ग्रे कास्ट आयरन की वेल्डिंग (Welding of Gray Cast Iron) - प्रकार/विधियाँ

इस पोस्ट में हम जानेंगे कि ग्रे कास्ट आयरन की वेल्डिंग कैसे की जाती है, साथ ही यह जानकारी भी प्राप्त करेंगे कि Gray Cast Iron की वेल्डिंग के लिए कौन से तरीके/विधियों या प्रकार का प्रयोग किया जाता है।


ग्रे कास्ट आयरन की वेल्डिंग (Welding of Gray Cast Iron) - प्रकार/विधियाँ


ग्रे कास्ट आयरन की वेल्डिंग (Welding of Gray Cast Iron in Hindi)

ग्रे कास्ट आयरन के अंदर कार्बन, ग्रेफाइट के फ्लेक्स इत्यादि स्वतंत्र रुप में उपस्थित होते हैं। इसी कारण इसको आसानी से मशीनिंग किया जा सकता है। लौह धातुओं में इस धातु का गलनांक सबसे कम होता है और अन्य धातुओं की तुलना में ग्रे कास्ट आयरन को वेल्डिंग करना कठिन और महंगा होता है। ग्रे कास्ट आयरन एक भंगुर धातु होती है।

ग्रे कास्ट आयरन को वेल्डिंग करने के बाद बहुत धीमी गति से ठंडा किया जाता है। अगर यह तेज गति से ठंडा हो गया तो वेल्ड पूल में उपस्थित कार्बन और आयरन से मिलकर यह व्हाइट कास्ट आयरन में बदल जाता है जो कि बहुत कठोर और भंगुर धातु है जो मशीनिंग करने योग्य नहीं होता है। वेल्डिंग किए गए कार्यखंड को ठंडा होने की गति कम करने के लिए ग्रे कास्ट आयरन के कार्यखण्ड को 600℃ से 700℃ तक प्री-हीट किया जाता है। वेल्डिंग करने के बाद कार्यखंड को चूने के पाउडर या सूखे रेत से ढक दिया जाता है। ग्रे कास्ट आयरन के कार्यखंड पर अच्छा जोड़ बनाने के लिए इलेक्ट्रोड की धातु का ऊष्मा प्रसार गुणांक, बेस मेटल के ऊष्मा प्रसार गुणांक के समान होना चाहिए, क्योंकि इसके समान होने से कार्यखंड के क्रेक होने की संभावना और प्रतिबल कम हो जाती है।

साधारण कास्ट आयरन का वेल्डिंग करने के लिए दो प्रकार के इलेक्ट्रड प्रयोग किए जाते हैं।

1. मशीनेबल इलेक्ट्रोड

2. नॉन - मशीनेबल इलेक्ट्रोड


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1. मशीनेबल इलेक्ट्रोड

ऐसे इलेक्ट्रोड जिनके द्वारा वेल्डिंग की गई सतह को आसानी से मशीनिंग किया जा सकता है, उसे मशीनेबल इलेक्ट्रोड कहते हैं। इसलिए उनके द्वारा बनी वेल्डिंग बीड सॉफ्ट होती ह। इसके इलेक्ट्रोड में तांबा, निकिल या मात्र शुद्ध निकिल का ही प्रयोग किया जाता है।


2. नॉन-मशीनेबल इलेक्ट्रोड

ऐसे इलेक्ट्रोड का प्रयोग वेल्डिंग किये गए ऐसे कार्यखण्ड पर किया जाता है जिसमे मशीनिंग नही करना पड़ता है। ऐसे इलेक्ट्रोड पर माइल्ड स्टील के तार का फ्लक्स चढ़ाकर बनाया जाता है। इनके द्वारा कार्यखंड में जो वेल्डिंग बीड बनती है वह बहुत ही कठोर होती है और इसको मशीनिंग नहीं किया जा सकता है।


ग्रे कास्ट आयरन की वेल्डिंग करने के लिए निम्न विधियाँ/प्रकार अपनाए जाते हैं -

●ऑक्सी एसीटिलीन वेल्डिंग

●शील्डेड मेटल आर्क वेल्डिंग

●ब्रेजिंग

●थर्मिट वेल्डिंग


कुछ महत्वपूर्ण विधियों का वर्णन -:

ग्रे कास्ट आयरन की शील्डेड मेटल आर्क वेल्डिंग -:

इस विधि द्वारा ग्रे कास्ट आयरन की वेल्डिंग करने के लिए सबसे पहले कार्यखंड के दोनों भागों को V आकार का बनाया जाता है जिसमें 60° से 90° का कोण रखा जाता है। कभी-कभी वेल्डिंग करने के लिए Notchभी दोनों कार्यखण्ड के वेल्डिंग सतह को बना दिया जाता है। इस वेल्डिंग को करने के लिए कास्ट आयरन, माइल्ड स्टील, निकील अलाय, स्टेनलेस स्टील की इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है। ग्रे कास्ट आयरन के वेल्डिंग में स्ट्रेस को कम करने के लिए Skip वेल्डिंग की जाती है और वेल्ड को क्रेक होने या कठोर होने से बचाने के लिए कार्यखण्ड को प्री-हीट किया जाता है।


ग्रे कास्ट आयरन की ऑक्सी एसीटिलीन वेल्डिंग -:

इस वेल्डिंग विधि द्वारा कार्यखंड की वेल्डिंग करने के लिए सबसे पहले उसको प्री-हीट करना पड़ता है और फिलर रॉड के रूप में मेटल के कंपोजीशन के समान मात्रा ही वेल्डिंग रॉड में कंपोजीशन होना चाहिए। इस इलेक्ट्रोड में सल्फर और फास्फोरस कम से कम मात्रा में होना चाहिए परंतु कार्बन और सिलिकॉन अधिक मात्रा में उपस्थित होने चाहिए। वेल्डिंग करते समय वेल्ड बीड में कार्बन और सिलिकॉन कम ना हो इसके लिए ही वेल्डिंग रॉड में कार्बन और सिलिकॉन मिलाया जाता है।

ऑक्सी एसिटिलीन वेल्डिंग विधि द्वारा ग्रे कास्ट आयरन की वेल्डिंग करने के लिए उदासीन फ्लेम का प्रयोग किया जाता है। जिससे ऑक्साइड बनने की संभावना कम हो जाती है और कार्यखंड की भंगुरता भी नहीं बढ़ती है।



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