वेल्डिंग इलेक्ट्रोड का वर्गीकरण (Classification of Welding Electrodes)

वेल्डिंग इलेक्ट्रोड का वर्गीकरण (Classification of Welding Electrodes)

वेल्डिंग इलेक्ट्रोड रॉड का वर्गीकरण (Classification of Welding Electrodes in Hindi)

1. इलेक्ट्रोड के फ्लक्स के आधार पर

2. इलेक्ट्रोड पर फ्लक्स चढ़ाने की विधि के आधार पर 

3. इलेक्ट्रोड के फ्लक्स की मोटाई के आधार पर 

4. इलेक्ट्रोड के कोर वायर की धातु के आधार पर 

5. इलेक्ट्रोड की उपयोगिता के आधार पर 

6. इलैक्ट्रोड की खपत के आधार पर 

7. इलेक्ट्रोड की कोडिंग के आधार पर 

8. इलेक्ट्रोड के कलर के कोडिंग के आधार पर 


1. इलेक्ट्रोड के फ्लक्स के आधार पर

फ्लक्स के आधार पर इलेक्ट्रोड चार प्रकार के होते हैं -

१. रुटाइल इलेक्ट्रोड

२. आयरन ऑक्साइड इलेक्ट्रोड

३. सैलूसोसिक इलेक्ट्रोड

४. बेसिक इलेक्ट्रोड


१. रुटाइल इलेक्ट्रोड (Rutile Electrode)

रुटाइल इलेक्ट्रोड (Rutile Electrode) के फ्लक्स में सिलिकेट व सैलूलोज को बेस के रूप में प्रयोग किया

जाता है। इस इलेक्ट्रोड का प्रयोग घर्षण के कार्यों के लिए अधिक प्रयोग किया जाता है। उदाहरण - पानी के जहाज में, हाई प्रैशर पाइप लाइन इत्यादि में।


२. आयरन ऑक्साइड इलेक्ट्रोड (Iron Oxide Electrode)

ऐसा इलेक्ट्रोड में इलाल, जिसमें आयरन ऑक्साइड तथा सिलिकेट को फ्लक्स के बेस के रूप में प्रयोग किया जाता है ऐसे इलेक्ट्रोड को आयरन ऑक्साइड इलेक्ट्रोड (Iron Oxide Electrode) कहते हैं। क्योंकि इस इलेक्ट्रोड में आयरन ऑक्साइड तथा सिलिकेट की मात्रा अधिक होती है। आयरन ऑक्साइड तथा सिलिकेट की मोटी परत कोर वायर पर चढ़ाया जाता है। इसका प्रयोग सबसे अधिक फ्लैट वैल्डिंग के लिए किया जाता है। ओवर हेड वेल्डिंग और वर्टिकल वेल्डिंग के लिए इस इलेक्ट्रोड का प्रयोग नहीं किया जाता है।


३. सैलूसोसिक इलेक्ट्रोड (Cellusosic Electrode)

इस इलेक्ट्रोड पर चढ़े हुए फ्लवस का बेस सैलूलोज होता है Cellusosic Electrode का पैनीट्रेशन काफी अच्छा होता है। सैलूसोसिक इलेक्ट्रोड पर फ्लक्स की पतली परत का लेप किया जाता है। जब इस इलेक्ट्रोड से वेल्डिंग की जाती है तो वेल्डिंग होने के बीड पर हल्का स्लेग चढ़ा होता है। इस इलेक्ट्रोड के फ्लक्स में गैस उत्पन्न करने वाले अधिक पदार्थ डाले गए होते हैं जिसके कारण इसमें बहुत अधिक गैसें उत्पन्न होती हैं।


४. बेसिक इलेक्ट्रोड (Basic Electrode)

ऐसे इलेक्ट्रोड जिसके फ्लक्स में कैल्सियम कार्बोनेट व फ्लोराइड को बेस के रूप में प्रयोग किया जाता है, ऐसे इलेक्ट्रोड को बेसिक इलेक्ट्रोड (Basic Electrode) कहतें है।

इस इलेक्ट्रोड को बनाते समय फ्लक्स की मोटी परत प्रयोग की जाती है। ये इलेक्ट्रोड छोटी आर्क (Short-Arc) के रूप में जब बनाये जाते हैं तो इनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है।

