Carburettor किसे कहते हैं? प्रकार । गुण । भाग । क्रियाविधि

इस पोस्ट में हम निम्नलिखित बिदुओं पर अध्ययन करेंगे।

● Carburettor क्या है?

● Carburettor कितने प्रकार के होते हैं?

● Carburettor के गुण

● Carburettor के भाग

● Carburettor की क्रियाविधि


कार्बुरेटर (Carburettor in Hindi) -:

ऐसा सिस्टम जो पेट्रोल को वाष्पीकृत करके उसे वायु के साथ सही मात्रा में मिला दें और मिलाकर उपयुक्त मिश्रण तैयार करता है इस सिस्टम को कार्बुरेटर (Carburettor) कहते हैं।

कार्बुरेटर को पेट्रोल इंजन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। पेट्रोल इंजन में ईंधन के रूप में पेट्रोल और वायु का इस्तेमाल किया जाता है। जिसको कार्बुरेटर के माध्यम से आपस में मिलाया जाता है। जब इस पेट्रोल और वायु के ईंधन को सिलेंडर में प्रवेश कराया जाता है तो सिलिंडर एक निश्चित मात्रा में उसको मिश्रित कर देता है। इस प्रकार मिश्रण को तैयार करने की इस प्रक्रिया को कार्बुरीकरण (Carburation) कहते हैं।


कार्बुरेटर (Carburettor in Hindi)

Carburettor


कार्बुरेटर के प्रकार (Types of Carburettor in Hindi) -:

कार्बुरेटर को तीन भागों में विभाजित किया गया है

1. ऊर्ध्व-प्रवाह कार्बुरेटर (Up-Draught Carburettor)

2. अधो-प्रवाह कार्बुरेटर (Down-Draught Carburettor)

3. प्राकृतिक या क्षैतिज प्रवाह कार्बुरेटर (Natural Draught or Horizontal Flow Carburettor)


Carburettor के प्रकार
Carburettor के 3 प्रकार


1. ऊर्ध्व-प्रवाह कार्बुरेटर (Up-Draught Carburettor) -:

यह ऐसा Carburettor है जिसमें वायु की दिशा नीचे से ऊपर की ओर होती है। जिसके कारण पेट्रोल और वायु का मिश्रण की दिशा भी ऊपर की ओर ही हो जाती है। इस Carburettor में Intake Manifold नीचे लगा होता है जिससे हवा निकल कर ऊपर जाती है। इस Carburettor का अधिकांश प्रयोग औद्योगिक इंजन (Industrial Engine) में किया जाता है।


2. अधो-प्रवाह कार्बुरेटर (Down-Draught Carburettor) -:

यह ऐसा Carburettor है जिसमें वायु की दिशा ऊपर से नीचे की ओर होती है जिसके कारण पेट्रोल और हवा का मिश्रण भी नीचे की ओर ही आता है। इस प्रकार के Carburettor में Intake Manifold ऊपर की ओर लगा होता है, जिससे हवा नीचे की ओर आती है। इस Carburettor का प्रयोग ऐसे इंजनों में किया जाता है जो उच्च गति के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इस Carburettor का उपयोग करने से इंजन की आयतनिक दक्षता बढ़ जाती है।


3. प्राकृतिक या क्षैतिज प्रवाह कार्बुरेटर (Natural Draught or Horizontal Flow Carburettor) -:

यह ऐसा Carburettor है जिसमें वायु क्षैतिज दिशा से प्रवेश करता है और क्षैतिज ही सीधे निकलते हुए मिश्रण को प्रवाहित करता है। इसमें पेट्रोल और वायु का मिश्रण क्षैतिज दिशा में प्रवाहित होता है। Carburettor में Intake Manifold सीधी लाइन में अर्थात ऊपर-नीचे की दिशा में मे लगा होता है। यह इनटेक मैनीफोल्ड हवा को क्षैतिज दिशा में ही फेंकता है जिसके कारण पेट्रोल और वायु का मिश्रण भी क्षैतिज ही जाता है। इस Carburettor का उपयोग ऐसी जगह करते हैं, जहां पर बोनट के नीचे कम स्थान होता है। इस Carburettor का सबसे अधिक उपयोग छोटे इंजन में ही किया जाता है।


कार्बुरेटर (Carburettor) के गुण -:

1. एक अच्छे कार्बुरेटर (Carburettor) के अंदर निम्नलिखित गुण अवश्य विद्यमान होने चाहिए

2. कार्बुरेटर उचित मात्रा में और उचित समय पर ईंधन को ऑटोमाइज करके वाष्पीकृत करें।

3. कार्बुरेटर के द्वारा पेट्रोल और वायु के मिश्रण को तैयार किया जाता है।

4. Carburettor का उपयोग करने से, Carburettor ईंधन के अनुपात को स्वतः ठीक कर देता है।

5. कार्बुरेटर का रखरखाव अधिक खर्चीला नहीं होना चाहिए।

6. Carburettor की रचना सरल और सुगठित होनी चाहिए।

7. इसके द्वारा इंजन की Running Condition जैसे भार, गति इत्यादि के अनुसार ही पेट्रोल और वायु के अनुपात को तैयार करने का गुण होना चाहिए।

8. उपयोग होने वाले कार्बुरेटर का परिचालन कम खर्चीला होना चाहिए।

9. कार्बुरेटर Idling Condition के दौरान इंजन में रेसिंग को नियंत्रित करने का गुण रखता हो।

10. Carburettor में यह गुण होना चाहिए कि जब इंजन Idling की अवस्था में है तो उसे अधिक पेट्रोल प्रदान कर सकें 

11. विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों जैसे मौसम, भार, ऊंचाई, गति में भी इंजन को सुगमता से चालू करने में Carburettor सक्षम होना चाहिए।


