कास्टिंग दोष किसे कहते हैं? प्रकार । कारण और उपचार

कास्टिंग के दोष (Casting Defects in Hindi) -:

कास्टिंग (Casting) में विभिन्न कारणों से भी दोष आ जाते हैं। कुछ दोष तो ऐसे होते हैं जिनके कारण कास्टिंग पूरी तरह से खराब हो जाता है इसलिए उसको रिजेक्ट करना पड़ता है। कुछ दोषों को मरम्मत करके ठीक किया जा सकता है और कुछ दोष ऐसे होते हैं जिनको मरम्मत करके भी ठीक नही किया जा सकता है। कास्टिंग में ऐसे भी दोष आते हैं जिनको मरम्मत करना काफी खर्चीला होता है इसलिये ऐसे कार्यखण्ड को मरम्मत नही किया जाता है। 


कास्टिंग दोष के प्रकार और कारण और उनके उपचार (Casting Defect Types and Causes and Remedies in Hindi)


कास्टिंग दोष के प्रकार और कारण व उनके उपचार (Casting Defect Types and Causes and Remedies in Hindi) -:

कास्टिंग के विभिन्न दोष और उनके कारण तथा उपचार का नीचे वर्णन किया गया है। ये दोष कई प्रकार के होते है जो निम्न हैं -

1. शिफ्ट दोष (Shift Defect) -:

कास्टिंग में जब दो या दो से अधिक बॉक्स प्रयोग किये जाते हैं तो शिफ्ट दोष उत्पन्न होने की सम्भावना हो जाती है। जब दोनों बॉक्स को ठीक प्रकार से  फिट ना बैठने के कारण आता है। यदि शिफ्ट की कास्टिंग दिये गये एलाउन्स की सीमा के अन्दर किया जाता है तो वह अपने मानक को प्राप्त करती है परन्तु जब कास्टिंग एलाउन्स की सीमा से अधिक हो जाती है तो कास्टिंग को रिजेक्ट करना पड़ता है। इस दोष को हटाने के लिये मोल्ड के दोनों बॉक्सों को ठीक से मैच कराना आवश्यक होता है।


2. वार्पेज (Warpage) -:

जब पिघली धातु ठण्डी होकर ठोस अवस्था में आ जाती है तो इसके कुछ भाग जल्दी ठण्डे हो जाते हैं और कुछ भाग देर से ठण्डे होते हैं। इस स्थिति में कास्टिंग के ठण्डे होने असमान होती है। जब ठंडा होने की दर असमान रहती है तो कास्टिंग के टेढ़ा मेढ़ा बनता है। इसके दोष के निवारण के लिये पैटर्न में ही वापैज एलाउन्स को दिया जाता है जिससे कास्टिंग सही आकार व सही साइज की प्राप्त हो  सके।


3. सूजन दोष (Swelling Defect) -:

जब पिघली धातु का प्रेशर अधिक होता है तो मोल्ड की केविटी विशेष स्थानो पर बढ़ जाती है। इससे कास्टिंग भी बढ़ जाती है। इस दोष के उत्पन होने का मुख्य कारण बालू की ठीक प्रकार से रैमिंग ना करना होता है। पिघली धातु को तेजी से मोल्ड में डालने पर भी स्वैलिंग की समस्या आ सकती है। इसलिए धातु को मोल्ड में डालते वक्त इसको आराम से डाला जाता है।


4. फिन कास्टिंग डिफेक्ट (Fin Casting Defect) -:

ड्रैग और कोप के मिलने वाली लाइन जिसे पार्टिंग लाइन भी कहा जाता है, वँहा पर फिन दोष आने की सम्भावना होती है। जब ड्रैग तथा कोप के ठीक प्रकार से नही मिल पाते हैं तो कोप का थोड़ा-सा भाग उठा रह जाता है जिसके कारण यह दोष आता है। इस दोष को दूर करने के लिये मोल्ड पर पर्याप्त मात्रा में वजन रखना चाहिये।


5. ब्लो होल्स (Blow Holes) -:

यह दोष कास्टिंग की ऊपरी सतह पर 3 मिमी० से कम व्यास के छिद्रों के रूप में तथा समूहो में मिलते हैं। जब मोल्ड में गैस या हवा रुक जाती है तो यह दोष आता है।

