छायावाद युग का आरम्भ, जनक, प्रमुख कवि/लेखक और विशेषताएं

छायावाद युग आरम्भ -:

इससे युग को 1918 से 1936 तक माना जाता है। छायावाद युग का आरंभ 1918 से माना जाता है और इसका अंत 1936 को माना जाता है। छायावाद युग को हिंदी साहित्य में भक्ति काव्य के बाद प्रमुख स्थान दिया जाता है।


छायावाद के जनक -:

छायावाद के जनक का श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को जाता है। छायावादी काव्य में प्रसाद जी ने यदि प्रकृति को मिलाया, निराला ने मुक्तक छंद दिया, पंत जी ने शब्दों को सरल बनाया, तो महादेवी जी ने भी इसमें प्राण डालने का कार्य किया है।

जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, पंडित माखन लाल चतुर्वेदी इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं।


छायावाद के जनक मुकुटधर पाण्डेय


छायावाद युग के प्रमुख कवियों के नाम -:

छायावाद युग में माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन" सुभद्रा कुमारी चौहान, रामधारी सिंह दिनकर, सोहनलाल द्विवेदी, सियारामशरण गुप्त, श्याम नारायण पांडे, गुरु भगत सिंह इत्यादि इस काल प्रमुख कवि थे। इन सभी ने अन्य काव्य प्रवृत्तियों में साहित्य सृजन करके हिंदी को समृद्ध बनाने का कार्य किया।


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छायावाद युग की विशेषताएं -:

इस युग की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित को क्रमबद्ध तरीके से बताया गया है -

1. छायावाद युग में प्राकृतिक चित्रण से प्रेम को बहुत ही सरलता व गम्भीर रूप से दर्शाया गया है।

2. छायावादी कवियों ने नारी सौंदर्य के प्रति विशेष आकर्षण दिखाया है।

3. इस युग में प्रेम चित्रण को भी साफ साफ दिखाया जाता है।

4. इस युग में सभी काव्य रचनाएं छंद के उल्लेख के लिए प्रसिद्ध है।

5. छायावादी कवियों में अक्सर यह देखा जाता है कि वह हिंदी के प्राचीन अलंकार के साथ-साथ अंग्रेजी के दो अलंकारों मानवीकरण और विशेषण का प्रयोग अधिक किया है।

6. इस युग में रचित सभी कविता व्यक्तिवाद की प्रधानता को दर्शाते हैं।

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