लौह धातु (Ferrous Metal) किसे कहते हैं? वर्गीकरण

लौह धातु (Ferrous Metal in Hindi) - वर्गीकरण

लौह धातु (Ferrous Metal in Hindi) -:

ऐसी धातुएं  जिनका बेस मेटल लोहा होता है उन्हें लौह धातुएँ कहते हैं। लौह धातु की श्रेणी में सभी प्रकार के लोहे और स्टील आ जाते हैं। सभी लौह धातु में लोहे की उपस्थिति अनिवार्य होती है। वह प्रत्येक धातु जिसमें लोहा होता है उसे लौह धातु कहते हैं। आजकल प्रत्येक क्षेत्र में लोहे के धातु का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। लोहा एक ऐसी धातु है जिसको आवर्त सारणी में आठवें समूह में और पहले पायदान पर रखा गया है। इसको Fe संकेत से दर्शाया जाता है तथा इसका परमाणु क्रमांक आवर्त सारणी में 26 है। लोहा एक ऐसा धातु है जो पृथ्वी के गर्भ में चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला धातु या मेटल है।

भारत में लोहा का उपयोग बहुत ही पुराने समय से होता आ रहा है। इसके कई जगह प्रमाण भी मिल चुके हैं। स्टील का उपयोग भी भारत में बहुत ही प्राचीन समय से होता रहा है। भारत के लोग 300 से 400 ईसापूर्व हो लोहे का प्रयोग करते थे। भारत में स्टील के हथियार भी बनाए जाते थे, जो दूसरे देशों को भेजा जाता था। उस समय भारत में बने हुए स्टील के हथियार बहुत ही प्रसिद्ध थे।


लौह धातुओं का वर्गीकरण (Classification of Ferrous Metals in Hindi) -:

लौह धातुओं के प्रकार का वर्गीकरण निम्न है -

1. कच्चा लोहा (Pig Iron)

2. ढलवा लोहा (Cast Iron)

3. पिटवा लोहा (Wrought Iron)

4. स्टील (Steel)


1. कच्चा लोहा (Pig Iron) -:

कच्चा लोहा, लोहा का मूल धातु अर्थात बेस मेटल है सबसे पहले कच्चे लोहे का ही शोधन किया जाता है और उसके बाद ढलवा लोहा, पिटवा लोहा तथा स्टील इत्यादि लोहे का उत्पादन किया जाता है। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि कच्चे लोहे से ही अन्य लौह धातु को प्राप्त किया जाता है।

जब लोहा शुद्ध रूप में होता है तो उसमें बहुत से अन्य तत्व मिले होते हैं कभी-कभी इन तत्वों को शुद्ध आयरन में जानबूझकर मिला दिया जाता है ताकि यह विशिष्ट गुणों को प्राप्त कर सकें। परंतु जब यही तत्व जब बिना आवश्यकता के मिले होते हैं तो यह एक प्रकार की अशुद्धियां होती हैं।


2. ढलवा लोहा (Cast Iron) -:

कास्ट आयरन भी लोहे का ही एक भाग होता है, जिसमें आयरन, कार्बन और सिलिकॉन उपस्थित होते हैं। आधुनिक युग में विभिन्न प्रकार के गुणों वाले कास्ट आयरन का उत्पादन या जा रहा है,  जिसके अंतर्गत ग्रे कास्ट आयरन, आघातवर्धनीय कास्ट आयरन, व्हाइट कास्ट आयरन, चिल्ड कास्ट आयरन इत्यादि आते हैं। परंतु यह कास्ट आयरन प्लास्टिसिटी का गुण नहीं रखते हैं। प्लास्टिसिटी का गुण ना रखने के कारण आस्था में इस पर कोई भी प्रोसेस करना संभव नहीं हो पाता है इसीलिए पिघली धातु को ही वांछित आकार में ढाल दिया जाता है।


3. पिटवा लोहा (Wrought Iron) -:

इसे लोहे की सबसे पुरानी किस्म मानी जाती है। पिटवा लोहा उच्च शुद्धता का लोहा होता है। जिसमें आयरन सिलीकेट उपस्थित रहता है जिसे स्लैग कहा जाता है।पिटवा लोहा में कार्बन की बहुत ही कम मात्रा होती है तथा इसमें आयरन सिलिकेट उपस्थित होता है। इसकी संरचना ऐसी होती है जैसे रेशे निकले हुए हों, परंतु जब इसका भंजन किया जाता है रेशेदार संरचना स्पष्ट होने लगती है।


4. स्टील (Steel) -:

सामान्यतः आयरन में जब कार्बन की 2% मात्रा मिलाया जाता है तो विभिन्न प्रकार के स्टील प्राप्त होते हैं। स्टील लोहे की एक ऐसी धातु है जिस पर कोई भी प्रोसेस शीत और तप्त अवस्था में आसानी से किया जा सकता है। क्योंकि स्टील में प्लास्टिकता का गुण कमरे के तापमान पर और ऊंचे तापमान पर दोनों तापक्रम में विद्यमान रहता है।

स्टील की सामर्थ्य अधिक होती है। स्टील के विशिष्ट गुणों के कारण इसका प्रयोग बड़ी-बड़ी संरचनाओं में भी किया जाता है। स्टील के गुणों में विकास करने के लिए कार्बन की मात्रा को बदलकर और ऊष्मा उपचार करके आसानी से इसके गुणों का विकास किया जा सकता है।

स्टील में कार्बन की मात्रा को परिवर्तन करके, इसे अत्यधिक मुलायम और अत्यधिक कठोर भी बनाया जा सकता है। यह ऐसी लौह धातु है, जिसका उपयोग सस्ता होने के कारण और अधिक गुण होने के कारण सबसे अधिक किया जाता है। स्टील पर जंग लगने की संभावना ना के बराबर होती है इसका उपयोग करके मशीनों के टूल्स और अन्य प्रकार के मशीन पार्ट्स बनाए जाते हैं और दैनिक जीवन में भी स्टील का प्रयोग बहुत ही किया जाता है।



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