प्रमुख टिम्बर/लकड़ी के नाम । पहचान। विशेष गुण । प्राप्ति स्थान

इस पोस्ट में इंजीनियरिंग क्षेत्र में और अन्य क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली टिम्बर (Timber) या लकड़ियों (Wood) की जानकारी दी गई है। किस वृक्ष के लकड़ी महत्वपूर्ण होते हैं और किनमे कठोरता अधिक होती है, इन सभी जानकारीयों को इस लेख में समाहित किया गया है। भारत में इंजीनियरिंग क्षेत्र में या फर्नीचर क्षेत्र में या अन्य उपयोगों में लकड़ियां बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती हैं, जिनकी पहचान, नाम और विशेषता को जानना आवश्यक हो जाता है। इसलिए इस पोस्ट में टिंबर के नाम, पहचान और उसकी विशेषताओं के बारे में जानकारी दी गई है।  साथ ही साथ में किस क्षेत्र में सबसे अधिक पाई जाती हैं, उनका घनत्व इत्यादि का भी जिक्र किया गया है।


प्रमुख टिम्बर/लकड़ी के नाम । पहचान।  विशेष गुण । प्राप्ति स्थान
बबूल पर लगे पीले फूल


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● बन सागौन (Ben Teak) -:

इस लकड़ी को पहाड़ी वाले क्षेत्र में पाया जाता है। साधारण तौर पर इसे महाराष्ट्र, मैसूर, तमिलनाडु और केरल में पाया जाता है। इसमें रेशे की मात्रा अच्छी होती हैं। बन सागौन (Ben Teak) वृक्ष की लकड़ी चिकनी टिकाऊ और मजबूत होती है। इस लकड़ी की Seasoning करने में अनेक कठनाई का सामना करना पड़ता है। परंतु जब बन सागौन की लकड़ी गीली होती है तब भी इस प्रकार की लकड़ी पर कार्य किया जा सकता है। बन सागौन वृक्ष की लकड़ी तेल युक्त और रोल युक्त से भरी होती है। बन सागौन लकड़ी का भार 675 से 700 किलोग्राम प्रति मीटर घन होता है। अगर इसकी फिनिशिंग की बात की जाए तो शीशम की तुलना में यह बहुत ही अच्छी Finishining देती है और इस पर पॉलिशिंग भी अच्छी तरह से किया जा सकता है। बन सागौन लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर, जहाज, दरवाजे खिड़कियों और अन्य प्रकार के फर्नीचर कार्यों में किया जाता है।


● सागौन (Teak) -:

यह लकड़ी तेल से युक्त, मजबूत, कठोर और टिकाऊ लकड़ी होती है। इसका रंग भूरे, बदामी रंग, हल्का लाल रंग होता है और इसकी सतह काफी चिकनी होती है। सगौन की लकड़ी मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात और दक्षिण भारत में सबसे अधिक पाई जाती है। इस लकड़ी पर पालिश का कार्य आसानी से किया जा सकता है। सागौन एक ऐसा वृक्ष है जिसमें दीमक नहीं लगते हैं और साथ ही यह अग्नि का विरोध भी करती है। सागौन की टिंबर पर रंदे को आसानी से चलाया जा सकता है, जिसके फलस्वरूप यह लकड़ी अच्छी फिनिशिंग देती है। सागौन की लकड़ी की Seasoning  सरलता पूर्वक किया जा सकता है। इस लकड़ी का भार 600 से 625 किलोग्राम प्रति मीटर होता है।

सागौन की लकड़ी का प्रयोग उच्च श्रेणी के कार्य में किया जाता है। जैसे दरवाजा बनाना, खिड़की बनाना, फर्नीचर की अन्य कार्यों को करना, छत में लगाना, जहाज में लगाना, प्लाईवुड का निर्माण करना, भवन निर्माण में उपयोग करना इत्यादि।


● शीशम (Shisham) -:

यह लकड़ी सुंदर, मजबूत, टिकाऊ, कठोर और चिकनी होती हैम इस लकड़ी का रंग गहरा भूरा या गहरा बदामी रंग का होता है और यह मीठी गंध के साथ उपस्थित होती है। इस लकड़ी पर पॉलिश का कार्य बहुत ही सरलता पूर्वक किया जाता है। शीशम की लकड़ी पर विभिन्न प्रकार के ऑपरेशन किए जा सकते हैं परंतु इन ऑपरेशन को करने में कठिनाई आती है। शीशम की लकड़ी की Seasoning आसानी से कर दी जाती है जिसमें किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होती है। यह काफी वजनदार लकड़ी होती है, जिसका भार 750 से 800 किलोग्राम प्रति मीटर घन होता है। इस लकड़ी की कीमत काफी अधिक होती है क्योंकि यह काफी टिकाऊ और मजबूत होता है।

भारत में शीशम की लकड़ी को असम पंजाब उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र बंगाल और उड़ीसा के राज्यों से प्राप्त किया जाता है। शीशम की लकड़ी का व्यापार नेपाल में भी बहुत अधिक होता हैम शीशम की लकड़ी का उपयोग खिड़कियों, दरवाजों, फर्नीचर के निर्माण में, कृषि यंत्रों के निर्माण में, रेल के डिब्बों में, पुल के ढांचे में, खेल के सामान में, रेलवे स्लीपर इत्यादि जैसे अनेकों कार्य में किया जाता है।


● सिरिस (Siris) -:

इस लकड़ी की सतह देखने में शीशम के समान होती है। यह लकड़ी टिकाऊ तो होती है और काफी मजबूत भी होती है परंतु सिरिस (Siris) की लकड़ी पर कार्य करने में कठिनाई आती है। जब इस लकड़ी को सूंघा जाता है तो इसकी सुगंध मीठी होती है, परंतु यह शीशम से कम मजबूत लकड़ी होती है। इसका रंग गहरे बादामी या गहरे भूरे रंग की होती है। जब सिरिस (Siris) की लकड़ी पर Finishing का कार्य किया जाता है तो हमें काफी अच्छी Finishing प्राप्त होती है। यह लकड़ी शीशम की अपेक्षा बहुत भारी होती है। इसका भार 1050 किलोग्राम प्रति मीटर घन तक होता है। सिरिस की लकड़ी उत्तर भारत में अधिकांश पाया जाता है, जिसमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य प्रमुख हैं। इस लकड़ी का प्रयोग कुंए की चक्की बनाने में,  पेटियों को पैकिंग करने में और अन्य फर्नीचर कार्य में किया जाता है।


● देवदार (Deodar) -:

इस लकड़ी पर कार्य करना बहुत ही उपयुक्त माना जाता है। इसमें ऐंठन, मरोड़, दरार इत्यादि जैसे कोई भी दोष नहीं पाए जाते हैं। फर्नीचर की दृष्टि से और अन्य कार्यों की दृष्टि से या काफी उपयोगी लकड़ी सिद्ध होती है। देवदार के लकड़ी का भार कम होता है और यह टिकाऊ मजबूत और ढीले कणो वाली होती है। देवदार की लकड़ी का रंग हल्का पीला होता है और जब यह अच्छी तरह पक जाती है तो इसका रंग भूरा हो जाता है। वैसे तो देवदार की लकड़ी का भार 550 से 600 किलोग्राम प्रति मीटर घन माना जाता है, परंतु इसका भार, इसकी क्वालिटी पर गिर निर्भर करता है। कभी-कभी यह इससे हल्की भी होती है। देवदार के पेड़ सामान्यतः 1200 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर ही पाए जाते हैं। जिसके कारण यह अधिकतर पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में होते हैं। देवदार की लकड़ी का प्रयोग रेलवे स्लीपर्स, दरवाजे, खिड़किया, फर्श, छत, पुल, रेलवे वैगन और अन्य प्रकार के फर्नीचर उत्पादन में किए जाते हैं। अगर इसकी कीमत की बात की जाए तो यह लगभग शीशम की लकड़ी की बराबर होते हैं।


