Centrifugal Casting Process क्या है? प्रकार । लाभ और हानि । प्रयोग

सेंट्रीफ्युगल कास्टिंग (Centrifugal Casting in Hindi) -:

ऐसी कास्टिंग विधि जिसके द्वारा खोखली और बेलनाकार वस्तुओं की ढलाई या कास्टिंग की जाती है तथा उनकी भीतरी सतहों पर धातु की परत चढ़ाने का कार्य किया जाता है उसे सेंट्रीफ्युगल कास्टिंग (Centrifugal Casting) कहते हैं। सेंट्रीफ्यूगल कास्टिंग विधि का प्रयोग करके खोखली और बेलनाकार वस्तुओं का निर्माण किया जाता है तथा खोखली और बेलनाकार वस्तुओं की भीतरी सतह पर धातु की परत भी चढ़ाया जाता है।


सेंट्रीफ्युगल कास्टिंग प्रक्रम (Centrifugal Casting Process in Hindi)


इस विधि द्वारा कास्टिंग करने के लिए घूमते हुए सांचे में पीली धातु को डाला जाता है। अपकेंद्री बल के कारण पिघला हुआ धातु सांचे के किनारे-किनारे जमने लगता है। जिसके फलस्वरूप पिघली धातु में से निकलने वाले गैसों का निकास सुगमतापूर्वक हो जाता है और धातु का मैल भी हल्का होकर पिघली धातु से अलग हो जाता है। घूमते हुए पैटर्न में से धातु का मैल और गैस निकल जाने के कारण केवल पिघली धातु ही कास्टिंग के लिए बचती है, जिसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब पहली धातु ठंडी हो जाती है तो साँचे को खोल कर कास्टिंग को निकाल लिया जाता है। इस विधि द्वारा कास्टिंग करने के लिए हमें गेट, राइजर, कोर, रनर इत्यादि की आवश्यकता नहीं पड़ती है तथा इससे प्राप्त होने वाला कास्टिंग अधिक सामर्थ्यवान भी होता है।


सेंट्रीफ्युगल कास्टिंग के प्रकार (Types of Centrifugal Casting in Hindi) -:

ये कॉस्टिंग को तीन विधियों द्वारा किया जा सकता है, जो निम्न हैं।

1. पूर्ण अपकेंद्रीय ढलाई (True Centrifugal Casting)

2. अर्ध-अपकेंद्री ढलाई (Semi-Centrifugal Casting)

3. सेंट्रीफ्यूजिंग (Centrifuging)


1. पूर्ण अपकेंद्रीय ढलाई (True Centrifugal Casting) -:

ट्रू सेंट्रीफ्युगल कास्टिंग विधि के द्वारा पिघली धातु को सांचे में जब डाला जाता है तो वह घूमते हुए साँचे में उत्पन्न हो लेने वाले अपकेंद्रीय बल के कारण सांचो की दीवारों पर जाकर जम जाता है। पिघली धातु को सांचो की दीवारों पर जाकर जमने के कारण खोखली कास्टिंग का निर्माण होता है। इस विधि में सांचा घूमता रहता है। साँचे की घूमने की दिशा होरिजेंटल, वर्टिकल या कोणीय हो सकती हैं। पूर्ण अपकेंद्रीय ढलाई विधि में कोर लगाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

इस विधि के द्वारा खोखली और बेलनाकार , जैसे - बूश गन बैरल, कास्ट आयरन के पाइप, खोखले प्रोपेलर शाफ्ट इत्यादि का निर्माण किया जाता है।


2. अर्ध-अपकेंद्री ढलाई (Semi-Centrifugal Casting) -:

ऐसी कास्टिंग, जो अपने अक्ष के समरूप होती हैं तथा भारी होती है उनकी ढलाई करने के लिए सेमी-सेंट्रीफ्युगल कास्टिंग (Semi-Centrifugal Casting) का प्रयोग किया जाता है। इस विधि के द्वारा ऐसे भारी कास्टिंग को किया जाता है जो अपने अक्ष के समरूप होती हैं। जैसे - पुली, डिस्क, स्पोक वाले पहिए, गियर प्रोपेलर इत्यादि।

इस विधि में कास्टिंग करने के लिए सांचा वर्टिकल अक्ष पर घूमता है और इस घूमते हुए सांचे में पिघली धातु को डाला जाता है। पिघली हुई धातु अपकेंद्री बल के कारण सांचे में पहुंच जाता है और ठंडा होकर ठोस कास्टिंग बन जाता है। इसके पश्चात सांचे को खोल कर कास्टिंग को बाहर निकाल लिया जाता है। सांचे में पिघली हुई धातु डालने के बाद वो बाहर निकल कर किसी को हानि ना पहुंचाएं इसके लिए मशीन के चारों ओर स्टील की एक चादर लगा दिया जाता है।

