प्रयोगवादी युग का आरम्भ -:
प्रयोगवाद शब्द का प्रचलन सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा संपादित तारसप्तक से माना जाता है। इस युग का आरम्भ प्रगतिवाद युग के बाद से माना जाता है। प्रयोगवादी युग को सबसे अधिक अस्तित्ववादी कहा जाता है, क्योंकि यह युग अस्तित्ववाद से प्रभावित है। प्रयोगवाद युग को समकालीन करने के लिए अज्ञेय को अस्तित्ववादी घोषित किया गया है।
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प्रयोगवाद के जनक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" |
प्रयोगवाद युग की समय सीमा -:
प्रयोगवादी युग की अवधि 1943 ई. से 1953 ई. तक मानी जाती है। प्रगतिवाद युग के समाप्ति के बाद प्रयोगवाद युग का आरंभ हुआ।
यह युग अधिक समय अनुसार अधिक पास होने के कारण अस्तित्व में अधिक है, जिसके कारण किसे अस्तित्व आदि भी कहा जाता है।
प्रयोगवाद के प्रवर्तक या जनक -:
अज्ञेय को प्रयोगवाद का प्रवर्तक या जनक कहा जाता है क्योंकि इनके द्वारा संपादित तारसप्तक से ही प्रयोगवाद शब्द का प्रचलन प्रारंभ हुआ। अज्ञेय को अस्तित्ववादी माना जाता है। अज्ञेय का पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" है।
प्रयोगवादी युग की विशेषताएं -:
1) इस युग के कवियों ने प्रेम भावनाओं का अत्यंत खुलकर चित्रण किया है और अश्लीलता का समावेश कर दिया है।
2) इस युग में बुद्धि तत्व को अधिक प्रधानता दी गई है।
3) इस काल की सभी काव्य रचनाओं में व्यक्ति सुर समाज पर व्यंगात्मक छवि दिखाई देती है।
4) सभी कवियों ने अपनी कविताओं में मुक्त छंदों का उपयोग किया है।
5) प्रयोगवादी कवियों द्वारा पुराने एवं प्रचलित उपमानों के स्थान पर नवीन उपमानों का प्रयोग किया हैं।
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