बेसिक इलेक्ट्रोड (Basic Electrode) का प्रयोग ओवरहैड व वर्टिकल वैल्डिंग में किया जाता है।


2. इलेक्ट्रोड पर फ्लक्स चढ़ाने की विधि के आधार पर 

इलेक्ट्रोड के कोर वायर पर फ्लक्स दो विधियों से चढ़ाया जाता है। इलेक्ट्रोड पर फ्लक्स चढ़ाने के आधार पर इलेक्ट्रोड दो प्रकार के होते हैं-

१. डिप्ड इलेक्ट्रोड (Dipped Electrodes)

२. एक्स्टूडेड इलेक्ट्रोड (Extruded Electrodes)


१. डिप्ड इलेक्ट्रोड (Dipped Electrodes)

जब इलेक्ट्रोड को बनाने के लिए कोर वायर को फ्लक्स के बने घोल डुबाते है तो कोर वायर को फ्लक्स के घोल में डुबाने से जो इलेक्ट्रोड बनता हैं उसे डिप्ड इलेक्ट्रोड (Dipped Electrodes) कहते है।

जब फ्लक्स को कोर वायर पर चढ़ाया जाता है तो सर्वप्रथम फ्लक्स के पदार्थो का घोल बनाया जाता है और उस घोल में कोर वायर को डुबोया जाता है तथा डुबोने के बाद बाहर निकालकर उसे सुखाने के लिए लटका दिया जाता है। इस डिप्ड इलेक्ट्रोड (Dipped Electrodes) विधि के द्वारा इलेक्ट्रोड बनाने की विधि आसान माना जाता है। इस विधि से इस बात का नुकसान होता है कि इस विधि का प्रयोग करने से कोर वायर पर फ्लक्स की परत एक समान नहीं चढ़ती है। जिसके कारण वेल्डिंग करते समय इस बात की समस्या सदैव बनी रहती है। इसलिए इस विधि को सरल तो माना जाता है परंतु इस विधि द्वारा बनाये गए वेल्डिंग रॉड (इलेक्ट्रोड) का अधिक प्रयोग नही किया जाता है।


२. एक्सट्रूडेड इलेक्ट्रोड (Extruded Electrodes)

जब इलेक्ट्रोड को बनाने के लिए Extruded Press Machine का प्रयोग करके कोर वायर पर फ्लक्स को प्रेस करके इलेक्ट्रोड को तैयार करते हैं तो कोर वायर पर फ्लक्स कोटिंग करने के फलस्वरूप जो इलेक्ट्रोड बनता हैं उसे एक्सट्रूडेड इलेक्ट्रोड (Extruded Electrodes) कहते हैं।

इस विधि से इलेक्ट्रोड बनाने के लिए एक विशेष प्रकार की Extruded Press Machine का प्रयोग किया जाता है। इस मशीन में एक किनारे से इलेक्ट्रोड को फीड किया जाता है और दबाव देते हुए फ्लक्स कोटिंग की प्रक्रिया की जाती है।

इसमें इलेक्ट्रोड के चारों ओर बराबर और एक समान मोटाई की फ्लक्स की परत चढ़ी होती है। आर्क वेल्डिंग के लिए इलेक्ट्रोड बनाने के लिए सबसे ज्यादा इस विधि का ही प्रयोग किया जाता है। जब इलेक्ट्रोड पर फ्लक्स चढ़ा दिया जाता है तो उसके बाद इलेक्ट्रोड के एक सिरे को Chamfer से ढक दिया जाता है तथा दूसरे सिरे को कुछ दूरी तक नंगा रखा जाता है। इलेक्ट्रोड होल्डर में नंगे भाग को पकड़ा जाता है।


3. इलेक्ट्रोड के फ्लक्स की मोटाई के आधार पर 

इलेक्ट्रोड पर फ्लक्स चढ़ने के बाद उसके व्यास के आधार पर भी इलेक्ट्रोड को बाँटा जाता है। सदैव इलेक्ट्रोड के व्यास को इलेक्ट्रोड के लंबाई के अनुपात में रखा जाता है। अर्थात निश्चित मानक के अनुसार लंबाई के हिसाब से ही इलेक्ट्रोड का व्यास रखा जाता है।

