वेल्डिंग जोड़ का यान्त्रिक परीक्षण (Mechanical Testing of Welding Joints) कैसे किया जाता है? प्रकार/विधियाँ

वेल्डिंग जोड़ का यान्त्रिक परीक्षण (Mechanical Testing of Welding Joints) प्रकार/विधियाँ

वेल्डिंग जोड़ का यान्त्रिक परीक्षण (Mechanical Testing of Welding Joints in Hindi) -:

इस परीक्षण को प्रयोगशाला में सबसे महत्वपूर्ण परीक्षण कहा जाता है। कार्यखण्ड के वेल्ड जोड़ का वास्तविक सामर्थ्य इसी परीक्षण के द्वारा निर्धारित किया जाता है। यह विभिन्न परिस्थितियों में लगने वाले अलग-अलग भारो को सहन करने की सामर्थ्य ज्ञात करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यांत्रिक परीक्षण का प्रयोग वेल्डिंग जोड़ के दोषो को जांच करके उसका निवारण किया जाता है।


यांत्रिक परीक्षण के प्रकार (Types of Mechanical Testing) -:

इस वेल्डिंग का परीक्षण करने वाले, इस विधि को निम्न भागों में बांटा गया है -

1. तन्यता परीक्षण (Tensile Test)

2. नम्यता परीक्षण (Bending Test)

3. आघात परीक्षण (Impact Test)

4. कठोरता परीक्षण (Hardness Test)

5. श्रांतिज परीक्षण (Fatigue Test)



1. तन्यता परीक्षण (Tensile Test)

इस परीक्षण विधि का प्रयोग कार्यखंड के वेल्ड जोड़ में उपस्थित तन्यता का सामर्थ्य, Yield Point, Elasticity, Ductility आदि गुणों को जांच करने के लिए किया जाता है।

इस विधि का प्रयोग करके वेल्डिंग जोड़ का परीक्षण करने के लिए नमूने को दो प्रकार से तैयार किया जाता है -

A) अनुप्रस्थ तन्यता नमूना (Transverse Tensile Specimen)

B) सम्पूर्ण तन्यता नमूना (Total Weld Metal Specimen)

कार्यखंड के नमूने का तन्यता परीक्षण करने के लिए यूनिवर्सल टेस्टिंग मशीन या टेनसाइल टेस्टिंग मशीन का प्रयोग किया जाता है। इस परीक्षण के लिए नमूने को विशेष प्रकार से तैयार किया जाता है। तैयार करने के बाद इन नमूनों को प्लेट की मोटाई के अनुसार गोल और आयताकार बनाते हैं। अब इसका सामर्थ्य निकालने के लिए तन्यता परीक्षण मशीन या यूनिवर्सल परीक्षण मशीन के जबड़े में नमूनों को बांध दिया जाता है और उस पर तन्य बल लगाया जाता है। तन्य बल लगाते समय इसे धीरे-धीरे बढ़ाते जाते हैं जब तक कि नमूना खींचकर टूट नही जाता है और जब नमूना खींचकर टूट जाता है तो तन्य बल तथा गेज की लंबाई की बढ़ोतरी को नोट कर लेते हैं और बाद में टूटे हुए दोनों टुकड़ों को जोड़कर लंबाई और जहां से फ्रैक्चर हुआ है उसको नोट कर लेते हैं और नीचे दिए गए सूत्र से तन्य सामर्थ्य को निकाल लेते है।

अधिकतम तन्य सामर्थ्य = अधिकतम बल/वास्तविक क्षेत्रफल



2. नम्यता परीक्षण (Bending Test)

इस परीक्षण को सबसे आसान और कम खर्चीला माना जाता है। इस वेल्डिंग परीक्षण की सबसे खास बात यह है कि बहुत कम समय में अधिक से अधिक दोषों को निकाला जा सकता है। इस परीक्षण के द्वारा वेल्ड की पैनीट्रेशन, जोड़ का सामर्थ्य, फ्यूजन की सत्यता और वेल्ड की तन्यता आदि गुणों में सुधार किया जा सकता है और टूटा हुआ जोड़, ब्लो होल्स, गैस पैकेट तथा स्लैग इन्क्लूजन आदि दोषों का जांच किया जाता है।


नम्यता परीक्षण के प्रकार (Type of Bending Test)