कार्बुरेटर के भाग (Parts of Carburettor in Hindi) -:

कार्बुरेटर के मुख्य भाग निम्न है -

1. आप्लव कक्ष (Float Chamber)

2. स्ट्रेन (Strain)

3. छिद्र (Vent)

4. फ्लोट (Float)

5. सुई वाल्व (Needle Valve)

6. वेंचुरी (Venturi)

7. ईंधन नोजल (Fuel Nozzle)

8. थ्रोटल वाल्व (Throttle Valve)


1. आप्लव कक्ष (Float Chamber) -

यह एक छोटा सा भंडारण होता है जिसमें नियत दाब शीर्ष पर नोजल को ईंधन की पूर्ति की जाती है। स्ट्रेनर, फ्लोट और नीडल वाल्व भी फ्लोट चेंबर (Float Chamber) के ही भाग है।


2. स्ट्रेन (Strain) -

स्ट्रेनर ऐसा भाग है जिसके द्वारा ईंधन में उपस्थित धूल , अन्य कणो को छाना जाता है। इस स्ट्रेनर को सूक्ष्म तारों से शंकुनुमा या बेलनाकार बनाया जाता है।

ईंधन को छानने की इसलिए आवश्यकता पड़ती है क्योंकि यह ईंधन Nozzle के क्षेत्र में से होकर गुजरता है। जिसके कारण उसमें किसी प्रकार की धूल या कण आदि होने से Nozzle बंद हो जाने की संभावना बहुत अधिक रहती है और उसी को दूर करने के लिए Strainer का उपयोग किया जाता है।


3. छिद्र (Vent) -

यह फ्लोट चेंबर में बना रहता है इसके कारण ही चेंबर में वातावरणीय दाब स्थित होता है।


4. फ्लोट (Float) -

इसे एक धातु की पतली चादर से बनाया जाता है। इसका भार बहुत कम होता है। फ्लोट चेंबर में जब ईंधन का स्तर नीचे गिरता है तो Float भी नीचे चला जाता है। जिसके कारण ईंधन के आगे का रास्ता खुल जाता है। Float फलोर का मुख्य कार्य है कि यह फल वोट चेंबर में ईंधन के स्तर का निर्धारित मान बनाए रखें।


5. सुई वाल्व (Needle Valve) -

फ्लोट चेंबर में जितने भी ईंधन आते हैं उनको नीडल वाल्व के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। सुई वाल्व (Needle Valve), फ्लोट की गति के अनुसार ही अपनी गति करता है।


6. वेंचुरी (Venturi) -

यह एक नली के आकार संरचना होती है, जो घटते हुए क्रॉस सेक्शन के आकार की होती है। वेंचुरी का क्रॉस सेक्शन का क्षेत्रफल जंहा सबसे कम होता है उसे थ्रोट कहते हैं।

वेंचुरी के माध्यम से बहती हुई वायु की गति बढ़ाकर उसके दाब को कम किया जाता है। फ्लोट चेंबर में वातावरणीय दाब स्थित रहता है यह दाब थ्रोट के उस हिस्से पर कम होता है जहां पर कंठ (थ्रोट) का क्रॉस सेक्शन कम होता है। जिसके कारण वेंचुरी में अलग-अलग जगहों पर स्थित दाबो में अंतर आ जाता है। वेंचुरी में इस अंतर के आने के कारण ईंधन बहुत ही सरलता से फ्लोट चेंबर में आकर नोजल में विसर्जित हो जाता है।


7. ईंधन नोजल (Fuel Nozzle) -

इसके द्वारा ईंधन की गति को बढ़ाया जाता है। ईंधन की गति बढ़ने के कारण ईंधन का दाब कम हो जाता है और ईंधन आसानी से वाष्पित हो जाता है।


8. थ्रोटल वाल्व (Throttle Valve) -

इसके द्वारा पेट्रोल और वायु के मिश्रण को नियंत्रित किया जाता है। थ्रोटल वाल्व सदैव वेंचुरी के बाद लगा होता है। यह कई लिंक की सहायता से एसिलेटर पैडल से जुड़ा होता है और जब पैडल को दबाया जाता है तो यह खुल जाता है।


कार्बुरेटर की क्रियाविधि (Carburettor Working) -:

जब इंजन में चूषण स्ट्रोक होता है तो उस समय सिलेंडर में निर्वात उत्पन्न हो जाता है। सिलेंडर में निर्वात उत्पन्न होने के कारण कार्बोरेटर में भी निर्वात उत्पन्न हो जाता है और वायुमंडलीय वायु कार्बोरेटर के अंदर प्रवेश करने लगती हैं। जब यह वायु वेंचुरी में से होकर गुजर जाती है तो Float Chember और वेंचुरी में दाबो का अंतर उत्पन्न हो जाता है।

दाबो में यह अंतर उत्पन्न होने के कारण ईंधन पाइप के माध्यम से Nozzle में प्रवेश करती है और Nozzle में उपस्थित पेट्रोल की कुछ मात्रा Nozzle से निकलकर वायु के साथ मिल जाती है। जब पेट्रोल और वायु का मिश्रण के साथ मिल जाती है तो यह मिश्रण थ्रोटल वाल्व के रास्ते इंजन के सिलेंडर में पहुंच जाता है।

मिश्रण की मात्रा को नियंत्रित करने का कार्य Throttle Valve का होता है। Throttle Valve के खुलने और बंद होने के अनुसार ही मिश्रण की मात्रा नियंत्रित की जाती है।

मात्रा के नियन्त्रित होने के अनुसार ही हमे पावर मिलती है।



ये भी पढ़े...

Post a Comment

0 Comments