उच्च तापसह पदार्थ (Refractory Material in Hindi) -:
धातु को गलाने वाले भट्टियों में पहले धातु को क्रुसिबल जे पिघलाया जाता है। कुछ धातुएं तो कम ताप पर पिघल जाती हैं परंतु कुछ धातु ऐसी होती हैं जिनको पिघलाने के लिए ऊंचे तापमान की जरूरत होती है। ऊंचे तापमान पर पिघलने वाली धातुओं को पिघलाने के लिए भट्टियों का तापमान लगभग 1600℃ कर दिया जाता है। भट्टियों में उच्च ताप सह पदार्थ की परत लगाई जाती है ताकि अधिक तापमान पर वह फ्यूज ना हो जाए। अगर यह फ्यूज हो जाती है तो पिघलने वाली धातु कास्टिंग के लिए तैयार नही हो पाती है।
उच्च तापसह पदार्थ के गुण (Properties of Refractory Material in Hindi) -:
१) धातु के पिघलने वाले तापमान पर, भट्टी पर लगाए पदार्थों को फ्यूज नहीं होना चाहिए।
२) इन रिफ्रैक्ट्री मटेरियल में उष्मीय झटके सहन करने का सामर्थ्य होना चाहिए।
३) इस पदार्थ की थर्मल कंडक्टिविटी कम होनी चाहिए जिसके कारण भट्टी अधिक देर तक गर्म रह सके।
४) इस पदार्थ के अंदर गैसों की पारगम्यता कम होनी चाहिए जिसके कारण फ्लू गैसे साइड से बाहर न निकल सके।
५) उच्च ताप शाह पदार्थों के अंदर ऊंचे विद्युत प्रतिरोध होना चाहिए क्योंकि इन पदार्थों का उपयोग विद्युत भट्टियों में भी किया जा सकता है।
उच्च तापसह पदार्थ के प्रकार (Type of Refractory Material in Hindi) -:
इन पदार्थों को उनके रासायनिक गुणों के आधार पर निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है -
(1) अम्लीय ताप सह पदार्थ (Acidic Refractories)
(2) क्षारीय ताप सह पदार्थ (Basic Refractories)
(3) उदासीन ताप सह पदार्थ (Neutral Refractories)
(1) अम्लीय ताप सह पदार्थ (Acidic Refractories) -:
वे पदार्थ जिन पर अम्लीय धातु मैल का कोई भी रासायनिक प्रभाव नहीं पड़ता है उसे अम्लीय ताप सह पदार्थ कहते हैं। इन पदार्थों के प्रयोग से भट्टियों में स्तर की परत लगाया जाता है। अम्लीय ताप सह पदार्थ का उपयोग ऐसी भट्टियों में किया जाता है जहां पर पिघली धातु से अम्लीय मैल निकलता है। इन पदार्थों का उपयोग दो तरह से किया जाता है या तो इनको चूर्ण बनाकर प्रयोग में लाया जाता है या फिर इन पदार्थों का ईट निर्माण करके भट्टियों में लगाया जाता है।
अम्लीय ताप सह पदार्थ के नाम -
A) सिलिका
B) फायर क्ले या एलुमिनियम सिलिका
C) एलुमिना
A और B का वर्णन किया गया है -
A) सिलिका -
यहां ऐसी बालू होती है जिसमें 90% से 100% तक सिलका मिली रहती है। इस रेत को क्वॉर्टजाइट शिलाओं को पीसकर बनाया जाता है। सिलिका में बाइंडर के रूप में 2% चूना का प्रयोग किया जाता है। सिलिका को उच्च ताप व दाब को सहन करने की क्षमता के लिए जाना जाता है और इसका फ्यूजन तापमान 1700℃ होता है। सिलिका में एलुमिना की मात्रा कम रखी जाती है। सिलिका रेत का प्रयोग स्टील और ग्लास बनाने वाली फैक्ट्रियों में फरनेस की आंच वाली छते और फर्श को तैयार करने के लिए किया जाता है।
B) एलुमिनियम सिलिका -
इस अम्लीय ताप सह पदार्थ का प्रयोग भट्टी की दीवारों की आयु बढ़ाने और उनकी दीवारों को सही रूप में आकार देने के लिए किया जाता है। इन पदार्थों को पानी में मिलाकर भट्टी की दीवारों पर एक पर चढ़ा दी जाती है। इस पदार्थ का तापमान 1800℃ माना जाता है।