कार्यखण्ड के मोड़ने के आधार पर इस परीक्षण को दो प्रकार से बांटा गया है -

A. स्वतंत्रता परीक्षण (Free Bend Test)

B. निर्देशित परीक्षण (Guided Bend Test)


A. स्वतंत्रता परीक्षण (Free Bend Test)

बट वेल्डिंग किए गए कार्यखंड का एक नमूना लिया जाता है और इस नमूने की चौड़ाई कार्यखंड की मोटाई से डेढ़ गुनी रखी जाती है। इस नमूने को मशीन की सहायता से सतह को साफ कर दिया जाता है। अब फ्यूजन की स्पष्ट रेखा को देखने के लिए सतह पर ग्राइंडिंग और निरीक्षण की प्रक्रिया की जाती है। नमूने को सपोर्ट की सहायता से रख देते हैं और उसको फिक्चर लगा कर छोड़ देते हैं। अब नमूने को धीरे-धीरे मोड़ते हैं और तब तक मोड़ा जाता है जब तक कि उसमें दरार न पड़ जाए। इस कारण नमूना बढ़ जाता है और गेज की लंबाई भी बढ़ जाती है। इस लम्बाई को माप कर नीचे दिए गए सूत्र से बढ़ी हुई दूरी अर्थात तन्यता की प्रतिशतता ज्ञात कर लेते हैं।

धातु बढ़ी हुई प्रतिशतता = lf - lo × 100/lo


B. निर्देशित परीक्षण (Guided Bend Test)

कार्यखंड से प्राप्त नमूने को एक विशेष प्रकार के जिग और फिक्सचर के अंदर इसे U आकार करके मोड़ा जाता है। इस नमूने के परीक्षण में नमूने को पूर्णतः साफ और मशीनिंग किया हुआ होना चाहिए अन्यथा परिणाम उचित नहीं आते हैं। निर्देशित नमन परीक्षण के द्वारा उन दोषों को देखा जाता है जिन दोषों को स्वतंत्र नमन में नहीं देखा जा सकता है। इसमें नमूने से 15% तक अधिक बढ़ोतरी करनी होती है। इस विधि को सफल तभी माना जाता है जब नमूने को मोड़ने पर वह 3 mm से अधिक बढ़ जाए परंतु उस में दरार पैदा ना हो यदि दरार 3 mm तक बढ़ने से पहले पैदा हो जाती है तो यह जोड़ असफल माना जाता है।

इस परीक्षण में प्रयोग होने वाले नमूने को तीन स्थितियों में जांच किया जाता है जो निम्न हैं -

१. अनुप्रस्थ नमन परीक्षण (Transverse Bend Test)

२. अनुदैर्ध्य नमन परीक्षण (Longitudinal Bend Test)

३. पार्श्व नमन परीक्षण (Side Bend Test)


१. अनुप्रस्थ नमन परीक्षण (Transverse Bend Test)

स्वतंत्र नमन परीक्षण के समान ही इस परीक्षण में भी नमूना को बनाकर फार्मर में रखकर मोड़ा जाता है यह नमूने के दोनों तरफ से किया जाता है जिन्हें क्रमशः फेस परीक्षण और रूट परीक्षण कहते हैं।


२. अनुदैर्ध्य नमन परीक्षण (Longitudinal Bend Test)

इस परीक्षण को करते समय नमूने को मोड़ने कि अक्ष, वेल्डिंग के अक्ष के लंबवत रहती है। इस परीक्षण में वेल्ड मेटल और बेस मेटल के हीट जोन पर ही तनय बल लगाया जाता है और इसमें विशेष तौर पर दो अलग-अलग धातु की वेल्डिंग वाले जोड़ों का प्रयोग किया जाता है।


३. पार्श्व नमन परीक्षण (Side Bend Test)

इस परीक्षण में उन दोषों को भी निकालने का प्रयास किया जाता है जिनको अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य परीक्षणों में नहीं ज्ञात किया जा सकता है। इसमें कार्यखंड से प्राप्त नमूने को मोटी वाली सतह ऊपर कर दी जाती है और उस पर बल लगाकर नमूने को मोड़ा जाता है। इस नमूने की पूरी धातु पर नमन बल कार्य करता है जिसके कारण नमन परीक्षण में जब नमूना मुड़ता है तो उसमें दरारें पड़ जाती है।



3. आघात परीक्षण (Impact Test)

कभी-कभी कार्यखंड में बनाए गए वेल्डिंग जोड़ को अचानक झटके का सामना करना पड़ सकता है कभी-कभी तो वेल्डिंग टूट जाती है कभी-कभी यह झटके को सहन कर लेती है। अब हमें कैसे पता चलेगा कि कार्यखंड में बनाया गया वेल्डिंग जोड़ कितने भारी झटके को सहन कर सकता है कितने अधिक भार के झटके को नहीं सहन कर सकता है। इसी को जानने के लिए आधार परीक्षण (Impact Testing) किया जाता है। इस परीक्षण को करने के लिए सबसे पहले कार्यखंड से नमूने को लिया जाता है और नमूने पर आघात लगाने और आघात बल को मापने के लिए इंपैक्ट टेस्ट मशीन का प्रयोग किया जाता है।

आघात या इंपैक्ट परीक्षण दो प्रकार से किए जाते हैं -

A) चार्पी टेस्ट (Charpy Test)

इस परीक्षण को करने के लिए नमूने को दोनों तरफ से पकड़ लिया जाता है और पीछे से हथौड़े की सहायता से प्रहार करके तोड़ दिया जाता है।