इलेक्ट्रोड के व्यास और उसके कोर वायर के व्यास के अनुपात को कोटिंग फैक्टर कहा जाता है।

फ्लक्स की मोटाई के आधार पर इलेक्ट्रोड तीन प्रकार की होती है

१. हल्की परत वाली इलेक्ट्रोड (Lightly Coated Electrode)

२. मध्यम परत वाली इलेक्ट्रोड (Medium Coated Electrode)

३. मोटी परत वाली इलेक्ट्रोड (Heavily Coated Electrode)


१. हल्की परत वाली इलेक्ट्रोड (Lightly Coated Electrode)

यह ऐसा इलेक्ट्रोड होता है जिसमें कोर वायर को चूने के घोल में डुबोकर  , चूने की हल्की-सी परत को चढ़ाया जाता है। यह चुने की हल्की परत इलेक्ट्रोड को जंग लगने से बचाती है। Lightly Coated Electrode आर्क को स्थिर रखने में सहायक  होता है। इसका कोटिंग फैक्टर 1.25 - 1.3 माना जाता है।


२. मध्यम परत वाली इलेक्ट्रोड (Medium Coated Electrode)

ऐसा इलेक्ट्रोड जिस पर फ्लक्स की पतली परत चढ़ाई जाती है, ऐसे इलेक्ट्रोड को मध्यम परत वाली इलेक्ट्रोड (Medium Coated Electrode) कहते हैं। इस परत का कार्य आर्क को स्थिर रखने में सहायता देना होता है। इलेक्ट्रोड में फ्लक्स की हल्की परत लगा देने से यह परत बीड के ऊपर स्लैग को हल्कर परत बना देती है और केले इलेक्ट्रोड को वायुमण्डलीय गैसों से सुरक्षा प्रदान करती है। Medium Coated Electrode का कोटिंग फैक्टर 1.3 - 1.5 होता है।


३. मोटी परत वाली इलेक्ट्रोड (Heavily Coated Electrode)

ऐसी इलेक्ट्रोड जिस पर फ्लक्स की मोटी परत चढ़ाई जाती है। ऐसी इलेक्ट्रोड को मोटी परत वाली इलेक्ट्रोड (Heavily Coated Electrode) कहते हैं।

इस इलेक्ट्रोड में अलॉयिंग एलीमैण्ट्स मिले होने के कारण इलेक्ट्रोड वैल्ड मैटल की कैमिस्ट्री को बदल देते हैं। इलेक्ट्रोड पर जब फ्लक्स की परत मोटी होती है तो इलेक्ट्रोड को पिघलने में समय लगता है। इसका एक फायदा यह भी है कि यह कोर वायर के ऊपर एक स्लीव का भी कार्य करता है, जिससे आर्क को सही दिशा में निर्देशित होने में मदत मिलती है। इस इलेक्ट्रोड में स्लैग की मात्रा अधिक होने के कारण वैल्ड बीड को वातावरण पूर्ण सुरक्षा मिल जाती है तथा कठोर होने से भी बच जाती है। मोटी परत वाली इलेक्ट्रोड (Heavily Coated Electrode) का कोटिंग फैक्टर 1.5 - 2.2 होता है।


4. इलेक्ट्रोड के कलर के कोडिंग के आधार पर 

जब किसी इलैक्ट्रोड की पहचान करने के लिए उनके सिरों पर अलग-अलग रंग का प्रयोग किया जाता है इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोड कलर कोडिंग कहते हैं।

कलर कोडिंग की सहायता से इलैक्ट्रोड की पहचान आसानी से और सुविधापूर्वक हो जाती है।

इलेक्ट्रोड कलर कोडिंग में इस प्रक्रिया से बहुत ही सुविधा मिलती है।  इलेक्ट्रोड कलर कोडिंग करने के लिए निम्न प्रकार के कलर प्रयोग किये जाते हैं।

