Crucible Furnace क्या है? Pit Furnace & Tilting Furnace

क्रुसिबिल भट्टी (Crucible Furnace in Hindi) -:

जब छोटी कास्टिंग का निर्माण करना हो और विभिन्न धातुओं की कास्टिंग एक ही फाउंड्री में करना होता है तो धातु को गलाने के लिए जिस पात्र का प्रयोग किया जाता है उसे क्रुसिबिल कहते हैं और जिस भट्टी का प्रयोग किया जाता है उसे क्रुसिबिल भट्टी (Crucible Furnace) कहते हैं।

क्रुसिबिल का निर्माण क्ले और ग्रेफाइट के मिश्रण से होता है। क्रुसिबिल की क्षमता का माप, ताम्बे गलाने की क्षमता से की जाती है। वर्तमान समय में 1 से 400 नंबर तक की क्रुसिबिल उपलब्ध है। क्रुसिबिल भट्टी में कोक, तेल या गैस का प्रयोग किया जाता है और इसी के आधार पर कोक फायर्ड, आयल फायर्ड या गैस फायर्ड नाम रखा जाता है।


क्रुसिबिल भट्टी के प्रकार (Type of Crucible Furnace in Hindi) -:

ये दो प्रकार के होते हैं -

1. पिट फरनेस (Pit Furnace)

2. टिल्टिंग फरनेस (Tilting Furnace)


1. पिट फरनेस (Pit Furnace) -:

रचना - इस भट्टी के नीचे आयताकार या वृत्ताकार गड्ढा खोद दिया जाता है। कभी-कभी भट्टी में आयताकार या वृत्ताकार इस्पात खोल भी प्रयोग करते हैं। इस भट्टी के भीतरी सतह पर तापसह ईटों का स्तर लगाया जाता है। स्टील खोल की तली पर एक जाली और टॉप पर एक ढक्कन लगा होता है इस ढक्कन को आवश्यकता अनुसार हटाया और लगाया जा सकता है।

भट्टी में जहां पर जाली स्थित होता है उसकी 25 सेंटीमीटर के नीचे राख की गर्त होती है और उसके मध्य में एयर पाइप होता है जिसका संबंध ब्लोअर से स्थापित कर दिया जाता है। भट्टी में जो राख की गर्त रखी होती है उसको निकालने के लिए भट्टी की तली में एक द्वार भी लगा होता है।


Pit Furnace in Hindi
पिट भट्टी


पिट भट्टी की क्रियाविधि (Working of Pit Furnace) -:

भट्ठी को जलाने से पहले छैनी और हथौड़े की सहायता से भट्टी के स्तर का चीपिग कर दिया जाता है जिसके कारण उस पर लगी मैल उतर जाती है। कहीं-कहीं इस भट्टी में टूटी हुई तापसह ईंटे होती हैं उन ईंटो को बदल कर नई ईंट लगा दिया जाता है और फायर क्ले से मरम्मत कर देते हैं।

भट्टीयों को मरम्मत करने के बाद, अब भट्टी की तली में लकड़ी को जलाया जाता है और उसमें आग लगा दी जाती है जब लकड़ी में आग पकड़ लेती है तो उसमें कोक को डाला जाता है। जैसे ही कोक लाल हो जाती है तो रैकिंग रॉड से कोक को हटाकर क्रुसिबिल/पात्र रखने का स्थान बनाया जाता है।

अब क्रुसिबिल में पिघलाए जाने वाली धातु को माप-तौल कर रख देते हैं और क्रुसिबिल को क्लैंप की सहायता से पकड़कर, भट्टी के मध्य में जो खाली स्थान बना होता है उसी में उसको रख दिया जाता है। उसके बाद क्रुसिबिल के चारों ओर कोक को फैला देते हैं और भट्टी के टॉप पर ढक्कन लगा दिया जाता है।

पिट फरनेस में कोक को आधे घंटे तक जलने देते हैं। अगर भट्टी की उष्मा धातु गलाने के लिए पर्याप्त है तो उसे रहने देते हैं। परन्तु अगर धातु को गलाने में पर्याप्त ऊष्मा नही मिलती है तो कोक को डालकर ऊष्मा को बढ़ा दिया जाता है। कभी-कभी धातु को गलाने के लिए ऊष्मा अधिक हो जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए जलती हुई कोक को बाहर निकाल लिया जाता है।

ऊष्मा को ध्यान में रखते हुए धातु के पिघलने का इंतजार करना चाहिए और बीच-बीच में देखते रहना चाहिए कि धातु पिघल ही है कि नहीं। यह देखने के लिए की धातु की पिघली है कि नहीं देखने के लिए रैंकिंग रॉड का प्रयोग किया जाता है। रैंकिंग रॉड को पिघली हुई धातु में डाला जाता है अगर यह धातु पूरी तरह से पिघल गई है तो रैंकिंग रॉड सीधे क्रुसिबिल की तल पर टकराता है। अगर धातु की गली नहीं होती है तो रैंकिंग रॉड पिघलने वाली धातु पर ही टकरा जाता है।

जब धातु पूरी तरह पिघल जाती है तो अब इसको सांचे में उड़ेलना होता है। पिघली धातु को उड़ेलने के लिए पहले उसमें में स्थित मैल को बाहर निकाल दिया जाता है। और उसमें गालक डाल कर हिलाया जाता है ताकि अंदर बैठी मैल बाहर आ जाए और उसे बाहर निकाला जा सके। जब मैल को बाहर निकाल दिया जाता है तो पिघली धातु को अब संडासी और क्लैंप की सहायता से डाल पैटर्न में डाल देते हैं।


