हिंदी भाषा का उत्पत्ति/प्रकट होना । Hindi Bhasha Ki Utpatti

हिंदी भाषा का उत्पत्ति/प्रकट होना । Hindi Bhasha Ki Utpatti

● 1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक प्राचीन भारतीय आर्यभाषा का काल माना गया है आर्य भाषा के काल के समय संस्कृत भाषा की बोलचाल थी।

● संस्कृत भाषा के दो रूप/प्रकार माने गए हैं। इसमें पहला वैदिक संस्कृत और दूसरा लौकिक संस्कृत है।

● संस्कृत काल की बोलचाल भाषा धीरे-धीरे पालि भाषा के रूप में विकसित होने लगी।

● पालि भाषा की अवधि 500 ईसा पूर्व से 1 ईसा पूर्व तक है। पालि का मानक रूप बौद्ध साहित्य में विस्तार से उपलब्ध है।


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● 1 ईसा पूर्व तक आते आते, पालि बोलचाल की भाषा बन गई थी जो प्राकृत के रूप में आयी।

● पालि भाषा के विकास के साथ-साथ, इसी समय शौरसेनी, पैशाची, ब्रांचड़, महाराष्ट्री मागधी और अर्धमागधी नामक क्षेत्रीय भाषा का भी विकास हुआ।

● समय बीतने के साथ-साथ प्राकृत की विभिन्न बोलियां भी विकसित होती गई, जिसे अपभ्रंश की बोलियां के रूप में प्रस्तुत किया गया। इन सभी अपभ्रंश की बोलियों का समय 500 ई. से 1000 ई. तक माना जाता है।

● अपभ्रंश और पुरानी हिंदी के मध्य के समय को संक्रांति काल कहते हैं।

● चंद्रधर शर्मा गुलेरी के द्वारा राजा मुंज को पुरानी हिंदी का प्रथम कवि माना गया है।

● अपभ्रंश के अंतर्गत 6 भाषाएं आती हैं। जिन्हें अपभ्रंश का प्रकार भी माना जाता है। अपभ्रंश के अंतर्गत आने वाली भाषाएं शौरसेनी, पैशाची, ब्रांचड़, महाराष्ट्री, मागधी और अर्धमागधी है।

● अपभ्रंश को चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने पुरानी हिंदी कहा है, वही रामचंद्र शुक्ल ने अपभ्रंश को प्राकृताभास कहा है।

● दोहा, जिसे दूहा भी कहते हैं। यह मूलतः अपभ्रंश भाषा का ही छंद है।

● अपभ्रंश की उत्तरकालीन अवस्था को अवहट्ठ के नाम से जाना जाता है। अवहट्ठ में विद्यापति ने कीर्तिलता और कीर्तिपताका जैसी रचनाएं की हैं।

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