एल्यूमीनियम की वेल्डिंग (Welding of Aluminium in Hindi)
एल्यूमीनियम (Aluminium) एक ऐसी धातु होती है जो हल्की, ऊष्मा और विद्युत की सुचालक है। यह चांदी जैसी चमकदार होती है परन्तु चांदी इतना गुण इसमें नही पाया जाता है। इस धातु पर जंग लगने की संभावना नही होती है।
शुद्ध एल्यूमीनियम में शक्ति नहीं होती है उसे शक्तिशाली बनाने के लिए का कापर, क्रोमियम, निकिल, आयरन, जिंक, मैग्नीज, सिलिकॉन और मैग्नीशियम के साथ मिलाया जाता है, जिससे शक्तिशाली एल्यूमीनियम का अलॉय बनता है। एल्यूमीनियम के अलॉय में कुछ अलॉय तो ऐसे होते हैं जो माइल्ड स्टील से कई गुना अधिक शक्तिशाली होते हैं लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि एल्यूमीनियम के अलावा 300℃ से 400℃ पर अपना सामर्थ्य खोने लगते हैं।
इन अलॉय के ऊपर निम्न प्रक्रिया आसानी से की जा सकती है।
●कास्टिंग
●फोर्जिंग
●वेल्डिंग
●एक्सट्रूजन
●रोलिंग
●ड्राइंग
शुद्ध एल्यूमीनियम का गलनांक 659 ℃ माना जाता है लेकिन एल्यूमीनियम के अधिकतर अलॉय का गलनांक 520 ℃ से 650 ℃ के बीच में होता है।
एल्यूमीनियम की ऊपरी सतह का निर्माण एल्यूमीनियम ऑक्साइड की पतली परत से होता है जब इस धातु का वेल्डिंग किया जाता है तो पिघलने पर यह धातु ऑक्साइड बनाती है और हाइड्रोजन गैस छोड़ती है। एल्यूमीनियम के भारी कार्यखंड को प्री-हिट किया जाता है प्री-हिट होने के कारण एल्यूमीनियम कमजोर हो जाता है इसलिए पतले से सेक्शन को वेल्ड करते समय विशेष ध्यान और सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।
एल्यूमीनियम की वेल्डिंग निम्न विधियों/प्रकार द्वारा की जाती है -:
1.ऑक्सी एसीटिलीन वेल्डिंग
2.फ्लक्स शील्डेड मेटल आर्क वेल्डिंग
3.मेटल इनर्ट गैस वेल्डिंग
4.टंगस्टन इनर्ट गैस वेल्डिंग
5.रेजिस्टेंस वेल्डिंग
6.कार्बन इलैक्ट्रोड वेल्डिंग
7.एटोमिक हाइड्रोजन वेल्डिंग
8.ब्रेजिंग
9.सोलिड-स्टेट वेल्डिंग
महत्वपूर्ण वेल्डिंग प्रक्रम -:
1. एल्यूमीनियम की ऑक्सी एसीटिलीन वेल्डिंग
इस विधि का प्रयोग करके एल्यूमीनियम की वेल्डिंग करते समय एक विशेष प्रकार का फ्लक्स का प्रयोग किया जाता है। यह फ्लक्स ऐसा होता है जिसमें ऑक्साइड को अपने अंदर घोलने की शक्ति होती है। एल्यूमीनियम के मोटे कार्यखंड को वेल्ड करने के लिए फीलर रॉड भी बेस मेटल के कंपोजीशन का ही होना चाहिए। सामान्य तौर पर इस वेल्डिंग में 5% सिलिकॉन से युक्त फीलर रॉड का प्रयोग किया जाता है। कार्यखंड की अच्छी वेल्डिंग करने के लिए उसको प्री-हीट किया जाता है। फ्री हिट करते समय क्रेक होने की संभावना को कम करने के लिए उसको 250 ℃ से 400 ℃ के बीच किया गर्म किया जाता है। एल्यूमीनियम की वेल्डिंग करने के लिए ऑक्सी एसिटिलीन गैस वेल्डिंग सबसे सस्ती मानी जाती है इसके द्वारा 8 mm से 25 mm तक की मोटी चादर को आसानी से वेल्ड किया जा सकता है।
2. एल्यूमीनियम की फ्लक्स शील्डेड मेटल आर्क वेल्डिंग
एल्यूमीनियम के कार्यखंड में इस वेल्डिंग विधि का प्रयोग बहुत ही अच्छे जोड़ का निर्माण नहीं किया जा सकता है इस वेल्डिंग में आर्क को शुरू करने के लिए अधिक आर्क की आवश्यकता होती है। एल्यूमीनियम के कार्यखंड को आपस में जोड़ते समय उसके नीचे एक स्ट्रीप लगाया जाता है जिसे बैकिग स्ट्रिप कहते हैं। बैकिंग स्ट्रीप लगाने से कार्य खंडपीठ की अवस्था में इधर-उधर नहीं बैठ पाता है। इस वेल्डिंग के लिए हेवी कोटेड एलॉय की इलेक्ट्रोड का प्रयोग अधिक किया जाता है। इस इलेक्ट्रोड से एल्यूमीनियम की कास्टिंग को आसानी से रिपेयर किया जा सकता है। एल्यूमीनियम के कार्यखंड की सतह पर से आर्द्रता को समाप्त करने के लिए और जोड़ों को क्रेक होने से बचाने के लिए कार्यखण्ड को 200 ℃ तक प्री-हीट किया जाता है।
3. एल्यूमीनियम की टंगस्टन इनर्ट गैस वेल्डिंग/TIG Welding
एल्यूमीनियम की वेल्डिंग करने के लिए यह वेल्डिंग आजकल बहुत ही प्रचलित विधि है। एल्यूमीनियम के जो कार्यखंड पतले होते हैं उनको बिना फिलर रॉड के ही वेल्ड कर दिया जाता है परंतु जो कार्यखंड मोटे होते हैं उनके लिए फिलर राड का प्रयोग किया जाता है। TIG वेल्डिंग में ए.सी. और डी.सी. दोनों प्रकार के करंट का प्रयोग किया जाता है। इस वेल्डिंग को करते समय शील्डेड गैस के रूप में आर्गन का प्रयोग किया जाता है और कभी-कभी हीलियम और आर्गन+हीलियम के मिश्रण का प्रयोग किया जाता है। जब इस वेल्डिंग में साधारण टंगस्टन का इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है तो उस पर एल्यूमीनियम के चिपकने की संभावना अधिक रहती है इसलिए टंगस्टन जिर्कोनियम इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है, जिससे कि एल्यूमीनियम इलेक्ट्रोड पर चिपक ना सकें। इस वेल्डिंग के लिए आपको आर्क छोटा बनाना चाहिए सामान्यतया यह आर्क, टंगस्टन इलेक्ट्रोड के व्यास के बराबर हो।
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