तांबा की वेल्डिंग (Welding of Copper in Hindi)
स्टील के अलावा अगर सबसे अधिक कोई धातु प्रयोग की जाती है तो वह तांबा (कॉपर) है। तांबा ऊष्मा का अच्छा सुचालक होता है, जिसे फ्यूजन कराने के लिए अधिक ऊष्मा की आवश्यकता पड़ती है। तांबे के कार्यखण्ड को वेल्डिंग करने से पहले उसको प्री-हीट किया जाता है। इसका ऊष्मा गुणांक अधिक होता है जिसके कारण वेल्ड करने से पहले तांबे के कार्यखंड को थोड़ी-थोड़ी दूरी पर टैक वेल्ड कर दिया जाता है। कार्यखंड पर टैक वेल्ड करने के कारण वेल्डिंग करते समय स्ट्रेस कम उत्पन्न होता है। जब तांबे का कार्यखण्ड 480 ℃ से अधिक तापमान पर पहुंचता है तो इसका सामर्थ्य कम होने लगता है और इसी कारण इसमें स्ट्रेस उत्पन्न होने की संभावना और क्रैक के आने की संभावना होने लगती है।
तांबा ऐसी धातु है जो पिघली अवस्था में ऑक्सीजन को अपने अंदर सोखने लगता है जिसके कारण वेल्ड जोड़ का भंगुर और सरंध्र होने की संभावना हो जाती है।
तांबे (Copper) की विशेषताएं -
१. यह धातु ऊष्मा और विद्युत दोनों की बहुत अच्छी सुचालक होती है।
२. तांबे के अंदर तन्यता अच्छी होती है।
३. इस धातु में सामर्थ्य होती है।
४. यह धातु अचुम्बकीय है।
५. तांबे की पॉलिश और प्लेटिंग आसानी से की जा सकती है।
६. तांबे पर मशीनिंग प्रक्रिया और वेल्डिंग आसानी से की जा सकती है।
७. कॉपर का गलनांक 1083°C आस-पास होता है।
८. यह आसानी से Zn, Sn, Al, Pb, Si, Ni आदि अलॉय तत्वों के साथ मिलकर विभिन्न उपयोगी अलॉय बनाती है।
कॉपर की वेल्डिंग विधियां (Welding Methods of Copper)
●टंगस्टन इनर्ट गैस वेल्डिंग
●मैटल इनर्ट गैस वेल्डिंग
●ऑक्सी एसीटिलीन गैस वेल्डिंग
●ब्रेजिंग
●सोल्डरिंग
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टंगस्टन इनर्ट गैस वेल्डिंग से ताम्बे को वेल्ड करना
इस विधि से जब तांबे की वेल्डिंग किया जाता है तो इसके लिये के लिए 2% थोरिया-युक्त टंगस्टन इलैक्ट्रोड प्रयोग किया जाता है। इस इलेक्ट्रोड के टिप को 0.5 mm फ्लैट रखा जाता है। इस वेल्डिंग को करते वक्त शील्डेड गैस के रूप में ऑर्गन या हीलियम या फिर ऑर्गन और हीलियम का मिश्रण प्रयोग किया जाता है।
इस वेल्डिंग में जिस फिलर मेटल का प्रयोग किया जाता है उसमें डी-ऑक्सीडाइजर रहने चाहिए जिससे ऑक्सीजन के बुरे प्रभाव से बचा जा सके। वेल्ड मेटल को ऑक्सीजन के कुप्रभाव से बचाने के लिए फिलर रॉड में 0-15% फॉस्फोरस तथा 0-50% सिलिकन को डी-ऑक्सीडाइजर के रूप में मिलाना चाहिए।
जब इस वेल्डिंग के द्वारा बट वेल्डिंग करना होता है तो जोड़ बनाने के लिए बैंकिंग प्लेट का प्रयोग किया जाता है। कॉपर के जोड़ बनाने के लिए पहले उसे गर्म करना चाहिए।
MIG वेल्डिंग के द्वारा ताम्बे को वेल्ड करना
इस वेल्डिंग को करने पर कॉपर के अच्छे परिणाम नहीं प्राप्त होते हैं परन्तु ऐसे कॉपर जिनमें डी-ऑक्सीडाइजर की मात्रा कम होती है उसको वेल्डिंग करने पर और भी खराब परिणाम प्राप्त होता है। इस वेल्डिंग विधि में ऑर्गन, हीलियम तथा नाइट्रोजन गैसो को शील्डिंग गैस के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
तांबे की वेल्डिंग, ऑक्सी एसीटिलीन गैस वेल्डिंग विधि द्वारा
गैस वेल्डिंग द्वारा ऑक्सीजन-रहित ताँबे की अच्छी वेल्डिंग की जा सकती है। इसमें फ्लक्स का प्रयोग करते समय उदासीन ज्वाला का प्रयोग किया जाना चाहिए। परन्तु जब बिना फ्लक्स के वेल्डिंग करना पड़े तो हल्की सी ऑक्सीडाइजिंग फ्लेम का प्रयोग अवश्य ही करना चाहिए। जब इस वेल्डिंग में तांबे के सिलिकान युक्त फिलर रॉड प्रयोग किया जाता है तो ये अच्छे और मजबूत जोड़ बनाने में सक्षम होते है।
कार्यखण्ड में उपजे ब्लो होल्स हटाने के लिए उसमें थोड़ा से फॉस्फोरस मिला देना चाहिए और जब बड़े सैक्शनों की वेल्डिंग करनी हो तो कार्यखण्ड धातु को प्री-हीट कर लेना चाहिए। जब ऑक्सी एसीटिलीन गैस वेल्डिंग के द्वारा बड़े जोड़ लगाना हो तो टैक लगाने के बदले फिक्चरों का प्रयोग ज्यादा उपयुक्त होता है। इस विधि में तांबे की वेल्डिंग करते वक्त वेल्डिंग की गति अधिक से अधिक तीव्र रखनी चाहिए। वेल्डिंग करने के पश्चात् कार्यखण्ड को 500°C तक पानी को गर्म करके वेल्ड कार्यखण्ड को पानी में डालकर अनीलिंग करना चाहिए।
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