पूना पैक्ट समझौता पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में हुआ जो भारत में दलितों को दो वोट देने के अधिकार के सम्बन्धित था।
24 सितंबर 1932 को पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में डॉ भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच दलितो व अन्य 11 समुदायों के पृथक निर्वाचक मंडलीय व्यवस्था को लेकर एक समझौता हुआ। इस समझौते के फलस्वरुप संयुक्त निर्वाचन व्यवस्था के अंतर्गत दलितों के लिए स्थान आरक्षित रखने पर सहमति बनाई गई, जिसे पूना पैक्ट या पुणे समझौता कहते हैं। इस समझौते के बाद अंग्रेजी सरकार ने सांप्रदायिक अधिनिर्णय (कॉम्युनल एवार्ड) में संशोधन करने की अनुमति प्रदान कर दी।
Poona Pact 1932 |
क्या है पुणे में हुए पूना पैक्ट समझौते का पूरा मामला (Poona Pact in Hindi) -:
बात उस समय की है जब भारत गुलाम था, भारत में अंग्रेजों का शासन था और भारतीय लोग अंग्रेजों से आजादी चाहते थे। अंग्रेज भी भारत में हो रहे आंदोलन, क्रांतिकारियों को देखकर भारत छोड़ने पर विचार विमर्श करने लगे थे। भारत में बढ़ते नमक आंदोलन और होने वाली क्रांति से जब अंग्रेजों को एहसास हुआ कि भारत मे उनका राज अधिक दिनों तक नहीं चलने वाला है तो इस बात को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में 1930 से 1932 के मध्य तीन गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन शुरू किया।
जब 1931 के आखिर में लंदन में दूसरा गोलमेज सम्मेलन में आयोजित हुआ तो डॉ भीमराव अंबेडकर ने एक प्रस्ताव रखा जिसके तहत भारत में दलितों को दो वोट देने का अधिकार होगा।
इन दो वोटों में से दलित एक वोट से अपना अलग से कोई दलित नेता चुनते और दूसरे वोट से किसी सामान्य वर्ग के नेता को चुनते। इस प्रकार में भारत में दो नेता होते जिसमें एक नेता सभी देशवासियों या सामान्य वर्ग के लिए होता और दूसरा नेता केवल दलितों के लिए होता।
बात यह थी कि जब सामान्य वर्ग का नेता चुना जाता तो दलित अपने मन मुताबिक उनके पक्ष में रहने वाले सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि को वोट दे सकते थे परंतु जब बात दलित नेता चुनने की आती तो केवल दलित ही वोट दे सकते थे और अपना नेता चुन सकते थे। दलित वर्ग का नेता चुनने में कोई भी सामान्य वर्ग का व्यक्ति उनके इस चुनाव में भाग नही ले सकता था।
इसका परिणाम यह निकलने वाला था कि दलित वर्ग का नेता केवल दलितों का सपोर्ट करता और सामान्य वर्ग का नेता सभी लोगों का सपोर्ट करता, अतः सामान्य वर्ग का नेता दलितों का वोट पाने के लिए सामान्य वर्ग से भी छल कर सकता था।
डॉ भीमराव अंबेडकर की प्रस्ताव को अंग्रेजी सरकार की मंजूरी -
1931 के आखिरी महीने मे लंदन में आयोजित हुए इस दूसरे गोलमेज सम्मेलन में डॉ भीमराव के द्वारा प्रस्तावित दलितो के पृथक निर्वाचक मंडलीय व्यवस्था वाले प्रस्ताव को अंग्रेजी सरकार द्वारा मान लिया गया। इसके बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्मजे मैक्डोनल्ड ने 16 अगस्त 1932 को साम्र्पदायिक पंचाट की घोषणा की जिसमें दलितो के साथ साथ 11 समुदायों को भी पृथक निर्वाचक मंडल प्रदान किया गया था। 11 समुदायों के पृथक निर्वाचक मंडल आ जाने से बात और बिगड़ गई जिसके अन्तर्गत सिख भी दो वोट दे सकता था मुसलमान भी दो वोट दे सकता था और अन्य 9 समुदाय भी लोग 2 वोट दे सकते थे। इस प्रकार पृथक निर्वाचन मंडल में आने वाले सभी 12 समुदाय अपना एक अलग से नेता का चुनाव करते और एक सामान्य वर्ग के नेता का भी चुनाव कर सकते थे।
इस प्रकार अंग्रेजी सरकार ने भारत में सभी जातियों और धर्म के बीच जहर घोलने का कार्य किया। इस प्रकार की सांप्रदायिक अधिनिर्णय व्यवस्था हो जाने के बाद पूरा भारतीय समाज अलग-अलग बिखर जाता और अंग्रेज अपनी स्थिति प्रकार रख सकते थे परंतु गांधी जी जैसे महान नेताओं ने अंग्रेजों की चाल को समझ लिया।
दलितों पृथक निर्वाचक मंडल का महात्मा गांधी जी का विरोध -
दलितों के लिए अलग से की गई इस पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था का गांधीजी विरोध करने लगे। क्योंकि गांधी जी जानते थे कि अगर इस सांप्रदायिक अधिनिर्णय में कुछ संशोधन नही हुआ तो हिंदू समाज बुरी तरह से बिखर जाएगा और दलितों से भी नीचे चला जाएगा।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए गांधी जी ने सरकार से कहा कि अगर इस सांप्रदायिक अधिनिर्णय में संशोधन नहीं हुआ तो वह 20 सितंबर 1932 को आमरण अनशन प्रारंभ कर देंगे परंतु सरकार ने उनकी इस बात पर ध्यान नहीं दिया। सरकार की इस अनदेखी की वजह से गांधी जी बहुत दुखी हुए और उन्होंने अतः 20 सितंबर 1932 को आमरण अनशन आरंभ कर दिया।
