आलेखन कला के महत्वपूर्ण भाग/अंग । Important Parts of the Art of Drafting in Hindi

आलेखन के महत्त्वपूर्ण अंग निम्नलिखित हैं -

1. लयात्मकता

2. संतुलन

3. प्रभाविता

4. रंग योजना

आलेखन कला के महत्वपूर्ण भाग/अंग । Important Parts of the Art of Drafting in Hindi


1. लयात्मकता -:

जब आलेखन कला में आलेखन का निर्माण किया जाता है तो उसमें आलेखन रेखाओं की लयात्मकता, प्रवाह और गतिशीलता बहुत ही आवश्यक होती है। क्योंकि रेखाओं के कारण आलेखन सुंदर, आकर्षक और बहुत ही अच्छी दिखती है। अगर आलेखन की रेखाएं लयात्मकता, गतिशीलता और प्रवाहिता का गुण नहीं रखेंगी तो आलेखन भद्दा दिखने लगेगा इसलिए जरूरी है कि आलेखन में जो रेखाएं हैं, वह लयात्मक, प्रवाह और गतिशील हो।


2. संतुलन (Balance) -:

संतुलन किसी भी आलेखन का स्थाई गुण होता है। इसी कारण आलेखन में संतुलन रहना बहुत ही आवश्यक होता है और इसका महत्व बहुत है। जब आलेखन के रूप और आकार को संतुलित करके बनाया जाता है तो यह बहुत ही प्रभावशाली बन जाता है। आलेखन को बनाते समय उसके रूप और आकार को इतना संस्कृत बनाना चाहिए कि कहीं भी और संतुलन का प्रभाव 9 दिखाई पड़े।


सामान्यतः संतुलन को कार्य के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है -

१. व्यवस्थित संतुलन (Formal Balance)

२. अव्यवस्थित संतुलन (Informal Balance)


१. व्यवस्थित संतुलन (Formal Balance) -:

ऐसा आलेखन जिसमें दोनों और समान आकृति बनाकर संतुलन को स्थिर किया जाता है उसे व्यवस्थित संतुलन (Formal Balance) कहते हैं। इस संतुलन में दोनों और सामान आकार की आकृति को बना दिया जाता है जिसके कारण आलेखन में संतुलन बना रहता है।


. अव्यवस्थित संतुलन (Informal Balance) -:

ऐसा आलेखन जिसमें दोनों और समान आकृति न बनाकर, दोनो ओर भिन्न-भिन्न आकृतियां बनाई जाती है और उन दोनों आकृतियो की सहायता से आलेखन को इस प्रकार सजाया जाए कि आलेखन का संतुलन बना रहे उसे अव्यवस्थित संतुलन (Informal Balance) कहते हैं। इस प्रकार अव्यवस्थित संतुलन में दोनों तरफ भिन्न-भिन्न आकृतियां बनाई जाती हैं। दोनों तरफ विभिन्न आकृतियों के होने के कारण भी आलेखन को अच्छी तरह से सजा दिया जाता है और उनका संतुलन बना हुआ रहता है।


3. प्रभाविता (Dominance) -:

आलेखन को प्रभावशाली बनाने के लिए आकारों को प्रभावशाली बनाया जाता है। इसके आकार न तो अधिक बड़े होने चाहिए और न ही अधिक छोटे होने चाहिए। इनके आकारों में भिन्नता अवश्य होनी चाहिए। क्योंकि जब एक ही आकार और एक ही प्रकार के आलेखन बनाए जाते हैं तो वह अधिक प्रभावशाली नहीं बन पाते हैं और वे निर्जीव दिखाई देते हैं। आलेखन अधिक प्रभावशाली दिखे इसके लिए इनके आकारों में भिन्नता और आलंकारिक रूपों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

आलेखन में उचित रंगों का प्रयोग भी उसको सुंदर और प्रभावशाली बना देता है।


4. रंग-योजना (Colour Scheme) -:

बनने वाले आलेखन उद्देश्य पूर्ण होते हैं। उनका निर्माण किसी विशेष प्रयोजन या उपयोग के लिए किया जा सकता है। अतः आलेखन के उपयोग और उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही रंग योजना का चयन करना चाहिए, जिससे यह अपने उद्देश्य और उपयोग को पूर्ण कर सकें।

रंग योजना के आधार पर इन्हें चार भागों में बांटा गया है-

१. विरोधी रंग-योजना (Contrast Colour-scheme)

२. सामंजस्यपूर्ण रंग-योजना (Harmonious Colour-scheme)

३. सामंजस्यपूर्ण विरोधी रंग-योजना (Harmonious Contrast Colour-scheme)

४. एक रंग-योजना (Monochrome Colour-scheme)


१. विरोधी रंग-योजना (Contrast Colour-scheme) -:

जब किसी आलेखन में रंगों को भरने के लिए विरोधी रंगों का प्रयोग किया जाता है तो वह आलेखन विरोधी रंग की संगति कहलाता है।

ओस्टवाल्ड की आठ प्रमुख रंगों के चक्र के आमने सामने जो रंग होते हैं वे एक दूसरे के विरोधी होते हैं। जैसे - लाल का विरोधी हरा, नारंगी का विरोधी आसमानी, पीले का विरोधी नीला और धानी का विरोधी बैंगनी होता है। आलेखन में इसका प्रयोग करने से आलेखन भड़कीले और चमकदार दिखाई देते हैं।


२. सामंजस्यपूर्ण रंग-योजना (Harmonious Colour-scheme) -:

ओस्टवाल्ड रंगों के चक्र के आस-पास जितने भी रंग होते हैं वे आपस में सामंजस्यपूर्ण रंग योजना का निर्माण करते हैं।

उदाहरण -

(१) पीला, नारंगी, लाल 

(२) नारंगी, लाल और बैंगनी

(३) लाल, बैंगनी और नीला

(४) बैंगनी, नीला और आसमानी

(५) नीला, आसमानी और हरा

(६) आसमानी, गहरा हरा और धानी

(७) गहरा हरा, धानी और पीला

(८) धानी, पीला और नारंगी।


३. सामंजस्यपूर्ण विरोधी रंग-योजना (Harmonious Contrast Colour-scheme) -:

जब सामंजस्यपूर्ण रंग-योजना और विरोधी रंग-योजना का मिश्रण इस प्रकार किया जाता है कि सामंजस्य के लिए दो या तीन रंगों के साथ-साथ उसके विरोधी रंगों का भी प्रयोग किया जाता है तो इस प्रकार के रंग-योजना को सामंजस्यपूर्ण विरोधी रंग-योजना कहते हैं।

उदाहरण -सामंजस्यपूर्ण रंग लाल, नारंगी व पीले के साथ इनके विरोधी रंग क्रमश: हरा, आसमानी व नीले रंगों का प्रयोग करना।


४. एक रंग-योजना (Monochrome Colour-scheme) -:

जब किसी एक विशेष रंग में सफेद और काले रंग को विभिन्न मात्रा में एक साथ मिलाकर विभिन्न प्रकार के रंग बनाए जाते हैं तो यह रंगों की आपसी मिलन एक रंग-योजना कहलाती है। एक रंग योजना के अंतर्गत किसी एक व्यक्तिगत रंग को चुन लिया जाता है और उसमें सफेद रंग के विभिन्न मात्रा को मिलाकर कई रंग बनाए जाते हैं और फिर काले रंग के विभिन्न मात्रा को मिलाकर कई रंग बनाए जाते हैं इस प्रकार रंगो भिन्न भिन्न रंगों के साथ एक ही रंग मिलाकर बनाने की प्रक्रिया को एक रंग-योजना कहा जाता है।

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