वैद्युत या वेल्डिंग आर्क (Electric Arc) क्या होता है? प्रकार


वैद्युत या वेल्डिंग आर्क (Welding Arc in Hindi)

वैद्युत इलेक्ट्रोडों के द्वारा वायु में उत्पन्न किया गया इलैक्ट्रॉनों का विसर्जन को ही वैद्युत या वेल्डिंग आर्क (Electric Arc) कहते हैं, जो फ्लेम की भांति दिखता है। इसका आकार और गुण ज्वाला के जैसा ही दिखता है। जब इलेक्ट्रोड में अधिक धारा और कम वोल्टेज दिया जाता है तो वैद्युत आर्क की उत्पत्ति होती है। वैद्युत आर्क को बनाने के लिए 10 से 2000 ऐम्पियर की धारा और 10 से 25 वोल्ट के विभवान्तर का दिया जाना आवश्यक होता है।

जब वेल्डिंग की प्रक्रिया किया जाता है तो इलैक्ट्रोड और कार्यखण्ड के बीच 1 mm से 10 mm तक के गैप में आर्क को उत्पन्न किया जाता है।

इलेक्ट्रोड के कैथोड से निकले इलैक्ट्रॉन वायु को आयनीकृत कर देते हैं। यह वायु आयनीकृत होकर विद्युत की सुचालक बन जाती है। जिसके कारण विद्युत, वायु के अन्दर से होकर बहने लगती है। यह प्रतिरोध शक्ति (Resistance Power) ही ऊष्मा उत्पन्न करने का मुख्य स्रोत बन जाता है। आर्क के द्वारा विद्युत ऊर्जा को ताप ऊर्जा में आसानी से बदला जा सकता है।

जब आर्क उत्पन्न होता है तो उसका तापक्रम 3500°C तक होता है जिसके कारण इलेक्ट्रोड की धातु शीघ्रता से पिघलने लगती है और साथ ही जिस कार्यखण्ड को वैल्ड करना होता है उसकी सतह भी पिघल जाती है। पिघली हुई धातुएँ आपस में मिलकर वैल्ड पूल का निर्माण करती हैं।इलैक्ट्रोड जब पिघलती है तो इलेक्ट्रोड के पिघलने के बाद, इलेक्ट्रोड की पिघली धातु फिलर मैटल (Filler Metal) कहलाती है।

इसी प्रकार जब कार्यखण्ड को पिघलाया जाता है तो कार्यखण्ड की पिघली धातु को बेस मेटल (Base Metal) कहते हैं।

जब Base Metal और Filler Metal आपस में मिलकर ठण्डी हो जाती हैं तो वैल्डिंग जोड़ बनाती हैं। 


वैद्युत आर्क के प्रकार (Types of Electric Arc in Hindi)

वैद्युत या वेल्डिंग आर्क को दो भागों में बांटा गया है -

1) स्थिर या अचल आर्क (Fixed or Stationary Arc)

2) अस्थिर या चल आर्क (Moving or Mobile Arc)


1. स्थिर या अचल आर्क (Fixed or Stationary Arc in Hindi)

ऐसी आर्क, जिसे Non-Consumable इलैक्ट्रोड तथा कार्यखण्ड के बीच मे उत्पन्न की जाती है और इसमें फिलर रॉड (Filler Rod) का प्रयोग आवश्यक नहीं है और किया भी जा सकता है, ऐसे आर्क को स्थिर या अचल आर्क कहते हैं।

इस आर्क में , फिलर रॉड के स्थान पर एक तार का प्रयोग किया जाता है। इस तार को आर्क के कॉलम में फीड कर जाता है। जब आर्क को जलाया जाता है तो यह तार आर्क की गर्मी से पिघलने लगता है। तार पिघलकर गुरुत्वाकर्षण बल, इलैक्ट्रोमैग्नेटिक बल, तथा यान्त्रिक बल के प्रभाव से , वेल्डिंग किये जाने वाले सतहों के वैल्ड पूल को भरता है।

स्थिर आर्क में थर्मल दक्षता को 45%-60% तक माना जाता है क्योंकि स्थिर आर्क में इलैक्ट्रोड को जो भी उष्मा मिलती है वो ऊष्मा व्यर्थ हो जाती है। ऊष्मा व्यर्थ होने का कारण यह है Cooling Water डालते समय, उष्मा को Cooling Water बहा ले जाता है।

स्थिर आर्क का प्रयोग कार्बन आर्क, टंगस्टन आर्क या प्लाज्मा आर्क वैल्डिंग प्रक्रियाओं में होता है।


2. अस्थिर या चल आर्क (Moving or Mobile Arc in Hindi)

ऐसा आर्क,  जिसमे इलेक्ट्रोड को जलाने के बाद इलेक्ट्रोड पिघलती जाती है और उसके साथ-साथ आर्क भी इलैक्ट्रोड में ऊपर चलती जाती है, जिसे अस्थिर या चल आर्क (Moving or Mobile Arc) कहते हैं। इस आर्क में, वैद्युत आर्क को Consumable इलैक्ट्रोड तथा कार्यखण्ड के मध्य उत्पन्न किया जाता है।

अस्थिर या चल आर्क में पिघले हुए फिलर मेटल को इलैक्ट्रोड से छुड़ाकर गुरुत्वाकर्षण बल, इलैक्ट्रोमैग्नेटिक बल और यान्त्रिक बल के द्वारा वैल्ड पूल में मिलाने का प्रयास किया जाता है। परन्तु सतह का तनाव फिलर मेटल को वेल्ड पूल में मिलने से रोकती है।

अस्थिर या चल आर्क का प्रयोग मेटल आर्क वैल्डिंग, सबर्मज्ड आर्क वैल्डिंग, मैटल गैस वैल्डिंग इत्यादि में किया जाता है।

अस्थिर आर्क वैल्डिंग में इलैक्ट्रोड को मिलने वाली सम्पूर्ण ऊष्मा फिलर धातु को पिघलाने में प्रयोग हो जाती है इसीलिएब अस्थिर या चल आर्क की थर्मल दक्षता को 75%-90% माना जाता है।



ये भी पढ़े...

Post a Comment

0 Comments