(१) लाल रंग

(२) हरा रंग

(३) नीला रंग

(४) पीला रंग

(५) सलेटी रंग

(६) बैंगनी

(७) भूरा रंग

(८) नारंगी रंग

(९) काला रंग

(१०) सफेद रंग


5. इलेक्ट्रोड की उपयोगिता के आधार पर

वेल्डिंग इलेक्ट्रोड को उपयोग के आधार पर निम्न भागो में बांटा गया है।

१. कटिंग इलेक्ट्रोड

२. मशीनीयबिल इलेक्ट्रोड

३. पैडिंग इलेक्ट्रोड

४. हार्ड फेसिंग इलेक्ट्रोड


6. इलेक्ट्रोड को खपत के आधार पर

वेल्डिंग इलेक्ट्रोड खपत के आधार पर दो प्रकार के होते हैं-

१. खपने वाली इलेक्ट्रोड (Consumable Electrodes)

२. न खपने वाली इलेक्ट्रोड (Non-Consumable Electrodes)


१. खपने वाली इलेक्ट्रोड (Consumable Electrodes)

ऐसे इलेक्ट्रोड जो पिघलकर वैल्ड मैटल के अन्दर ही मिल जाते हैं और फिलर मैटल का कार्य करते हैं ऐसे इलेक्ट्रोड को खपने वाली इलेक्ट्रोड (Consumable Electrodes) कहते हैं। जब इस इलेक्ट्रोड की बनाया जाता है तो कोर वायर की धातु बेस मैटल के अनुसार चुनी जाती है।

उदाहरण - हाई कार्बन इलेक्ट्रोड, स्टेनलेस स्टील इलेक्ट्रोड, कास्ट आयरन के इलेक्ट्रोड इत्यादि।


२. न खपने वाली इलेक्ट्रोड (Non-Consumable Electrodes)

ऐसे इलेक्ट्रोड जो वैल्डिंग प्रक्रिया में पिघलकर वैल्ड मैटल के अन्दर मिलते नहीं है जिसे न खपने वाली इलेक्ट्रोड (Non-Consumable Electrodes) कहते हैं। यह इलेक्ट्रोड पिघलता नही है जिसके कारण इसकी आयु अधिक होती है। इस इलेक्ट्रोड का प्रयोग केवल आर्क बनाने के लिये किया जाता है।

उदाहरण - टंगस्टन इलेक्ट्रोड, कार्बन इलेक्ट्रोड इत्यादि।


7. इलेक्ट्रोड की कोडिंग के आधार पर

इस आधुनिक युग में वेल्डिंग इलेक्ट्रोड बनाने वाली बहुत सारी कंपनियां हैं जिसके कारण अलग-अलग कम्पनियां अलग-अलग कोड के इलेक्ट्रोड तैयार करती हैं।

कोड के आधार पर वेल्डिंग इलेक्ट्रोड के प्रकार निम्न हैं -

१. BS = E-317

२. AWS = ER - 705 - 1

३. ISO = E433 R 22

४. BIS =  EA 4228J

५. IS = 815-1996 M 317274

६. DIN = Ti VIIIS/433/22


8. इलेक्ट्रोड के कोर वायर की धातु के आधार पर 

इलेक्ट्रोड के कोर वायर की धातु के आधार पर इलेक्ट्रोड को दो भागों में बाँटा गया है-

१. लौह धातु वाली इलेक्ट्रोड (Electrodes of Ferrous Metals)

२. अलौह धातु वाली इलेक्ट्रोड (Electrodes of Non-Ferrous Metals)


१. लौह धातु वाली इलेक्ट्रोड (Electrodes of Ferrous Metals)

a) स्टेनलेस स्टील इलेक्ट्रोड

b) माइल्ड स्टील इलेक्ट्रोड

c) मैंगनीज स्टील इलेक्ट्रोड

d) हाई कार्बन स्टील इलेक्ट्रोड

e) लो एलॉय स्टील इलेक्ट्रोड

f) कास्ट आयरन इलेक्ट्रोड

g) मीडियम कार्बन स्टील इलेक्ट्रोड


२. अलौह धातु वाली इलेक्ट्रोड (Electrodes of Non-Ferrous Metals)

a) ब्रॉज की इलेक्ट्रोड

b) एलुमिनियम की इलेक्ट्रोड

c) पीतल की इलेक्ट्रोड

d) ताँबे की इलेक्ट्रोड



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