अभंजनात्मक परीक्षण विधि (Non-Destructive Testing) द्वारा वेल्डिंग जोड़ का परीक्षण करना । प्रकार/विधियाँ

अभंजनात्मक परीक्षण विधि (Non-Destructive Testing in Hindi) -:

इस परीक्षण विधि में कार्यखंड के नमूनों को लेकर इसे तोड़ने या नष्ट करने की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें बिना तोड़े या नष्ट किए ही वेल्डिंग जोड़ो के दोषों का जांच कर लिया जाता है। इस कारण इस परीक्षण को अविनाशकारी/अविनाशी परीक्षण भी कहते हैं। इस परीक्षण विधि का प्रयोग करके कार्यखंड के बाह्य दोषों और आंतरिक दोषो का पता लगाया जाता है। जैसे - ब्लो होल्स, अंदरूनी दरार, स्लैग इन्क्लूजन इत्यादि।


अभंजनात्मक परीक्षण विधि (Non-Destructive Testing) द्वारा वेल्डिंग दोष कैसे जांचा जाता है?


अभंजनात्मक परीक्षण के प्रकार (Type of Non-Destructive Testing) -:

ये कई प्रकार के होते हैं जिनके नाम निम्न हैं -

1. साधारण निरीक्षण (Visual Examination)

2. डाई पेनीट्रेशन परीक्षण (Dye Penetration Test)

3. लीक परीक्षण (Leak Test)

4. चुम्बकीय पार्टिकिल परीक्षण (Magnetic Particle Test)

5. पराश्रव्य परीक्षण (Ultrasonic Test)

6. रेडियोग्राफिक परीक्षण (Radiographic Test)


1. साधारण निरीक्षण (Visual Examination)

साधारण निरीक्षण के द्वारा नग्न आंखों द्वारा दिखाई देने वाले वेल्डिंग दोषों का पता लगाया जाता है। कभी-कभी ये दोष इणतने महीन होते हैं कि इनको सत्यापित करने के लिए मैग्नीफाइंग लेंस का प्रयोग करना पड़ता है। इस निरीक्षण के द्वारा अंडरकट, सतही दरारें, ब्लो होल्स, प्रोफाइल तथा कम भरे हुए ग्रुव आदि दोषों का पता लगाते हैं। इसके द्वारा वेविंग और स्पेटरिंग दोषों का भी पता लगा सकते है।


2. डाई पेनीट्रेशन परीक्षण (Dye Penetration Test)

इस टेस्ट का प्रयोग वेल्डिंग जोड़ में उपस्थित छोटे सतह में स्थित दोषों का सही पता लगाने के लिए किया जाता है। यह ऐसी विधि है जिसका प्रयोग लौह और अलौह दोनों प्रकार के वेल्ड जोड़ो के दोषों का पता लगाने के लिए करते हैं।

वेल्ड जोड़ों को साफ करके उस पर फ्लोरेसेंस द्रव का लेप किया जाता है और लगभग 1  घंटे तक उसको डाई के अंदर रखा जाता है। अब नमूने को पानी से धोकर साफ कर देते हैं और इस पर डबलपर लगाया जाता है इस डबलपर का काम होता है कि दरारों में छुपे हुए डाई बाहर निकल जाते हैं और यह ऊपरी सतह पर निशान बना देता है। जिससे नमूनों में दोषों को ढूंढ लेते है।


3. लीक परीक्षण (Leak Test)

कभी-कभी वेल्ड किए गए जोड़ो पर पर रिसाव होने लगता है इस रिसाव का पता लगाने के लिए ही लीक परीक्षण (Leak Test) का प्रयोग किया जाता है।

इस परीक्षण को करते समय कार्यखण्ड में अधिक प्रेशर दिया जाता है जिसके कारण महीन छिद्र भी अपने अंदर से द्रव आर-पार जाने देते हैं। इस परीक्षण के द्वारा वेल्ड टैंक या पाइप लाइनों का जांच करके उसके दोषो को पता लगाने का कार्य किया जाता है। इस टेस्ट के लिए पानी प्रयोग किया जाता है।


यह Test तीन विधियों द्वारा किया जा सकता है -

1️⃣इस टेस्ट को करने के लिए बन्द बर्तन में गैस/हवा भरकर, उसके प्रैशर को नोट कर लिया जाता है तथा इसको 12 घण्टे और 24 घण्टे बाद पुनः दो या तीन बार इसको नोट किया जाता है। नोट करने के बाद यह पता लगाया जाता है कि दाब कंही पर लीक हुआ है कि नही। अगर दाब कम नही हुआ है तो कार्यखण्ड में कोई दोष नही है और यदि दाब कम हुआ तो कार्यखण्ड कंही न कंही से लीक होता है।

