भारतेन्दु पूर्व युग की समय सीमा, प्रमुख पत्रिकाएं व रचनायें

भारतेन्दु पूर्व युग -:

भारतेंदु युग के पहले के युग को भारतेंदु पूर्व युग कहा जाता है। इस युग में खड़ी बोली हिंदी का विकास बहुत ही ज्यादा हुआ।

शुद्ध खड़ी बोली के पुराने नमूने अमीर खुसरो और बंदा नवाज गेसूदराज की रचनाओं में आसानी से देखे जा सकते हैं। जिसमें उन्होंने शुद्ध खड़ी बोली के बहुत सारे शब्दों को प्रयोग करके खड़ी बोली हिंदी का विकास किया है।

भारतेन्दु पूर्व युग की समय सीमा, प्रमुख पत्रिकाएं व रचनायें

हिंदी के विकास क्रम में फोर्ट विलियम कॉलेज का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा है। फोर्ट विलियम कॉलेज के माध्यम से हिंदी अपनी चरम ऊंचाइयों तक पहुंचने में कामयाब रहा। फोर्ट विलियम कॉलेज के आचार्य जान गिलक्रिस्ट थे, जिन्होंने भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासकों को हिंदी सिखाने के लिए एक व्याकरण और एक शब्दकोश की भी रचना की।

जॉन क्राइस्ट की देखरेख में बहुत सारे पुस्तकों का अनुवाद हुआ और मौलिक रचनाएं भी हुई।

हिंदी के विकास क्रम में "राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद" ने विद्यालयों के लिए अनेक पाठ्य पुस्तकों की रचना करके हिंदी के विकास और प्रचार में विशेष योगदान दिया।

साथ ही साथ ईसाईयों व पादरियों ने अपने धर्म प्रचार के लिए हिंदी को माध्यम बनाया। हिंदी को माध्यम बनाने के कारण हिंदी के प्रचार प्रसार में बहुत ही महत्वपूर्ण सफलता मिली।

सन 1817 में कलकत्ता बुक सोसाइटी और 1833 में लगभग आगरा स्कूल बुक सोसाइटी की स्थापना हुई। इन बुक सोसायटी से विभिन्न प्रकार के विषयों वाली पुस्तकों का प्रकाशन हुआ जो हिंदी में लिखी गई थी।


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भारतेन्दु पूर्व युग की समय सीमा -:

भारतेन्दु पूर्व युग की अवधि 1000 ई. से अब तक (वर्तमान समय तक) माना जाता है। इस युग को तीन भागों में विभाजित किया गया है जो निम्न है -

1. आदि काल (1000 ई. - 1400 ई.)

2. मध्यकाल (1400 ई. - 1800 ई.)

3. आधुनिक काल (1800 ई. - अब तक)

आज का समय आधुनिक काल ही है, जिसका प्रारंभ 1800 से माना जाता है परंतु कुछ लोग इसका प्रारम्भ 1850 से मानते हैं।


भारतेन्दु पूर्व युग की प्रमुख पत्रिकाएं -:

हिंदी के विकास में पत्र और पत्रिकाओं का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारतेंदु पूर्व काल में हिंदी का सबसे पहला समाचार पत्र उदंत मार्तंड 1826 ई. में कोलकाता से प्रकाशित किया गया और 1828 ई. में कोलकाता से बंगदूत पत्रिका का प्रकाशन भी आरंभ हुआ, परंतु 1 साल के बाद 1829 ई. में सरकार ने बंगदूत पत्रिका को बंद करवा दिया।

सन 1844 में बनारस अखबार का प्रकाशन आरंभ किया गया। इसके संपादक राजा शिवप्रसाद "सितारे हिंद" थे। बनारस अखबार की भाषा हिंदुस्तानी थी परंतु इसमें बहुत सारी उर्दू शैलियां थी, जिसके कारण बनारस पत्रिका का विरोध किया गया और इसी के विरोध में सुधाकर नाम पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया गया।

इस प्रकार हिंदी का विकास होता रहा और कई पत्रिकाएं आती रही। सन 1854 में सामाचार सुधावर्षण नामक दैनिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ, जो प्रतिदिन लोगों तक पहुंचाया जाता था।

पंजाब में भी नवीनचंद्र राय ने ज्ञान प्रकाशिनी नामक पत्रिका को प्रदर्शित किया।

राजा लक्ष्मण सिंह ने 1861 ई. में आगरा से प्रजाहितैषी नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया। इन्होंने इस समाचार पत्र में संस्कृत गर्भित शुद्ध हिंदी का प्रयोग करते हुए हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार किया।


भारतेन्दु पूर्व युग की प्रमुख रचनाएं -:

हिंदी के विकास में भारतेंदु पूर्व युग में जो रचनाएं हुई उनका भी बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा। कुछ प्रमुख रचनाओं के नाम नीचे दिए गए हैं जिनके फलस्वरूप हिंदी भाषा खूब फली-फूली।

• भारतेंदु पूर्व युग में इंशा अल्ला खान ने रानी केतकी की कहानी को ठेठ की बोलचाल की भाषा में लिखा है।

• लल्लू लाल की 14 रचनाएं भी खड़ी बोली हिंदी के विकास में प्रमुख स्थान बनाए हुए हैं। लल्लू लाल की प्रेमसागर उनकी सबसे प्रसिद्ध है रखना है।

• सदल मिश्र ने नासिकेतोपाख्यान की 1803 में की। अध्यात्मरामायण व रामचरित्र जैसी रचनाओं का श्रेय भी सदल मिश्र में कोई जाता है।

• हिंदी के विकास क्रम में सदा सुख लाल ने सुखसागर नामक प्रसिद्ध रचना की है।

• राजा लक्ष्मण सिंह ने शकुंतला नाटक का अनुवाद संस्कृत से खड़ी बोली में किया है। जिसके कारण यह भी हिंदी के विकास क्रम में एक महत्वपूर्ण भूमिका सिद्ध होती है।

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