इस दोष को दूर करने के लिए मोल्डिंग बालू में अच्छी पारगम्यता होना जरूरी है। साथ ही मोल्ड में बैन्ट होल्स (Vent Holes) बना देने से यह दोष नहीं आता है।


6. पिन होल्स (Pin Holes) -:

कास्टिंग करने से पहले जब स्टील को गैस रहित नहीं किया जाता है तो यह दोष उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है। पिघली हुई धातु अपने अन्दर हाइड्रोजन तथा कार्बन मोनोऑक्साइड को सोखती है। यह गैस जब बाहर निकलती हैं तो कास्टिंग में पिन होल बन जाते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए अच्छा फ्लक्स प्रयोग किया जा सकता है।


7. संकुचन दोष (Shrinkage Defect in Hindi) -:

जब पिघली धातु की धीरे-धीरे और आसमान रूप से ठण्डा होती है तो कास्टिंग की सतह पर एक गड्ढा बन जाता है। जिसे संकुचन केविटी कहा जाता है। इस दोष को दूर करने के लिए गेट और राइजर का प्रयोग किया जाता है।


8. सरंध्रता दोष (Porosity Defect in Hindi) -:

जब पिघली धातु को मोल्ड में डाली जाती है तो गैस बनती है। इस गैस के कुछ भाग को पिघली धातु अपने अन्दर सोख लेती है। और जब ये गैसें बाद में बाहर निकलती हैं जिनके कारण सरंध्रता बनती है। सही प्रकार के फ्लक्स प्रयोग करने पर इस दोष का उपचार और इस पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।


9. ड्रॉप दोष (Drop Defect) -:

जब मोल्ड सैण्ड की ग्रीन स्ट्रेंथ (Green Strength) कम होती है तो मोल्ड के ऊपरी भाग से कोई टुकड़ा टूट कर जब पिघली धातु में गिर जाता है तो ड्रॉप (Drop) दोष उत्पन्न होता है। इस दोष को दूर करने के लिए बालू को रैमिंग करना पड़ता है। 


10. डर्ट कास्टिंग दोष  (Dirt Casting Defect) -:

कास्टिंग की सतह पर मोल्ड में पड़े हुये अन्य पदार्थ व रेत के कण चिपक जाते हैं। कम रेमिंग के कारण सैण्ड वॉश आदि दोषों के कारण यह दोष भी उत्पन्न हो जाता है। कभी धातु के साथ उसका स्लैग भी मोल्ड में चला जाता है।


11. मेटल पैनीट्रेशन (Metal Penetration) -:

पैटल पैनीट्रेशन ऐसा दोष जिसके कारण कास्टिंग की सतह ऊंची-नीची (Uneven) हो जाती है उसे मेटल पैनीट्रेशन दोष कहते हैं। जब मोल्डिंग सैण्ड की पारगम्यता बहुत अधिक होती है तथा रैमिंग कम की गई होती है तो यह दोष उत्पन्न होता है। इस दोष को उत्पन्न होने से बचाने के लिए मोल्डिंग सैंड की पारगम्यता उचित कर देनी चाहिए और रौमिंग की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।


12. स्लैग होल्स (Slag Holes) -:

स्लैग होल्स ऐसा दोष है जो कास्टिंग की ऊपरी सतह पर स्पष्ट रुप से देखी जा सकती है। इस दोष के उत्पन्न होने का मुख्य कारण है पिघली धातु पर से सम्पूर्ण मैल का ठीक प्रकार से साफ ना होना। इस दोष के निवारण के लिए अच्छा फ्लक्स प्रयोग करना चाहिए और सम्पूर्ण स्लैग को निकल के फेंक देना चाहिये।


13. स्कैब कास्टिंग दोष (Scabs Casting Defects in Hindi) -:

ऐसा दोष जिसमें कास्टिंग की बाहरी सतह पर उभरकर कुछ असमान आकृतियाँ आ जाती हैं। यह दोष बॉक्स या कोर के एक सिरे से उठ जाने के कारण बन जाती हैं। मोल्ड में क्रैक पड़ने पर जब दरारों में भी धातु चली जाती है तो स्कैब का निर्माण होता है।

इस दोष को दूर करने के लिये उचित बालू का सही से प्रयोग करनी चाहिये तथा कोर इत्यादि को सही प्रकार से फिट करना चाहिये।