● साल (Sal) -:

इस लकड़ी की सतह समतल और चिकनी होती है। साल (Sal) की लकड़ी कठोर, टिकाऊ और वह वजनदार होती है। साल की लकड़ी का रंग भूरा और बदामी होता है। लकड़ी की सीजनिंग बहुत ही धीमी गति से होती है साल की लकड़ी के अंदर यह गुण होता है कि यह पानी में और भूमि के नीचे रखने पर भी टिकाऊ बनी रहती है। इस लकड़ी की सतह पर फनिंशिंग तो हो जाती है परंतु पॉलिश का कार्य नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह पॉलिश योग्य नहीं होती है। साल की लकड़ी का वजन 800 से 900 किलोग्राम प्रति मीटर घन होता है। इस लकड़ी के पेड़ को भारत के कई राज्य में पाया जाता है, जिनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा प्रमुख राज्य है।

साल की लकड़ी का प्रयोग जहाज बनाने में, रेलवे स्लीपर बनाने में, भवन निर्माण के कार्यों में ,चौखट को बनाने में और अन्य प्रकार के फर्नीचर कार्यों में किया जाता है। जब इस लकड़ी की कीमत की बात की जाती है तो यह आम की लकड़ी से महंगे मिलते हैं।


● तून (Toon) -:

तून वृक्ष के लकड़ी का रंग गहरा लाल भूरा और कभी  हल्का लाल का होता है। इस लकड़ी पर कई प्रकार के ऑपरेशन आसानी से किए जा सकते हैं। तूल (Toon) लकड़ी पर फिशिंग अच्छी प्राप्त होती है। यह लकड़ी भार में हल्की होती है जिसका भार 520 से 600 किलोग्राम प्रति घन होता है। इस लकड़ी को भारत के प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, असम तथा अन्य कई राज्य में पाया जाता है। इस लड़की का उपयोग पैकिंग बॉक्स में, दरवाजों के पैनल बनाने में, खिलौने बनाने में और सस्ती फर्नीचर के रूप में किया जाता है। इस लकड़ी के अन्य फर्नीचर कार्य किए जाते हैं। तून की लकड़ी बाजार में बहुत कम मिलती है।


● आम (Mango) -:

भारत में आम का वृक्ष की प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। इस लकड़ी का रंग भूरारा होता है। आम की लकड़ी भार में हल्की होती है, जिसका भार या घनत्व 650 किलोग्राम प्रति मीटर घन होता है। आम की लकड़ी रुक्ष कणो वाली होती है और इसके साधारण गुण भी आवश्यकतानुसार अच्छे नहीं होते हैं। आम की लकड़ी को भारत के प्रत्येक राज्य में पाया जा सकता है। यह ऐसी लकड़ी है जिसका उपयोग भारत में प्राचीन समय से ही होता आ रहा है। वैसे तो आम की लकड़ी का प्रयोग कई प्रकार के कार्यों में किया जाता है, परंतु इसका सबसे अधिक प्रयोग फर्नीचर के निर्माण में, विभाजक दीवारों के रूप में, पैकिंग के रूप में और पूजा-पाठ में भी इसका उपयोग किया जाता है।


हल्दू (Haldu) -:

हल्दू की लकड़ी मजबूत, सामर्थ्यवान होने के साथ-साथ टिकाऊ भी होती है। इस पर कई प्रकार के ऑपरेशन बहुत ही सरलता से किए जाते हैं। हल्लू की लकड़ी जब ताजी कटी होती है तो यह पीले रंग की दिखाई देती है। हल्दू की लकड़ी पर ऑपरेशन आसानी से किए जाने के कारण, यह अच्छी Finishing देता है और इस पर पॉलिश का कार्य भी बहुत ही सरलता से और अच्छे तरीके से किया जा सकता है। जब हल्दू की लकड़ी पर कीलें ठोकी जाती हैं तो इसके फटने का भय बहुत अधिक रहता है। यह भार में मध्यम वर्ग की होती है, जिसका भार 650 से 690 किलोग्राम प्रति मीटर घन होता है। हल्दू के अधिकतर वृक्ष मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र इत्यादि प्रदेश में पाए जाते हैं। इस लकड़ी का सबसे अधिक प्रयोग तख्ता बनाने में, ब्रुश के हैंडल बनाने में, इमारती लकड़ी के कार्यों में, कंघा बनाने में तथा छोटी फ्रेम बनाने में किया जाता है। यह लकड़ी अन्य प्रकार के फर्नीचर कार्य में भी बहुत ही उपयोगी होती है।


