लकड़ी चीरने की विधि (Wood Chipping Method in Hindi)- लकड़ी का रुपांतरण

लकड़ी का रूपांतरण (Conversion of Timber in Hindi) -:

जब वृक्ष को बाजार की विभिन्न मांगों के अनुसार चीरा/फाड़ा जाता है या व्यावसायिक मांग के आधार पर चिराई (Sawing) की जाती है तो उसे लकड़ी का रूपांतरण (Conversion of Timber) कहते हैं। लकड़ी की चिराई करते समय सदैव ध्यान रखना चाहिए कि जितने आकार की हमें लकड़ी चाहिए उसमें कुछ सिकुड़न व Allowance को जोड़कर मूल आकार से बड़े साइज की ही चिराई करनी चाहिए। जिससे लकड़ी के सूखने के बाद भी टिंबर की साइज आवश्यकतानुसार बनी रहे। समान्यतः टिंबर में अलाउंस 3.2 mm से 6.4 mm तक रखा जाता है। अलाउंस छोड़ने की क्रिया मौसम के ऊपर निर्भर करता है कि, किस मौसम में अलाउंस कितना छोड़ा जाए।

लकड़ी चीरने की विधि (Wood Chipping Method in Hindi)- लकड़ी का रुपांतरण
लकड़ी को रूपांतर या उसके चीरने की निम्नलिखित विधियां हैं जो निम्न है -

1. चौरस या साधारण की चिराई (Flat or Ordinary Sawing)

2. स्पर्शीय चिराई (Tangential Sawing)

3. त्रिज्यीय चिराई (Radial Sawing)

4. चौथाई चिराई (Quarter Sawing)

5. संयुक्त चराई (Combined Sawing)


1. चौरस या साधारण की चिराई (Flat or Ordinary Sawing) -:

इस विधि का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है क्योंकि यह विधि आसान होने के साथ-साथ सस्ती भी होती है। इस विधि में लकड़ी को समांतर पट्टी के रूप में चीरा जाता है। इस प्रकार से इस विधि का प्रयोग करके लकड़ी का कोई भी भाग व्यर्थ नहीं होता है। साधारण विधि का प्रयोग करने से लकड़ी की चीराई करते समय अधिक मात्रा में बुरादा भी उत्पन्न नहीं होता है। परंतु इस विधि द्वारा जो लकड़ी चीरे गए होते हैं उनमें बाद में फटाव आने की संभावना ज्यादा होती है। चौरस या साधारण विधि से चिराई करने पर जो काष्ठ प्राप्त होते हैं, उनका  उपयोग सजावटी वस्तुओं को बनाने में नहीं किया जा सकता है। वह केवल मोटे तौर पर अन्य कार्यों में ही उपयोग में लाये जा सकते हैं।


2. स्पर्शीय चिराई (Tangential Sawing) -:

इस विधि को भी एक सस्ती विधि माना जाता है क्योंकि इसमें लागत भी अधिक नहीं आती है और फिर चिराई में कम समय भी लगता है। इस विधि में लकड़ी की चिराई वार्षिक वलय की स्पर्शीय दिशा में एक दूसरे के समानांतर की जाती है। इस विधि से चिराई करने पर में मज्जा रश्मियां कट जाती हैं। जिसके कारण चिरी जाने वाली लकड़ी मजबूत नहीं हो पाती है, परंतु स्पर्शीय चिराई विधि से जो लकड़ी पर प्राप्त होती है उसमे फटन, ऐंठन और सिकुड़न उत्पन्न होने का भय कम होता है। स्पर्शीय चिराई विधि से जो लकड़ी प्राप्त होती है इससे पॉलिश का कार्य ठीक से नहीं हो पाता है और यह लकड़ी कम समय में सुख जाते हैं। इस लकड़ी का प्रयोग मोटे तौर पर किया जाता है।


3. त्रिज्यीय चिराई (Radial Sawing) -:

इस विधि में लकड़ी के लट्ठे को मज्जा रश्मियों के समानांतर चीरा जाता है। त्रिज्यीय चिराई विधि को कठोर लकड़ियों को अधिकांश चीरने के लिए उपयोग किया जाता है। इस विधि का उपयोग करके जो लकड़ी चिरी जाती है, उसमें सिकुड़न होने के अवसर सबसे कम होते हैं। परंतु लकड़ी की चिराई करते समय इसमें लकड़ी की बर्बादी बहुत ज्यादा होती है। त्रिज्यीय चिराई विधि से लकड़ी की चिराई की जाती है तो लकड़ी में दरारें नहीं पड़ती हैं और लकड़ी की सतह भी काफी चिकनी प्राप्त होती है। इस विधि से चिराई करते समय लकड़ी के लठ्ठे को घुमा घुमा कर काटना पड़ता है।


4. चौथाई चिराई (Quarter Sawing) -:

इस चिराई विधि के नाम से ही स्पष्ट होता है कि इसमें लकड़ी के चार भाग किए जाएंगे। इसीलिए इस विधि में सबसे पहले लकड़ी को चार भागों में काट लिया जाता है और तब इनकी चिराई की जाती है। जब इस विधि से चिराई करनी होती है तो सबसे पहले आरे के निशान को एक दूसरे के समकोण पर लगाकर चिराई की जाती है। चौथा चीराई विधि से काटे गए लकड़ी मजबूत, टिकाऊ, सुंदर और सुडौल होते हैं। इनमें दरार पड़ने की संभावना कम होती है।


5. संयुक्त  चीराई (Combined Sawing) -:

संयुक्त चीराई विधि में लकड़ी के लठ्ठे को दो या दो से अधिक विधि द्वारा चिराई की जाती है। संयुक्त चिराई विधि में सबसे पहले लकड़ी को चीरने के लिए उस विधि का प्रयोग किया जाता है जिस विधि से लकड़ी को चीरने में लागत कम आती है और आसानी से चिराई का कार्य हो जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि लकड़ी का जो हिस्सा बेकार होता है वह अधिक मात्रा में बेकार नहीं होने पाता है।


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