लकड़ी/टिम्बर का परिरक्षण या संरक्षण । परिरक्षक (Preservation) के प्रकार और गुण

लकड़ी/टिम्बर का परिरक्षण या संरक्षण । परिरक्षक (Preservation) के प्रकार और गुण

लकड़ी/टिम्बर का परिरक्षण या संरक्षण (Preservation of Timber) -:

जब लकड़ी की सीजनिंग अच्छे प्रकार से कर दी जाती है तो उसके बाद भी लकड़ी पर वातावरण और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है। इस पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव से लकड़ी को बचाने के लिए परिरक्षक या संरक्षण (Preservation) पदार्थ की आवश्यकता होती है जिन्हें लकड़ी पर होने वाले मौसम और जलवायु, वातावरण से होने वाले हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिए उपयोग किया जाता है। परिरक्षण या संरक्षण पदार्थों का उपयोग करने से लकड़ी का जीवन बढ़ जाता है तथा लकड़ी की कीटाणु से रक्षा होने की संभावना अधिक होती है क्योंकि परिरक्षक पदार्थ का प्रतिरोध कीटाणुओं के प्रति बढ़ जाता है।


परिरक्षक के प्रकार (Types of Preservation) -:

परिरक्षक आजकल बाजार में आसानी से उपलब्ध होते हैं। विभिन्न प्रकार के परिरक्षक जो बाजार व्यवसायिक रुप में मिलते हैं, यह अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं परीरक्षकों को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है -

1. परिरक्षक तार आयल (Preservative Tar Oils)

2. जल विलय रासायनिक लवण (Water Soluble Chemicals Salts)

3. कार्बनिक विलायक रसायन (Organic Solvent Chemicals)


1. परिरक्षक तार आयल (Preservative Tar Oils) -:

सामान्यतः क्रियोसोट का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है यह क्रियोसोट तीन तरह के होते हैं जिसके अन्तर्गत कोल टार, काष्ठ टार और जल गैस टार इत्यादि आते हैं। जिनमें सबसे अधिक प्रभावशाली कोलटार क्रियोसोट को माना जाता है। कभी-कभी शुद्ध कोलटार को भी परिरक्षक की तरह प्रयोग किया जाता है। परंतु ध्यान देने योग्य बातें यह है कि इसका उपयोग केवल सतह पर ही किया जाता है। सोलिग्नम और कर्बोलिवम कोल टार भी परिरक्षक के रूप में उपयोग किये जाते हैं।


2. जल विलय रासायनिक लवण (Water Soluble Chemicals Salts) -:

इन परीरक्षकों का उपयोग सबसे अधिक वहां पर किया जाता है जहां पर लकड़ी के पृष्ठ को सुंदर बनाना होता है। इन परिरक्षक में उपस्थित लवणों का प्रभाव धीरे-धीरे समाप्त होता है और अंत में पूरी तरह समाप्त हो जाता है। इसलिए जब इस परीरक्षकों का प्रयोग किया जाता है तो परीरक्षण करने के बाद सतह को पेंट कर देते हैं। यह परिरक्षक क्रियोसोट की तुलना में सस्ते होते हैं।


3. कार्बनिक विलायक रसायन (Organic Solvent Chemicals) -:

कार्बनिक विलायक रसायन को लकड़ी के परीरक्षक के रूप में उपयोग किया जाता है। यह ऐसे परिरक्षक होते हैं जो अन्य परीरक्षकों की तुलना में महंगे होते हैं। अगर इन परीरक्षकों की बात की जाए तो इसके अंतर्गत नेफ्थोल और फिनोल जैसे विषैली रासायनिक लवण परिरक्षक के रूप में आते हैं। इन्हें परीरक्षकों को लकड़ी पर लगाने से पूर्व स्प्रिट में घोल लिया जाता है। अगर स्प्रिट मौजूद नहीं होता है तो किसी वाष्पशील तेल में इन्हें घोल लिया जाता है। वाष्पशील तेल में घोलकर लगाने पर यह तेल वाष्प बनकर उड़ जाते हैं। जब कार्बनिक रसायन जैसे परिरक्षक का उपयोग किया जाता है तो इसके परिणाम बहुत अच्छे मिलते हैं। क्योंकि इन परिरक्षक को लकड़ी या टिम्बर पर लगाया जाता है तो उनमें सिकुड़न जैसी समस्या बहुत कम आती है।


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अच्छे परिरक्षक/संरक्षण पदार्थ की आवश्यकताएँ या वांछित गुण -:

1) परिरक्षक पदार्थ सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला होना चाहिए।

2) उपयोग की दृष्टि से यह सुरक्षित होना चाहिए।

3) इस परिरक्षक के अंदर कीटो और फ़ फंफूद को समाप्त करने का गुण होना चाहिए।

4) यह परिरक्षक इस प्रकार होना चाहिए जिसका उपयोग करने के बाद लकड़ी की सुंदरता बढ़ जाए।

5) इसके अंदर यह गुण होना चाहिए कि लकड़ी पर इसको प्रयोग करने के बाद इसके ऊपर पेंट और पॉलिश आसानी से किया जा सके।

6) परिरक्षक या संक्षारण पदार्थ को जलरोधी और अग्निरोधी होना चाहिए।

7) परिरक्षक पदार्थ के अंदर ऐसा गुण होना चाहिए कि इसकी थोड़ी सी मात्रा अधिक से अधिक क्षेत्रफल को ढक सके।

8) उपयोग होने वाला परिरक्षक गंधहीन हो।

9) यह ऐसा होना चाहिए ताकि इसको धूप और प्रकाश में रखने पर इसको कोई नुकसान ना हो।

10) परिरक्षक टिकाऊ होना चाहिए जो अधिक से अधिक समय तक अपना कार्य कर सकें।

11) परिरक्षक के अंदर यह गुण होना चाहिए कि पानी पड़ने के बाद भी इसकी गुणवत्ता समाप्त नहीं होनी चाहिए।

12) इसमें नमी और आद्रता को सहन करने का सामर्थ्य होना चाहिए।

13) परिरक्षक या संरक्षण पदार्थ के अंदर लकड़ी को किसी प्रकार की हानि ना पहुंचाने का गुण होना चाहिए।

14) इसमें यह गुण होना चाहिए कि यह रेशों के एक निश्चित गहराई तक आसानी से प्रवेश कर सकें।

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