(2) क्षारीय ताप सह पदार्थ (Basic Refractories) -:
वे पदार्थ जिन पर क्षारीय धातु मैल का कोई भी रासायनिक प्रभाव नहीं पड़ता है उसे क्षारीय ताप सह पदार्थ कहते हैं। इन पदार्थों के प्रयोग से भट्टियों में स्तर की परत लगाया जाता है। क्षारीय ताप सह पदार्थ का उपयोग ऐसी भट्टियों में किया जाता है जहां पर पिघली धातु से क्षारीय मैल निकलता है। इन पदार्थों का उपयोग दो तरह से किया जाता है या तो इनको चूर्ण बनाकर प्रयोग में लाया जाता है या फिर इन पदार्थों का ईट निर्माण करके भट्टियों में लगाया जाता है।
कुछ क्षारीय ताप सह पदार्थो के नाम निम्न हैं -
A) मैग्नेसाइट
B) क्रोम-मैग्नेसाइट
C) डोलो-माइट
A) मैग्नेसाइट -
प्राकृतिक में उपलब्ध मैग्नेटाइट की सीमाओं को जब 1500℃ तक गर्म किया जाता है तो हमें मैग्नेटाइट प्राप्त होता है इसका फ्यूजन तापमान 2800℃ होता है।
B) क्रोम-मैग्नेसाइट -
यह ऐसा ताप सा पदार्थ है जिसमें ताप सहने की क्षमता मैग्नेसाइट से भी अधिक होती है। यह ताप सह पदार्थ छारीय ताप सा पदार्थ के अंतर्गत आता है। क्रोम मैग्नेटाइट में लगभग 70% मैग्नेटाइट और 30% क्रोमाइट का मिश्रण होता है। यह पदार्थ काफी महंगा होता है इसलिए इसका उपयोग कम किया जाता है क्रोम मैग्नेटाइट की ईटें ओपन अर्थ भट्टीयों में आर्च को बनाने के लिए लाया जाता है।
C) डोलो-माइट -
डोलोमाइट को बनाने के लिए डोलोमाइट की शीला को 1600℃ पर ऑक्सीकरण किया जाता है जिसके बाद कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के ऑक्साइड बनते हैं। इनमें कैल्शियम ऑक्साइड 52% तथा मैग्नीशियम ऑक्साइड 58% होता है।
डोलोमाइट पदार्थ के अंदर 1800℃ से 1950℃ तक ताप को सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। डोलोमाइट से बनने वाली ईंट सस्ती होती हैं। इन ईंटों का प्रयोग मैग्नेसाइट के समान ही भट्टीयों का निर्माण करने के लिए और स्तर लगाने के लिए किया जाता है।
(3) उदासीन तापसह पदार्थ (Neutral Refractories) -:
ऐसे ही उच्च ताप सह पदार्थ जो अम्लीय तथा क्षारीय दोनों प्रकार के धातुमलों से कोई अभिक्रिया नहीं करते हैं उन्हें उदासीन ताप सह पदार्थ कहते हैं।
कुछ उदासीन तापसह पदार्थों के नाम नीचे दिए गए हैं -
A) कार्बन तथा ग्रेफाइट की ईंटें
B) क्रोमाइट की ईंटें
C) सीलिमनाइट की ईंटें
A) कार्बन तथा ग्रेफाइट की ईंटें -
कार्बन तथा ग्रेफाइट की ईंट में उच्च तापमान पर भी अपनी सामर्थ्य बनाए रखने की क्षमता अधिक होती है और यह थर्मल सॉक्स को भी सहन करने की क्षमता रखते हैं। कार्बन तथा ग्रेफाइट के ईंट में तापीय प्रसार गुणांक तथा कंडक्टिविटी कम होती है।
B) क्रोमाइट की ईंटें -
क्रोमाइट की ईटों को फेरस ऑक्साइड तथा क्रोमियम ऑक्साइड के मिश्रण से बनाया जाता है। इन ईटों में आयरन ऑक्साइड 32% और क्रोमियम ऑक्साइड 68% होता है। क्रोमाइट ईटों को प्राकृतिक में स्वतंत्र रूप से क्रोमाइट अयस्क के रूप में पाया जाता है। इन ईटों का फ्यूजन तापमान 2100℃ होता है।
C) सीलिमनाइट की ईंटें -
सिलीमनाइट की ईटों का निर्माण एलुमिना और सिलिका से होता है। जिसमें एलुमिना 63% और सिलिका 37% होता है। यह ईटे ऊंचे तापमान पर भी अच्छा सामर्थ्य बनाए रखती हैं।
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