया जाता है। सोडियम सिलकेट, कार्बन डाइऑक्साइड से क्रिया करके मोल्ड के सामर्थ्य को बढ़ाने का काम करते हैं। इस बात को सदैव ध्यान रखना चाहिये कि कार्बन डाइऑक्साइड को उचित मात्रा पर मिलाने पर सामर्थ्य तो बढ़ता है परंतु जब कार्बन डाइऑक्साइड को अधिक मात्रा में मिला दी जाती है तो मोल्ड का सामर्थ्य घटने लगता है। सामान्यतः मोल्ड में उपस्थित सोडियम सिलिकेट के लिए 1 किलोग्राम पर 0.5-0.75 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता रहती है।


सोडियम सिलिकेट प्रक्रिया (Sodium Silicate Process) के लाभ -

a) सोडियम सिलिकेट प्रोसेस के निम्नलिखित लाभ हैं 

b) मोल्ड और कोर अधिक सामर्थ्यवान बनते हैं।

c) इस विधि से मोल्डिंग करने पर कास्टिंग की सतह की फिनिशिंग अच्छी हो जाती है।

d) सोडियम सिलिकेट प्रक्रिया प्रयोग करने से कास्टिंग में सैण्ड इन्क्लूजन (Sand Inclusion) दोष कम आता है।

e) इस प्रक्रिया में बालू की फ्लोएबिलिटी क्षमता का विकास होता है। इस कारण रेत को अधिक दबाने की आवश्यकता नहीं होती है।

f) इसके मोल्ड तथा कोर को पकाने की जरूरत नहीं रहती है।

g) इस विधि का प्रयोग करने से कास्टिंग के साइज ज्यादा यथार्थ प्राप्त होते हैं।

h) इस प्रोसेस में जब गर्म धातु को मोल्ड में डाला जाता है तो गैस कम बनती है।

i) सोडियम सिलिकेट प्रोसेस के मोल्ड में से पैटर्न को आसानी से निकाला जा सकता है।


सोडियम सिलिकेट प्रक्रिया (Sodium Silicate Process) से हानि -

a) कास्टिंग करने के बाद बालू को छुड़ाना मुश्किल होता है। 

b) मोल्डिंग बालू को पुनः प्रयोग करने योग्य बनाना काफी अधिक महँगा तथा मुश्किल होता है।

c) इस प्रक्रिया में प्रयोग होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अन्य हार्डनिंग एजेन्ट के साथ मिलाने की आवश्यकता रहती है।


८. शैल मोल्डिंग प्रक्रिया (Shell Moulding Process) -:

इस प्रक्रिया को बाइंडर ऑर्गेनिक माना जाता है। इस विधि में सोडियम सिलिकेट, आयल और क्ले के स्थान पर  रेजिन, यूरिया, फार्मेल्डिहाइड इत्यादि का बाइंडर के रूप में उपयोग किया जाता है। शैल मोल्डिंग प्रोसेस (Shell Moulding Process) की लागत अधिक आती है। परन्तु इसके द्वारा बड़ी कास्टिंग नही की जा सकती है। इस विधि का प्रयोग करके जटिल से जटिल कास्टिंग को भी सुविधापूर्वक किया जा सकता है। इसमें कोर के खोल और मोल्ड को बनाने के लिए सिलिका बालू/रेत और थर्मोसेटिंग रेजिन को मिलाकर प्रयोग किया जाता है।


शैल मोल्डिंग प्रक्रिया लाभ -

a) शैल मोल्डिंग प्रक्रिया अपनाने से उच्च सतह परिष्करण प्राप्त हो जाता है।

b) जब इस विधि का प्रयोग किया जाता है यो बहुत कम टॉलरेन्स की कास्टिंग को बनाया जाता है।

c) शैल मोल्डिंग प्रयोग करने से बहुत कम मोटाई की कास्टिंग तैयार की जाती है।

d) शैल मोल्डिंग में सैण्ड कास्टिंग से कम तापमान पर कास्टिंग किया जा सकता है।


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