गांधी जी के इस अनशन से पूरे देश के क्रांतिकारी और नेता पर कई तरह का दबाब बनने लगा। सभी लोगो के अपने अलग-अलग विचार थे। दलितों के लिए की गई इस पृथक निर्वाचक मंडलीय व्यवस्था के कई दल विरोध में थे तो कई दल इसके समर्थन में थे।
इस प्रकार कई विशेष दलों और नेताओं की चिंता बढ़ने लगी इसको ध्यान में रखते हुए कई महत्वपूर्ण नेताओं ने आपस में बैठक की और डॉ राजेंद्र प्रसाद व मदन मोहन मालवीय के अथक प्रयासों से 24 सितंबर 1932 को पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में गांधी जी और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के बीच बातचीत की गई और दलितों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था पर समझौता हुआ। जिसमें संयुक्त निर्वाचन व्यवस्था (जैसा आज है) के अंतर्गत दलितों के लिए स्थान आरक्षित रखने पर सहमति बनी जिसे पूना पैक्ट या पुणे समझौता के नाम से जाना जाता है।
पुणे समझौते में गांधी जी ने स्वयं अपने हस्ताक्षर नही किये बल्कि उनके तरफ से पंडित मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर किए और दलितों के पक्ष से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने हस्ताक्षर किये।
ऐसा माना जाता है कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर इस समझौते से खुश नहीं थे। उन्हें ऐसा लगता था कि अगर यह समझौता हुआ है तो इससे दलितों में कोई सुधार नहीं होगा, वंही महात्मा गांधी जी को लगता था की सुधार होते-होते एक दिन ऐसा आएगा कि दोनों बराबर हो जाएंगे और बराबर होने के बाद दलित के हाथ में शक्ति अधिक होने के कारण हुए इसका दुरुपयोग करना प्रारंभ कर देंगे। इसलिए गांधी जी ने ऐसे समझौते हैं करवाए ताकि एक समय ऐसा आए कि दोनों पक्ष बराबर हो जाए और बाद में कोई भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग ना कर सके।
सन 1942 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने पुणे पैक्ट समझौते का धिक्कार किया और गांधी जी को दलितों के राजनीतिक अधिकारों से वंचित करने का आरोप लगाया। भीमराव अंबेडकर ने "स्टेट ऑफ मायनॉरिटी" पुस्तक में अपनी नाराजगी व्यक्ति है।
डॉ भीमराव अंबेडकर दलित को बुलेट ट्रेन की तरह आगे बढ़ना चाहते थे। वह छुआछूत इत्यादि प्रथाओं को जल्दी-जल्दी मिटाना चाहते थे जिसका परिणाम बाद में आता कि हिंदू धर्म विलुप्त की ओर चलने लगता। परंतु गांधी जी की दूरदर्शी सोच होने के कारण, गांधी जी ने दलितों के दो वोट डालने की नीति पर आमरण अनशन कर दिया और भारत में सभी धर्मों के अस्तित्व को पुनर्जीवित कर दिया।
पूना पैक्ट की शर्तें व परिणाम (Poona Pact Conditions in Hindi) -:
24 सितंबर 1932 को पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में डॉ भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच हुए पुणे समझौते में डॉ भीमराव अंबेडकर ने निम्न शर्तों को रखा -:
1) दलितों के लिए कुछ सीटे पहले से आरक्षित होंगी। उन सीटों पर केवल दलित ही चुनाव लड़ सकता है।
2) डॉ भीमराव अंबेडकर ने कम्युनल अवार्ड से मिली 71 आरक्षित सीटों की बजाय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 148 करवा ली।
3) पूना पैक्ट की शर्तों में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने दलितों के लिए प्रत्येक प्रांत में शिक्षा अनुदान में पर्याप्त राशि नियत करवाईं।
4) पूना पैक्ट में यह समझौता हुआ कि दलित वर्ग के लोगों के लिए बिना किसी भेदभाव की सरकारी नौकरियों में सीट आरक्षित होनी चाहिए।
5) ब्रिटिश भारत के अंतर्गत में सामान्य निर्वाचक वर्ग के लिए निर्धारित की गई कुल सीटों का 18 प्रतिशत हिस्सा दलित वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित होगा।
6) पूना पैक्ट में यह निर्धारित किया गया कि किसी भी स्थानीय निकाय के चुनाव में या किसी भी चुनाव में या किसी भी लोक सेवा सरकारी कार्यों में दलितों को वंचित नहीं किया जाएगा
7) पूना पैक्ट समझौते में केन्द्रीय और प्रांतीय विधानमंडल दोनों में उम्मीदवारों के पैनल के चुनाव की व्यवस्था 10 साल में खत्म होने के बारे में भी कहा गया