2️⃣दूसरी विधि में बर्तन में हवा को दाब देकर भर दिया जाता है और बर्तन के वेल्ड जोड़ पर साबुन और पानी का लेप लगा दिया जाता है। अगर उस पात्र में कहीं हवा लीक कर रही है तो वहाँ पर साबुन के पानी में बुलबुला बन जायेगा। इस प्रकार हम वेल्ड जोड़ में लीक का पता लगा लेते हैं।

3️⃣तीसरी विधि से लीक दोष का पता लगाने के लिए बर्तन में उपस्थित वेल्ड बीड को चूने के पानी से लेप दिया जाता है तथा सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब चूना सूख जाता है तो उसमें हवा भर कर प्रैशर दिया जाता है। यदि कहीं हवा लीक होती है तो वहाँ से चूना हट जाता है और इस प्रकार लीक होने वाले स्थान का पता लग लिया जाता है।


4. चुम्बकीय पार्टिकिल परीक्षण (Magnetic Particle Test)

मैग्नेटिक पार्टिकल टेस्ट विधि का प्रयोग करके छोटे से छोटे दरारों का भी पता लगाया जा सकता है। जिन दोषों का पता अन्य विधियों द्वारा नहीं पता है उन दोषों का पता भी चुम्बकीय पार्टिकिल परीक्षण के द्वारा लग सकता है। इस परीक्षण विधि का प्रयोग करके थर्मल क्रैक, ओवरलैप, स्लैग इंक्लूजन और हॉट टियर्स जैसे दोषों को ढूंढा जाता है।

कार्यखण्ड में से नमूने को लेकर चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है यदि कार्यखण्ड के नमूने में दरारें आ ब्लो-होल्स होंगे तो इन दोषों के किनारे-किनारे चुम्बकीय ध्रुव बन जाते हैं। जिसके कारण चुंबकीय बल रेखाओं का पथ रुक जाता है इस प्रकार स्लैग इंक्लूजन और गैस पॉकेट जैसे दोषों का आसानी से पता लगा लिया जाता है।


5. पराश्रव्य परीक्षण (Ultrasonic Test)

अल्ट्रासोनिक परीक्षण/पराश्रव्य परीक्षण विधि के द्वारा कार्यखंड के वेल्डिंग के दोषों का पता लगाने के लिए ध्वनि की 20 किलोहर्ट्ज से 20 मेगाहर्ट्ज तक की तरंगों का सहारा लिया जाता है। इन ध्वनि तरंगों के अंदर यह गुण होता है कि ये ठोस में से भी आर-पार हो जाती हैं। जब ध्वनि तरंगे उसमें से पार होती हैं तो अगर किसी प्रकार का अंदरूनी दोष कार्यखण्ड में होता है तो उस दोष से टकराकर ये तरंगे वापस लौट आती है। वापस आने वाली तरंगों के द्वारा वेल्डिंग दोषों के साइज व स्थिति का पता लगा लिया जाता है।

इस परीक्षण के द्वारा स्लैग इन्क्लूजन, फ्यूजन में कमी, ब्लो होल्स, लैक ऑफ फ्यूजन और पैनीट्रेशन इत्यादि दोषों का पता लगाने में किया जाता है।


6. रेडियोग्राफिक परीक्षण (Radiographic Test)

इस विधि द्वारा वेल्डिंग दोष ज्ञात करने के लिए X किरण और गामा किरणों का प्रयोग किया जाता है। इन किरणों में यह गुण होता है कि प्रकाश जिन पदार्थों के पार नहीं जा सकता हैं उनके भी पार यह चला जाता है। जब इसका प्रयोग वेल्ड किए गए कार्यखंड में किया जाता है तो यह उसके पार तो जाता है परंतु कार्यखंड में अगर कोई दोष होता है तो वहां पर, यह किरण अवशोषित होने लगता है। जिसे फोटोग्राफी फिल्मों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस वेल्डिंग परीक्षण में इन किरणों का प्रयोग करने के लिए X-ray ट्यूब या Cobalt-60 जैसे रेडियोधर्मिता वाले पदार्थों से इनको उत्पन्न किया जाता है इन किरणों की तरंगदैर्ध्य कम होती है।



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