चीड़ (Chir) -:

चीड़ की लकड़ी हल्की, मुलायम और मोटी कणों वाली होती है  चीड़ की लकड़ी पर कई प्रकार के ऑपेरशन बहुत ही आसानी से किया जा सकता है। इसका उपयोग बहुत कम क्षेत्रों में ही होता है। इसका प्रयोग जिन क्षेत्रों में नहीं किया जाता है उनमें से हैं फर्नीचर के निर्माण में और भारी कार्यो में नही किया जाता है। चीड़ की लकड़ी अधिकतर उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और पंजाब की पहाड़ियों में उत्पन्न होती है। इसका उपयोग हम भवन निर्माण के कार्य में, रेलवे स्लीपर्स निर्माण में, वैगन, छत में, पूल में और फर्श निर्माण के कार्यों में किया जाता है।


जामुन (Jamun) -:

जामुन एक ऐसी लड़की है जो जल की प्रतिरोधी होती है साथ-साथ यहां कठोर और टिकाऊ भी होती है परन्तु यह कमजोर किस्म की होती है जो झटकों या अधिक भार को सहन न करके टूट जाती है। इसका रंग हल्का पीला होता है। जामुन की लकड़ी का भार 820 किलोग्राम प्रति मीटर घन होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह वजन में भारी होती है। जामुन के वृक्ष अधिकांश उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं। जामुन की लकड़ी का प्रयोग करके तख्ते, चौखट, कूप, लकड़ी की दुकानें और रेलवे के स्लीपर बनाए जाते हैं। इसका उपयोग फर्नीचर कार्यों में भी किया जाता है।


बबूल (Babul) -:

बबूल के टिंबर को कांटेदार वृक्ष से प्राप्त किया जाता है क्योंकि बबूल के वृक्ष में कांटे होते हैं जो कि एक कांटेदार वृक्ष है। बबूल के पत्ते छोटे छोटे होते हैं और बबूल के पेड़ पर पीले-पीले फूल भी आते हैं। बबूल के पौधे कांटेदार पौधे हैं इसलिए यह अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर उपजते हैं। बबूल के पेड़ से जो लकड़ी प्राप्त होती है उसका रंग लाल बुरा या गहरे बदामी रंग का होता है। बबूल से जो लकड़ी प्राप्त होती है वह कठोर, टिकाऊ और सुंदर सतह को देने वाली होती है। यह लकड़ी, आम से भारी होती है क्योंकि इसके कण बहुत ही सघन होते हैं। बबूल की लकड़ी को अधिकांश आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मद्रास, गुजरात, पश्चिम बंगाल से प्राप्त किया जाता है क्योंकि यह लकड़ी इन्हीं राज्यों में अधिकतर पाई जाती हैं। बबूल की लकड़ियों का प्रयोग फर्नीचर कार्यों के लिए किया जाता है। इसके अन्य भी महत्वपूर्ण उपयोग है। जैसे - कड़ी का निर्माण करना, तख्तों का निर्माण करना, पहियों का निर्माण करना, गाड़ियों में उपयोग आना, कृषि यंत्रों में उपयोग होना, दरवाजों का निर्माण होना, खिड़कियों का निर्माण होना, मेज का निर्माण होना इत्यादि जैसे अनेकों कार्य में प्रयोग किया जाता है। 

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