14. हॉट टियर्स कास्टिंग दोष (Hot Tears Casting Defects) -:

पिघली धातु जब ठण्डा होकर ठोस होने लगती है तो इस धातु का संकुचन होता है। जिसके कारण सही डिजाइन ना बनने के कारण कास्टिंग के अन्दर या बाहर दरारें पड़ जाती हैं। ऐसे दोषो को हॉट टियर्स (Hot Tears) कहते हैं।

इस दोष को दूर करने के लिए कास्टिंग में फिलेट तथा उसके कोनों (Corner) पर गोलाई आदि देने का विचार करना चाहिये और जब भी कास्टिंग ठण्डा हो वह ठण्डे होने की दर समान होनी चाहिये। 


15. कोल्ड क्रैंक (Cold Cracks) -:

ये दोष भी हॉट टियर्स के समान ही होते हैं। परन्तु यह दोष 430°C से कम तापक्रम पर पिघली धातु को मोल्ड में डालने पर उत्पन्न होते हैं। इसलिये इस दोष से बचने के लिए सदैव पिघली धातु को 430℃ से अधिक ताप पर ही मोल्ड में डालना चाहिए। 


16. कोल्ड शट (Cold Shut) -:

जब मोल्ड के अन्दर पिघली धातु डाली जाती है तो यह दो धाराओं में बहकर जाने लगती है या कभी-कभी तो दोनों धाराओं का फ्यूजन ठीक से नहीं हो पाता है। बाद मे यह दोष दरार के रूप में स्पष्ट दिखायी देता है।


यह दोष निम्न कारणों से उत्पन्न होता है -

◆पिघली हुई धातु का तापक्रम कम पर मोल्ड में डालने के कारण यह दोष आता है।

◆गेट तथा राइजर की स्थिति ठीक ना होने के कारण यह दोष आता है।

◆कास्टिंग के सेक्शन अधिक पतला निर्माण होने के कारण यह दोष आता है।

इन दोषों को दूर करने के लिए पर्याप्त सेक्शन का निर्माण किया जाता है तथा पिघली धातु को गर्म अवस्था मे मोल्ड में डालना चाहिए। कास्टिंग करते समय राइजर व गेट को ठीक प्रकार से लगाना चाहिए।


17. मिस रन दोष (Mis-Run Defects) -:

पिघली धातु को मोल्ड में डालने पर , जब पिघली धातु मोल्ड में पूरी केविटी (Cavity) में नहीं पहुँच पाती है तो यह दोष उत्पन्न होता है जिसे मिस-रन दोष कहते हैं। इस दोष के आने का कारण है , कास्टिंग के सेक्शन का अधिक पतला होना, पिघली धातु का तापक्रम कम होना या गेट व राइजर का अनुचित डिजाइन होने पर यह दोष आता है।


Mis-Run दोष के उपचार/उपाय -

● इसके दोष को दूर करने के लिए कास्टिंग के सेक्शन का अधिक पतला होना नही बनना चाहिये।

● पिघली धातु को तापक्रम अधिक कम नही होना चाहिये।

● गेट व राइजर का अनुचित डिजाइन नही बनाना चाहिए।


18. जाला पड़ना (Honey Combing) -:

कास्टिंग में उत्पन्न होने वाला ऐसे दोष जिसमे कास्टिंग की सतह पर पास-पास छिद्रों का जाल सा बन जाता है। ऐसे दोष को जाल पड़ना कहते हैं। यह दोष धातु में मिले हुए अशुद्धियों के कारण उत्पन्न होता है। इस दोष को भगाने का उपाय करने के लिए धातु में से अशुद्धियों को निकाला जाता है और कास्टिंग के लिए शुद्ध धातु का प्रयोग किया जाता है।


19. फ्यूजन दोष (Fusion Defects in Hindi) -:

मोल्डिंग बालू जब  पिघली धातु का ताप सहन नहीं कर पाती है तो यह पिघलकर धातु के साथ मिल जाती है। जब यह बालू धातू में मिल जाती है तो कास्टिंग में फ्यूजन दोष उत्पन्न हो जाता है। इसको दूर करने के लिए ऐसे बालू का प्रयोग करते हैं जो अधिक ताप सहने की योग्यता रखता हो।



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