मोल्ड (Mould in Hindi) -:
पैटर्न (pattern) को विशेष प्रकार से तैयार बालू में अच्छी तरह से दबाते है और यह क्रिया करने के बाद पैटर्न को बालू से बाहर निकाला जाता है। जब पैटर्न बाहर निकाल लिया जाता है तो बालू में पैटर्न के आकार का खाली स्थान बन जाता है। इसी खाली स्थान को ही मोल्ड (Mould) कहते हैं तथा इस प्रक्रिया को मोल्डिंग (Moulding) कहा जाता है। पिघली हुई धातु को खाली भाग या मोल्ड में भरकर ठण्डा होने दिया जाता है। जब यह पिघली धातु ठण्डी हो जाती है तो ठोस रूप से ग्रहण कर लेती है। धातु को डालने से लेकर, ठंडी होने तक की प्रक्रिया को कास्टिंग (Costing) कहते हैं।
कास्टिंग करने के लिए पिघली हुई धातु को मोल्ड तक ले जाने के लिए कुछ छोटे या बड़े भाग को पैटर्न से जोड़ने की आवश्यकता पड़ती है।
मोल्ड के भाग (Mould Parts in Hindi) -:
मोल्ड में निम्न भागों की में व्यवस्था की जाती है -
1. पोरिंग कप या बेसिन (Pouring Cup or Basin)
2. स्प्रू (Sprue)
3. रनर (Runner)
4. गेट (Gate)
5. राइजर (Riser)
1. पोरिंग कप या बेसिन (Pouring Cup or Basin) -
कोप के ऊपरी सतह को काटकर, स्प्रू में पिघली धातु को उड़ेलने के लिए पोरिंग कप या बेसिन (Pouring Cup or Basin) को बनाया जाता है। इसके द्वारा धातु उड़ेलने से धातु इधर-उधर नहीं बिखरती-गिरती है।
2. स्प्रू (Sprue) -
गेट और रनर को कप से जोड़ने के लिए कोप में ऊर्ध्वाधर बनाये गए रास्ते को स्प्रू (Sprue) कहते हैं। पिघली हुई धातु को इसी रास्ते से मोल्ड के अंदर डाला जाता है जो रनर और गेट से होते हुए मोल्ड में प्रवेश करती है।
3. रनर (Runner) -
पिघली धातु को स्प्रू (sprue) से गेट तक पहुँचाने के लिए जिस माध्यम का प्रयोग किया जाता है उसे रनर (Runner) कहते हैं। सामान्यतः इसका निर्माण ड्रैग (Drag) में किया जाता है। जब पिघली धातु को स्प्रू में डालते हैं तो यह पिघला हुआ धातु रनर से होकर गेट के रास्ते मोल्ड में प्रवेश करता है।
4. गेट (Gate) -
रनर को मोल्ड से जोड़ने के लिए गेट (Gate) बनाया जाता है। इसका निर्माण भी ड्रैग के अन्दर ही किया जाता है। गेट को मोल्ड में ही निर्मित किया जाता है। पिघला धातु स्प्रू और रनर से होते हुए गेट के मार्ग से मोल्ड में मिलता है।
5. राइजर (Riser) -
कोप में मोल्ड के ऊपर ही स्प्रू जैसा भाग का निर्माण किया जाता है, जिसे राइजर (Riser) कहते हैं। मोल्ड का निर्माण करते समय इसका भी निर्माण कर दिया जाता है। इसके निर्माण के लिए पैटर्न के ऊपर लकड़ी का बना डण्डा (Rod) बालू भरते मोल्ड में रख दिया जाता है। जब मोल्ड बन जाती है तो इस डंडे को निकाल दिया जाता है जैसे ही इस डण्डे को निकाला जाता है वँहा पर रास्ता बन जाता है। जब पिघली धातु की मोल्ड में डाला जाता है तो गर्म गैसें राइजर से होते हुए बाहर निकल जाती है। जब पिघली धातु ठण्डी हो जाती है तो यह सिकुड़ने लगती है जिसके कारण उसमें कुछ स्थान खाली हो जाता है। उस खाली स्थान को पिघली धातु के द्वारा राइजर के माध्यम से भर देते हैं। जिसके कारण मोल्ड के कास्टिंग में धातु की कमी नहीं आती है।
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