पिट भट्टी में सुरक्षा निर्देश (Safety Instructions of Pit Furnace) -:

१. पिट भट्टी में कार्य करते हुए निम्नलिखित सुरक्षा निर्देशों का पालन करना चाहिए -

२. धातु जब तक पूर्ण रूप से पिघल ना जाए तब तक ब्लोअर को बंद नहीं करना चाहिए।

३. पिघलती ही धातु का तापमान जब ढलाई योग्य हो जाता है तो उसको भट्टी से बाहर निकालना चाहिए।

४. जब कास्टिंग की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है तो क्रुसिबिल को अच्छी तरह साफ करके रख देना चाहिए।

५. जब धातु पिघल रही होती है तो क्रुसिबिल के तली के नीचे कोक-बैड जमा होना चाहिए अन्यथा नीचे से आती हुई वायु के प्रभाव से पिघलती हुई धातु ठंडी होने लगती है।


2. टिल्टिंग भट्टी (Tilting Curcible Furnace) -:

इस भट्ठी का मुख्य भाग स्टील के खोल का बना होता है जिसकी भीतर भाग पर तापसह पदार्थों का स्तर लगा होता है। इस खोल में धातु को पिघलाने के लिए क्रुसिबिल को रखते हैं। क्रुसिबिल के चारों ओर खाली स्थान होता है जिसमें इंधन की ज्वाला घूमती हुई होती है और अंत में जली गैसे बाहर निकल जाती हैं। टिल्टिंग क्रुसिबिल भट्टी में क्रुसिबिल/पात्र को रखने के लिए कुर्सी बनी हुई होती है जिसे क्रुसिबिल कुर्सी कहते हैं। खोल के ऊपरी सिरे पर Pouring Spout होता है जिससे पिघली धातुओं को बाहर निकाला जाता है। इसी खोल के निचले सिरे पर Emergency Spout होता है जिसका उपयोग उस वक्त किया जाता है जब खोल में ही पिघली धातु गिर जाती है।

भट्टी में लगी हुई खोल को एक ढक्कन से ढका जाता है, जिसे सरकाने के लिए एक हैंडल भी लगा होता है। टिल्टिंग भट्टी दो बेयरिंग के बीच मे  स्टैंड पर स्थिर रहती है। इस भट्टी को को स्टैंड से उतारने के लिए टिल्टिंग भट्टी  या टिल्टिंग गियर का प्रयोग किया जाता है।


Tilting Furnace in Hindi
टिल्टिंग भट्टी


टिल्टिंग भट्टी की क्रियाविधि (Tilting Curcible Furnace Methodology) -:

सबसे पहले पिघलने वाले धातु माप लिया जाता है और इसको को क्रुसिबिल में डाल देते हैं और तेल टंकी में इंधन वाले तेल को भर देते हैं। अब भट्टी को जलाने के लिए किसी पुराने कपड़े में मिट्टी के तेल को भिगोकर तेल को बर्नर में रख देते हैं और आग जलाते हैं। आग अच्छी तरह जलाने के लिए बर्नर का निरीक्षण द्वार खोल दिया जाता है और बर्नर जब गर्म हो जाता है तो ब्लोअर चलाकर धीरे-धीरे वायु का मार्ग बर्नर में खोलते हैं। तेल को टंकी से बर्नर में प्रवेश करवाने के लिए वाल्व लगा होता है, जहां वायु के साथ तेल बूंदों के रूप में आता है और जलते हुए ज्वाला बनाता है। यह ज्वाला भट्टी में खोल तथा क्रुसिबिल के बीच खाली स्थान में जाती है और धातु को ऊष्मा देकर पिघलाती है। बर्नर में जब ज्वाला जलने लगती है तो 15 मिनट के बाद पूरे हवा को खोल दिया जाता है और तेल का नियंत्रण करके अधिक से अधिक ज्वाला उत्पन्न किया जाता है। क्रुसिबिल के चारों ओर ज्वाला को प्रवाहित करने के लिए वायु के दाब और तेल के प्रवाह को अच्छी तरह नियंत्रित किया जाता है। नियंत्रित करने के कारण तेल का व्यर्थ खर्चा नहीं होता है और वायु भी कम समय में पिघलाने का कार्य करती है। ज्वाला का रंग बता देता है कि तेल की ठीक मात्रा आ रही है या नहीं आ रही है। यदि तेल की ठीक मात्रा बर्नर में आ रही है तो वह छोटी नीलेपन पर सफेद रंग का होकर जलता है।

अब उचित ज्वाला की सहायता से क्रुसिबिल को 45 मिनट के आसपास तक गर्म करते हैं और यह देखते हैं कि धातु पिघल गई है कि नहीं। अगर धातु नहीं पिघली है तो उसे और पिघलाते हैं और जब धातु पिघल जाती है तो तेल नियंत्रण वाले वाल्वऔर हवा नियंत्रण वाले वाल्व से तेल को बंद कर देते हैं। जब धातु पिघल रही होती है तो उस में कोयले का चूर्ण छिड़क दिया जाता है और अंत में कुछ समय बाद गालक को छिड़ककर मैल को निकाल लेते हैं।



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