शैल मोल्ड कास्टिंग (Shell Mould Casting in Hindi) -:
शैल मोल्ड कास्टिंग के द्वारा ढलाई करने के लिए पतले सेक्शन की सहायता से पैटर्न को तैयार किया जाता है। इस पैटर्न को बनाने के लिए महीन बालू और थर्मोसेटिंग रेजिन का मिश्रण तैयार करना पड़ता है। पैटर्न को बनाते समय स्नेहक पदार्थ के रूप में कैल्शियम स्टियरेट या कार्नोबा स्टियरेट का प्रयोग किया जाता है। इन दिए गए पदार्थों की सहायता से शैल, पैटर्न के ऊपर से आसानी से उतर जाता है।
सामान्यतः शैल मोल्ड कास्टिंग तीन प्रकार का होता है।
१. हॉट कोटिंग प्रक्रम (Hot Coating Process)
२. वार्म कोटिंग प्रक्रम (Warm Coating Process)
३. कोल्ड कोटिंग प्रक्रम (Cold Coating Process)
इनमें सबसे अधिक हॉट कोटिंग प्रक्रम का ही प्रयोग किया जाता है और अन्य विधि का प्रयोग नहीं किया जाता है। जब कहीं भी शैल मोल्ड कास्टिंग की बात करना होता है तो हॉट कोटिंग प्रक्रम को ही बताया जाता है और अक्सर इसे ही शैल मोल्ड कास्टिंग समझा जाता है।
शैल मोल्ड कास्टिंग क्रियाविधि (Methodology of Shell Mould Casting in Hindi) -:
सबसे पहले जिस आकार का कास्टिंग पर आप करना होता है उस आकृति के समान धातु के पैटर्न को लेकर किसी प्लेट पर नट और बोल्ट की सहायता से बांध दिया जाता है। अब इस पैटर्न को प्लेट सहित किसी भट्टी में 150℃ से 250℃ तक गर्म करते हैं।
अब इस पैटर्न को भट्टी में से निकालते हैं और उस पर एमल्शन का लेप कर देते हैं। जिससे पैटर्न पर रेत चिपक ना पाये। अब एक बॉक्स लेते हैं जिसमें बारीके कणो वाली बालू तथा 5% फिनोलिक रेजिन का मिश्रण रहता है। अब इस बॉक्स पर प्लेट लगी पैटर्न को उल्टा करके रख दिया जाता है। जब पैटर्न को बॉक्स पर दिया जाता है तो पूरे बॉक्स को ही उल्टा कर देते हैं जिससे बॉक्स में पड़ी हुई रेत, पैटर्न के ऊपर आ गिरे। बॉक्स में उपस्थित रेजिन से मिश्रित बालू जब गर्म पैटर्न पर गिरता है तो यह द्रव रूप में बहने लगता है और बालू को बांधने का कार्य करता है। और रेजीन बालू को बांधकर एक शैल/कोश (Shell) का निर्माण करता है। इस शैल की मोटाई 6 mm के आसपास होती है। अब बॉक्स को सीधा करके पैटर्न को बाहर निकाल लिया जाता है और उसमें बने हुए शैल को पैटर्न से बाहर निकाला जाता है।
Shell Mould Casting Process |
इसी विधि का प्रयोग करके एक और शैल का निर्माण कर लिया जाता है। और यह 2 शैल हो जाते हैं। जिन्हें आपस में जोड़ने पर, ये कास्टिंग की आकृति के मोल्ड बन जाते हैं।अब इस प्राप्त मूल्य को संचक अनबॉक्स के बीच में रखा जाता है और उसके चारों और बेकिंग रेत डालकर, सांचे को तैयार कर लिया जाता है। साँचे को तैयार करते वक्त रनर, राइजर, गेट को उचित जगह पर बना देते हैं। जब मोल्ड पूरी तरह तैयार हो जाता है तो उसमें पिघली धातु को डालकर ठंडा होने दिया जाता है और जब ठंडा होकर ठोस बन जाता है, मोल्ड को तोड़कर उसमें से कास्टिंग निकाल ली जाती है।
शैल मोल्ड कास्टिंग (Shell Mould Casting) के लाभ -:
1) फाउंड्री शॉप में इस विधि का प्रयोग करके पतले सेक्शन की वस्तुओं की कास्टिंग बनाई जाती है।
2) इस विधि द्वारा की गई कास्टिंग की बीमा उच्च परिशुद्धता की होती है।
3) शैल मोल्ड कास्टिंग का उत्पादन दर आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
4) इस प्रक्रम द्वारा प्राप्त कास्टिंग की सतह बहुत ही परिष्कृत होती है।
5) शैल मोल्ड कास्टिंग प्रोसेस के लिए कुशल कारीगर का होना आवश्यक नहीं है।
6) यह विधि बहुत कम स्थान गिरती है।
7) इस विधि द्वारा प्राप्त कास्टिंग की वस्तुएं पर मशीनिंग कार्य बहुत कम करता पड़ता है।
शैल मोल्ड कास्टिंग (Shell Mould Casting) से हानियां -:
1) इससे केवल छोटी कास्टिंग ही तैयार की जा सकती है।2) इस विधि से कास्टिंग करने के लिए कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है, इसलिए यह काफी खर्चीली विधि है।
3) शैल मोल्ड कास्टिंग में प्रयोग होने वाले उपकरण महंगे होते हैं।
4) अगर इसको मैनुअली किया जाता है तो श्रम लागत अधिक आती है।
5) इस विधि द्वारा की गई कास्टिंग में उच्च सरंध्रता दोष उत्पन्न होने की संभावना होती है।
6) इस विधि द्वारा की गई कास्टिंग का सामर्थ्य कम होता है।
शैल मोल्ड कास्टिंग (Shell Mould Casting) के प्रयोग -:
1) शैल मोल्ड कास्टिंग का उपयोग लौह और अलौह दोनों प्रकार की धातुओं की कास्टिंग के लिए किया जाता है।2) तांबे की मिश्र धातुओं और स्टेनलेस-स्टील की कास्टिंग के लिए यह विधि बहुत अधिक प्रयोग की जाती है।
3) इस कास्टिंग विधि का प्रयोग करके शाफ्ट, गियर, वाल्व, वाल्व की बॉडी का निर्माण किया जाता है।
4) मैनीफोल्ड, ब्रैकेट, रॉकर भुजा, कैम शाफ्ट, टाइप आदि की कास्टिंग के लिए भी यह विधि उपयोगी होती है।
5) कनेक्टिंग रॉड, गियर बॉक्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर के छोटे पार्ट-पुर्जों को बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
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