इस विधि का प्रयोग करके साधारण तौर पर केवल ठोस कास्टिंग का ही निर्माण किया जाता है जब यह कास्टिंग बन जाती हैं तो इन पर मशीनिंग क्रिया करके इन्हें खोखला बनाया जाता है।


3. सेंट्रीफ्यूजिंग (Centrifuging) -:

यह विधि अर्ध-अपकेंद्री ढलाई (Semi-Centrifugal Casting) के सिद्धांत पर काम करती है। परंतु इसमें एक ही मोल्ड से एक से अधिक कास्टिंग को बनाने के लिए हम इस विधि का प्रयोग करते हैं। सेंट्रीफ्यूजिंग विधि में पिघली धातु वर्टिकल अक्ष पर घूमती है और वहीं से केंद्रीय-स्प्रू के माध्यम से अनेक सांचो में डाली जाती है। जिसके कारण एक ही बार एक से अधिक कास्टिंग तैयार हो जाती है। केंद्रीय स्प्रू के माध्यम से पिघली धातु जिन सांचो में डाली जाती है, वह सांचे केंद्रीय अक्ष के चारों ओर समान दूरी पर स्थित होते हैं। पहली धातु को जब केंद्रीय स्कूल में डाला जाता है तो यह धातु है त्रिज्या द्वार (Radial Gates) से होती हुई सांचो में जाती हैं। सांचो में पहुंचकर यह पिघली धातु ठंडी होकर कास्टिंग का निर्माण करती है।

सेंट्रीफ्यूजिंग और पूर्ण अपकेंद्रीय कास्टिंग में अंतर यह है कि सेंट्रीफ्यूजिंग में पिघली धातु को सांचे के अक्ष पर नहीं डाला जाता है।


सेंट्रीफ्युगल प्रोसेस कास्टिंग के लाभ (Advantages of Centrifugal Process Casting in Hindi) -:

A) इस प्रक्रम द्वारा हुई कास्टिंग उच्च घनत्व और महीन सरंचना वाली होती है।

B) सेंट्रीफ्युगल कास्टिंग द्वारा बनाए गए वस्तुएं में उच्च यांत्रिक शक्ति होती है।

C) इस विधि द्वारा हुई कास्टिंग में अशुद्धियां कम होती है।

D) इसकी उत्पादन दर अधिक होती है।

E) सेंट्रीफ्यूगल कास्टिंग से प्राप्त होने वाली ढलाईया सुदृढ़ और सामर्थ्यवान होती हैं।

F) इस विधि में रनर, राइजर, गेट तथा कोर इत्यादि का प्रयोग नहीं किया जाता है।


सेंट्रीफ्युगल प्रोसेस कास्टिंग से हानियां (Disadvantages of Centrifugal Process Casting in Hindi) -:

A) इसी विधि का प्रयोग करके कास्टिंग करते समय आंतरिक व्यास गलत हो सकता है।

B) सेंट्रीफुगल कास्टिंग प्रोसेस में सभी मिश्र धातुओं की कास्टिंग नहीं की जा सकती है।

C) इसके द्वारा निर्मित होने वाली कास्टिंग की सतह रुक्ष होती है।

D) इस विधि द्वारा कास्टिंग करने पर कई प्रकार के कास्टिंग दोष आते हैं।

E) सेंट्रीफ्यूगल कास्टिंग के द्वारा कास्ट की गई वस्तु की फटीग सामर्थ्य, फोर्जिंग की तुलना में कमजोर होती है।


सेंट्रीफ्युगल प्रोसेस कास्टिंग के प्रयोग (Applications of Centrifugal Process Casting in Hindi) -:

A) इस विधि द्वारा फ्लाई व्हील का निर्माण किया जाता है।

B) सेंट्रीफ्यूगल प्रक्रम का प्रयोग करके गियर की कास्टिंग की जाती है।

C) इसके द्वारा बुशिंग और पाइप की भी कास्टिंग की जाती है।

D) खोखले और बेलनाकार पाइपों का निर्माण इसी विधि द्वारा किया जाता है।

E) सिलिंडर लाइनर, पिस्टन इंजन के स्लीव, वॉल्व को कास्ट करने के लिए भी सेंट्रीफ्यूगल कास्टिंग का प्रयोग किया जाता है।



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