B) आइजोड परीक्षण (Izod Test)

इस टेस्ट को करने के लिए नमूने को सिर के ऊपर से पकड़ा जाता है और नोच पर हथौड़े से प्रहार किया जाता है और इसे तोड़ दिया जाता है।



4. कठोरता परीक्षण (Hardness Test)

धातुओं की जब वेल्ड जोड़ बना दिया जाता है तो उनके धातुओं की कठोरता बदल जाती है कुछ धातुओ को गर्म करने पर उनके मेटल नरम हो जाते हैं तो कुछ धातु को गर्म करने पर उनके मेटल कठोर हो जाते हैं। इसके लिए आवश्यक हो जाता है कि कार्य खंड में वेल्डिंग करने के पश्चात जोड़ की कठोरता की जांच की जाए और उसमें उपस्थित दोषों इत्यादि को निकाल लिया जाए।

वेल्ड किए गए कार्यखंड में कठोरता परीक्षण की जांच निम्न में किसी भी एक विधि द्वारा किया जा सकता है -

A) ब्रिनेल कठोरता परीक्षण (Brinell Hardness Test)

B) राकवैल कठोरता परीक्षण (Rockwell Hardness Test)

C) विकर्स कठोरता परीक्षण (Vicker's Hardness Test)


A) ब्रिनेल कठोरता परीक्षण (Brinell Hardness Test)

इस परीक्षण को करने के लिए 10 mm व्यास वाली कठोर स्टील की गोली को बलपूर्वक दबाया जाता है इसमें हार्डनेस टेस्टिंग मशीन का प्रयोग किया जाता है। जब स्टील की गोली मेज पर दबा दिया जाता है और यह दब जाती है तो माइक्रोस्कोपिक माइक्रोमीटर के द्वारा गोली के जो निशान बने होते हैं उसके व्यास को माप लेते हैं और निम्न सूत्र से कठोरता का जांच कर लेते हैं।

ब्रिनेल सूत्र,

ब्रिनेल हार्ड नम्बर (BHN) = W/(π.D/2) - (√D^2 - d^2)


B) राकवैल कठोरता परीक्षण (Rockwell Hardness Test)

राकवैल कठोरता परीक्षण के द्वारा बहुत ही अधिक कठोर नमूनों की जांच की जाती है। इस परीक्षण को करने पर राकवैल हार्डनेस टेस्टिंग मशीन बहुत जल्दी और सीधे-सीधे रीडिंग दे देती है। इसमें इंडेंटर को छोटा और नुकीला बनाया जाता है और इंडेंटर के द्वारा जो निशान बनता है उसके व्यास को लेकर गणना करने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं होती है। इस विधि से परीक्षण करने पर नमूने की सतह को पालिश नहीं करना पड़ता है। राकवेल हार्डनेस टेस्टिंग मशीन भी ब्रिनेल टेस्टिंग मशीन के समान होती है।


C) विकर्स कठोरता परीक्षण (Vicker's Hardness Test)

इस परीक्षण में प्रयोग होने वाला इंडेंटर एक वर्गाकार पिरेमिड जैसा होता है जिसमें बने हुए कोण 136° के होते हैं। इस परीक्षण में भी Rockwell परीक्षण के समान ही इंडेंटर द्वारा सतह पर बनाए गए चकोर निशान के विकर्णो को माइक्रोस्कोपिक माइक्रोमीटर द्वारा मापा जाता है इसको मापने के लिए सूत्र निम्नलिखित है -

 VHN = 1.854 P /D^2



5. श्रांतिज परीक्षण (Fatigue Test)

जब वेल्ड किये गए कार्यखंड ऐसे स्थान पर लगी होती हैं जहां हमेशा push और pull बल लगाकर उनकी स्थितियों में हमेशा परिवर्तन किया जाता है तो इन कारीखण्डों के फेल होने की संभावना अधिक रहती है। ऐसी स्थिति में कार्यखण्ड के ऊपर लगने वाले अधिकतम बल और न्यूनतम बल का जांच करना आवश्यक हो जाता है। इसलिए इनका फटिग परीक्षण किया जाता है।

इस परीक्षण में नमूने को तैयार करके उसे विभिन्न प्रकार के बल लगाकर उसको घुमाते हैं उसको तब तक घुमाते हैं जब तक वह नमूना टूट नहीं जाता है। जितने चक्कर में नमूना टूट जाता है उनकी संख्या ज्ञात कर ली जाती है और इसी प्रकार से 4 से 5 नमूनों का टेस्ट किया जाता है। अरे इन टेस्ट किए गए नमूनों को का बल और चक्रों की संख्या के आधार पर ग्राफ खींच लेते हैं और इस ग्राफ को देखकर पता लगाया जाता है कि किसी विशेष बल पर यह कार्यखण्ड वस्तु कितने चक्रों के बाद फेल हो जाएगा।



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